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Explainer: UP में 77 साल बाद पाकिस्तान से विस्थापित हुए हिन्दू, सिख, बंगाली समुदाय के लोगों को मिलेगी अपनी जमीन, नरसंहार में अपनो को खोकर आए थे भारत!

live up bureau by live up bureau
Jun 3, 2025, 05:02 pm IST
After 77 years, people of Hindu, Sikh and Bengali communities displaced from Pakistan will get their land in UP
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लखनऊ: 1947 में देश के बंटवारे के समय कई शरणार्थी परिवार उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बसाए गए थे। इनमें से अधिकांश हिंदू, सिख और बंगाली समुदाय के थे, जिन्हें सरकारी ग्रांट, बंजर भूमि या वन क्षेत्रों में बसाया गया था। हालांकि, इन परिवारों को तबसे अबतक जमीन का मालिकाना अधिकार नहीं मिल सका, जिससे वे बैंक ऋण या भूमि बिक्री जैसे आर्थिक लाभ लेने से वंचित रहे।

1947 में हिंदुओं के नरसंहार के कारण हुआ था पलायन

बता दें, 1947 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन समाप्त होने के बाद बनी सीमा के पार हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नरसंहार के कारण बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था। ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों से लगभग 30 लाख शरणार्थी भारत चले आए। इनमें से ही 10,000 परिवार उत्तर प्रदेश में बसाये गए थे।

उत्तर प्रदेश में शरणार्थियों को 77 साल बाद मिलेगी जमीन

वर्तमान स्थिति को देखते हुए योगी सरकार ने इस मामले में एक समिति गठित की, जिसने मई 2025 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 20,000 शरणार्थी परिवार लखनऊ, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, बिजनौर, और रामपुर जैसे क्षेत्रों में 50,000 एकड़ से ज्यादा भूमि पर रहते हैं। इनमें लगभग 10,000 परिवारों को पीलीभीत के 142 गांवों, लखीमपुर खीरी के 16 गांवों, बिजनौर के 40 गांवों, और रामपुर के 23 गांवों में बसाया गया था।

इन परिवारों को जीविकोपार्जन के लिए भूमि दी गई थी, लेकिन अधिकांश को हस्तांतरणीय भूमिधरी अधिकार नहीं मिले। समय के साथ, इनकी संख्या कई गुना बढ़ गई और अब लगभग 20,000 परिवार इन क्षेत्रों में रहते हैं।

कमेटी में कौन-कौन शामिल है ?

मुरादाबाद मंडल के आयुक्त की अध्यक्षता में गठित कमेटी में पीलीभीत के डीएम व राजस्व विभाग के उप सचिव घनश्याम चतुर्वेदी को सदस्य बनाया गया था। खीरी के अपर जिलाधिकारी को समिति का सदस्य व संयोजक बनाया गया था।

कमेटी ने कृषि राज्य मंत्री बलदेव सिंह औलख, पलिया के विधायक रोमी साहनी, मोहम्मदी  के विधायक लोकेन्द्र प्रताप सिंह, पीलीभीत के संजीव प्रताप सिंह, पूरनपुर के विधायक बाबू राम पासवान, बरखेड़ा के विधायक स्वामी प्रवक्तानंद, रामपुर के विधायक आकाश सक्सेना, बढ़ापुर के विधायक सुशांत सिंह, रामपुर, पीलीभीत व लखीमपुर खीरी के तत्कालीन जिलाधिकारियों के सुझाव लिए थे।

जनप्रतिनिधियों ने शरणार्थी परिवारों को भूमिधरी का अधिकार देने का सुझाव दिया था और कहा था कि इस अधिकार के बिना शरणार्थी परिवारों को भूमि पर बैंक से ऋण नहीं मिल सकता और वे जमीन बेच नहीं सकते हैं। 618 पन्नों की रिपोर्ट में जिक्र है कि वन क्षेत्रों की भूमि पर बसे परिवारों को हटाने की जगह संबंधित क्षेत्रों को बन गांव घोषित किया जाए।

शासन की तरफ से गठित कमेटी ने उत्तराखंड जाकर अध्ययन किया था तथा पीलीभीत, रामपुर, बिजनौर व लखीमपुर खीरी के जिलाधिकारियों से इस संदर्भ में रिपोर्ट मांगी थी।

इन परिवारों की भूमि का कानूनी दर्जा भिन्न-भिन्न हैं – 

  • कुछ भूमि सरकारी ग्रांट अधिनियम 1895 के तहत दी गई थी, जो अब समाप्त हो चुका है।
  • कुछ ग्राम सभा की भूमि पर हैं, जो मूल ग्रामीणों के लिए आरक्षित हैं।
  • कुछ विभागीय भूमि पर हैं, जिस पर संबंधित विभागों का नियंत्रण है।
  • कुछ वन क्षेत्रों, चरागाहों, और तालाबों के पास बसे हैं, जो कानूनी रूप से संरक्षित हैं।

कमेटी की रिपोर्ट में क्या है ? 

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मुद्दे को लेकर एक चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता मुरादाबाद के मंडलायुक्त अंजनेय कुमार सिंह ने की। कमेटी ने विभिन्न हितधारकों, जैसे विधायकों, जिलाधिकारियों और शरणार्थी परिवारों से सुझाव लिए और 31 मई 2025 को अपनी 618 पृष्ठों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी।

रिपोर्ट में कमेटी की मुख्य सिफारिशें 

  • स्वामित्व अधिकार; विस्थापित लोगों को उत्तराखंड मॉडल पर शुल्क लेकर या निशुल्क भूमिधरी अधिकार देना।

  • आरक्षित भूमि जेसे; वन, चरागाह, तालाब जैसी भूमि पर बसे परिवारों के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुमति लेना।

  • बन गांव घोषणा; वन क्षेत्रों को बन गांव घोषित करना, ताकि शरणार्थियों को हटाने की बजाय भूमि अधिकार दिए जा सकें

  • ग्राम सभा की भूमि मूल ग्रामीणों के लिए होती है ऐसे में, विभागीय भूमि पर संबंधित विभाग का निर्णय जो विस्थापितों के हित में हो।

  • कानून में संशोधन करना; 1985 का सरकारी ग्रांट अधिनियम की समाप्त कर नया कानून बनाना, जिससे भूमि का मालिकाना हक दिया जा सके।

सरकार कर रही उत्तराखंड मॉडल पर विचार

उत्तर प्रदेश सरकार, उत्तराखंड राज्य के मॉडल को अपनाने पर विचार कर रही है, जहां शरणार्थियों को भूमि का स्वामित्व कुछ शुल्क या निशुल्क दिया गया था। हालांकि, वन क्षेत्रों, चरागाहों, और तालाबों जैसी आरक्षित भूमि पर बसे परिवारों के लिए सुप्रीम कोर्ट की अनुमति आवश्यक है, जो प्रक्रिया को जटिल बनाता है। इसके अलावा, ग्राम सभा और विभागीय भूमि पर भी बसे परिवारों के लिए अलग नियम लागू होंगे।

हजारों शरणार्थियों को होगा लाभ

खबरों के अनुसार, इस मामले पर आगे की कार्रवाई के लिए कैबिनेट की उप समिति का गठन किया जा सकता है. अंतिम निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया जाएगा. अगर यह प्रस्ताव पास होता है, तो यह कदम हजारों शरणार्थी परिवारों के लिए बड़ी राहत साबित होगा.  सरकार का इरादा उत्तराखंड मॉडल को अपनाने का है, जहां शरणार्थियों को भूमि का स्वामित्व कुछ शुल्क या निशुल्क दिया गया था।

इस प्रक्रिया में कई चुनौतियां भी होंगी

वन क्षेत्रों पर बसे परिवारों को भूमि देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की अनुमति आवश्यक होगी, जिसमें समय लग सकता है।
ग्राम सभा भूमि मूल ग्रामीणों के लिए आरक्षित है, इसलिए शरणार्थियों को अधिकार देना कानूनी रूप से जटिल होगा।
सरकारी ग्रांट अधिनियम 1895 की समाप्ति के बाद, एक नया कानून बनाने की जरूरत होगी, जिसकी प्रक्रिया में समय लग सकता है।

क्या था उत्तराखंड मॉडल ?

वर्ष 2021 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा दो विधेयकों में संशोधन किया गया था। इनमें उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2023 और सरकारी अनुदान अधिनियम, 1895 में संशोधन शामिल थे। इस संशोधन के बाद 1971 या उससे पूर्व पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आये शरणार्थियों को उधमसिंहनगर जिले के 17 गांवों में दी गई पट्टे की भूमि को कानूनी रूप और मालिकाना अधिकार दिया गया था।

अभी देशभर में मौजूदा नियमों से इन परिवारों को ये अधिकार पाना मुश्किल था, क्योंकि सरकारी अनुदान अधिनियम 1895 को केन्द्र सरकार ने खत्म कर दिया था। ऐसे में नए कानून बनाए जा रहे हैं ताकि विभाजन के समय अपना सब कुछ छोड़कर भारत आए ऐसे लोगों को भूमि पर मालिकाना हक मिल सके।

ये भी पढ़ें : Explainer : छात्राएं-शिक्षिकाएं मदरसों में असुरक्षित; बरेली में जुमे के दिन मदरसा संचालक जुबैर ने किया दुष्कर्म, मुजफ्फरनगर में नाबालिग से मौलवी ने किया दुराचार, जानें अब तक कितने मामले आए सामने.?

Tags: Bengali communityHindusLakhimpurland allocationPakistan displacedPakistani Hindupakistani sikhPilibhitRampurSikhsUttar Pradesh
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