नई दिल्ली: पीएम मोदी की एक्स पोस्ट के बाद कच्चातिवु द्वीप को लेकर भारत में राजनीति माहौल गर्म है। पीएम ने एक्स के जरिए कच्चातिवु द्वीप पर भारत का कब्जा छोड़ने को लेकर, उस समय की कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत की एकता और अखंडता को कमजोर करना बताया है। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक कच्चातिवु द्वीप को लेकर चर्चाएं तेज हैं। ऐसे में कच्चातिवु द्वीप मामला क्या है, यह जानने के लिए लोगों के बीच जिज्ञासा देखी जा रही है। तो चलिए हम आप को इस आर्टिकल के माध्यम से पूरी जानकारी देंगे।
दरअसल, कच्चातिवु द्वीप मामले को लेकर तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई ने एक आरटीआई डाली थी। जो अब देश में चुनावी मुद्दा बन गया है। आरटीआई के तहत खुलासा हुआ है कि 1974 में उस समय की इंदिरा गांधी सरकार ने कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया था।
कच्चातिवु द्वीप 285 एकड़ में फैला एक समुद्री टापू है, जो भारतीय सीमा से 20 किलोमीटर दूर, पाक जलडमरूमध्य में पड़ता है। यह द्वीप रामेश्वरम से आगे और श्रीलंका के मंध्य स्थित है। वर्तमान में भले ही श्रीलंका इस द्वीप पर कब्जा जता रहा हो, मगर अंग्रजों के जमाने में इस द्वीप पर भारत का ही कब्जा था। जब देश आजाद हुआ तो श्रीलंका इस टापू पर कब्जा जताने लगा। हालांकि, पहले भारत सरकार ने इसका विरोध किया। लेकिन, बाद में उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टापू को भारत के लिए गैर जरूरी बताते हुए इस मामले पर ध्यान ही नहीं दिया।
1966 में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनीं। देश व खास कर तमिलनाडु के लोगों को उनसे अपेक्षा थी कि वह इस टापू पर घ्यान देंगी और भारत का इस पर कब्जा होगा। लेकिन, उन्होंने भी अपने पिता की तरह ही कच्चातिवु द्वीप की उपेक्षा की। वर्षों तक उपेक्षित रहे इस द्वीप को 1974 में इंदिरा गांधी सरकार ने एक समझौते के तहत श्रीलंका को सौंप दिया।
हालांकि, शुरुआती दौर से ही इस द्वीप को श्रीलंका से लेने की मांग उठती रही है। कई बार तमिलनाडु की सरकारें इस को लेकर मामला उठा चुकी हैं। पहले की सरकारों ने इस टापू की उपेक्षा की। लेकिन, यह द्वीप तमिलनाडु राज्य के आसपास जिलों में रहने वाले लोगों के जीवनयापन में प्रमुख भूमिका निभाता रहा है। भारतीय मछुहारो के लिए यह टापू मछली पकड़ने के लिए काफी अहम माना जाता है।
व्यापरिक दृष्टिकोण के अलावा वर्तमान समय में सामरिक दृष्टि से भी कच्चातिवु द्वीप भारत के लिए अहम है। चीन ने श्रीलंका को अपने कर्जजाल में फंसा कर उसके हंबनटोटा बंदरगाह को 99 सालों के लिए लीज पर ले लिया है। मीडिया खबरों के अनुसार, हंबनटोटा बंदरगाह को चीन अपने सैन्य अड्डे के रूप में विकसित कर रहा है। भारत ने इस पर कई बार श्रीलंका सरकार के सामने आपत्ति जताई, लेकिन आपत्तियों के बाद भी श्रीलंका सरकार ने चीनी कर्ज को देखते हुए, चीन के जासूसी जहाज को हंबनटोटा पर रुकने की अनुमति दे दी है। अब ऐसे में भारत को कच्चाथीवु टापू पर कब्जा ना होने की कमी खल रही है। यह टापू भारत के सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकता था।