Ballia News: अयोध्या में प्रभु श्रीराम विराजमान होने जा रहे
हैं। उनका राम मंदिर जैसे-जैसे भव्य आकार लेता जा रहा है उसको लेकर भृगु
क्षेत्र में भी खुशी की लहर है। पांच सौ वर्षों के इस संघर्ष
में अपनी भूमिका को याद कर बहुत
से लोगों की आंखों में खुशी
के आंसू हैं। उन्हीं में से एक नाम राम किंकर सिंह का भी है। जो युवावस्था में बिना किसी के
बुलाए कारसेवा करने अयोध्या पहुंच गए थे।
1984 में जब
अयोध्या में विवादित ढांचे का ताला खोला गया, तब शहर के हरपुर
निवासी पच्चीस वर्ष के राम किंकर सिंह केंद्रीय उपभोक्ता भंडार बदायूं में
कार्यरत थे। 1984 में ताला
खुलने के बाद घरों में
घर दीप जलाए
गए। उस
समय रामकिंकर सिंह दीप प्रज्ज्वलित करने अयोध्या पहुंचे।
1990 में अयोध्या में
राम मंदिर का मुद्दा गरमाया तो राम किंकर सिंह केंद्रीय उपभोक्ता भंडार बलिया में
थे। रोज अखबार में राम मंदिर की खबर पढ़ते थे कि परिंदा भी पर नहीं मार पायेगा।
यह बात उन्हें कांटे की तरह बहुत चुभती थी।
रामकिंकर सिंह ने मंगलवार को उसी दौर को याद करते हुए बताया कि खबरें पढ़कर मन
उद्वेलित होता था। मन में आया कि राम काज में गिलहरी का भी छोटा सा प्रयास था।
क्यों न हम भी अपने जीवन को सार्थक करें। 18
अक्टूबर 1990 को वह शहर में ही एक स्थान पर गए थे। वहीं कुछ रामभक्तों से चर्चा
में कहा कि वह अयोध्या जाना चाहते हैं। 19
अक्टूबर 1990 को तत्कालीन सप्लाई इंस्पेक्टर ने जानकारी दी कि अयोध्या
जाना चाहते हैं तो भेजवा देंगे।
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फिर अयोध्या वाली ट्रेन पकड़ कर चल दिए। सुबह शाहगंज पहुंचे।
तभी देखा कि अयोध्या जाने वाली पटरी पर मिट्टी डाल दी गई थी। भीड़ के साथ मैं भी पैदल ही
चल पड़ा। जिधर जिस गांव में जाते,
पूरी श्रद्धा से स्वागत होता।
उन्होंने बताया
कि जैसे वहां से
चले तो बाजार में चारों तरफ से हम घेर लिए गए। हम जय श्रीराम का नारा लगाने लगे।
तभी एक दरोगा ने डंडे तान कर जय श्रीराम का नारे लगाने पर विरोध जताया। हमें पकड़
कर थाने ले गए। जिसके बाद वहां के एसपी आए और पूछा कि दरोगा पर हाथ क्यों चलाया।
मैं कहने लगा जय श्रीराम बोलना अपराध है। जिसके बाद हमें बस में
बैठाकर जेल ले जाया गया।
उन्होंने कहा कि 20 अक्टूबर से 29 अक्टूबर 1990 तक जेल में रहे।
इस दौरान बलिया का
ही एक लड़का राजकुमार नाम का जेल में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का
कब्र बनाया। उसने बाल भी मुड़वा लिया था। उधर,
सुल्तानपुर के लोग खाने-पीने की चीजें लाते थे। जेल में
तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह की अर्थी ले जाई जाती थी। कोई कारसेवक बीपी सिंह
की पत्नी बन कर रोता। एक दिन जेल के दो फाटक तोड़ दिए गए। जिसमें कई लोग पीटें गए।
इसके बाद राम मंदिर के आंदोलन ने जोर
पकड़ा। 1992 के दिसम्बर माह
में जानकारी हुई कि कारसेवकों की जुटान है। मैं पांच दिसम्बर को अयोध्या पहुंचा।
छह दिसम्बर की सुबह सबको सरयू से एक-एक मुट्ठी बालू
लेकर जन्मभूमि के पास गड्ढे को पाटने के लिए कहा गया।
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मैं भी सरयू से बालू लेकर
चला तो कथाकुंज में सबको बैठा दिया गया। अशोक सिंघल भी वहां उपस्थित थे। सुबह साढ़े दस
बजे लालकृष्ण आडवाणी, महंत अवैद्यनाथ,
उमा भारती व ऋतंभरा आदि लोग आये और भाषण होने लगा। हल्ला हुआ कि
पुलिस गोली नहीं चलाएगी। नारेबाजी के बीच सब उद्वेलित हो गए। दिन में करीब 12 बजे कुछ लोग गुम्बद पर दिखे। बस मैं उधर
ही चल दिया। मैं भी ढांचा की पाइप को तोड़ने लगा। इस दौरान मुझे चोट लगी। एक गुम्बद गिरा
तो हमें एक ईंट हाथ लगी। उसे लेकर मनीरामदास छावनी आ गया। चार
बजे तक तीनों गुम्बद ढह गये। मन में संतुष्टि का भाव लिए वहां से वापस चला आया।
राम
किंकर सिंह ये सब बातें बताते हुए आंखों में आंसू भर लेते हैं। उन्होंने कहा कि
भव्य राम मंदिर के लिए 51 हजार दान दिए हैं। छह दिसम्बर को लायी गई ईंट घर के मंदिर में
अब भी रखी हैं। अब
जैसे-जैसे राम मंदिर की भव्य तस्वीरें सामने आ रही हैं। मन श्रद्धा से भर जा रहा
है। लगता है कि मैं भी गिलहरी की तरह धन्य हो गया।
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