Lucknow News- नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी के पूजन का विधान है। वासंतिक नवरात्र के पहले दिन मंगलवार को जहां मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा हुई। वहीं दूसरे दिन बुधवार को देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना हो रही है। देवी मां दाएं हाथ में जप की माला लिए हुए हैं और बाएं हाथ में कमण्डल धारण किए हैं।
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मां दुर्गा की नव शक्तियों में उनका दूसरा स्वरुप माता ब्रह्मचारिणी का है। यहां पर ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या से है, यानि तप का आचरण करने वाली भगवती। इसीलिए इनके दूसरे स्वरुप को ब्रह्मचारिणी कहा गया। देवी का यह रुप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं। धाार्मिक मान्यता के अनुसार, अपने पूर्वजन्म में ये हिमालय के घर पुत्री-रुप में उत्पन्न हुई थीं। तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को पति-रुप में प्राप्त करने के लिए अत्यन्त कठिन तपस्या की थी। इसी तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल-मूल खाकर व्यतीत किए थे। सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा धूप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपस्या के पश्चात तीन हजार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे बेलपत्रों
को खाकर वह दिन-रात भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी के पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो उठा। वह अत्यन्त ही दुर्लब हो गयी थीं। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मैना अत्यन्त दुखित हो उठीं। उन्होंने उन्हें उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिए ‘उमा’ नाम से सम्बोधित किया। तब से देवी ब्रह्मचारिणी के पूर्वजन्म का एक नाम उमा भी पड़ गया था। शिव जी की के लिए उनकी कई वर्षों की कठिन तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि-मुनि, सिद्धिगण सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अन्त में पितामह ब्रह्म जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा कि, ‘हे देवि ! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की। यह तपस्या तुम्हीं से सम्भव थी। तुम्हारे इस अलौकिक कृत्य की चतुर्दिक सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रुप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।’
मां दुर्गा का यह दूसरा स्वरुप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। नवरात्र में दूसरे दिन इन्हीं के स्वरुप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी मां की कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र
‘या देवी सर्वभूतेषु
मां ब्रह्मचारिणी रुपेण संस्थिता।