भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी शोमा कांति सेन को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ शोमा को जमानत पर रिहा करने की अनुमति दी है।
कुछ शर्तों के साथ मिली जमानत
शर्तों के अनुसार, शोमा कांति सेन महाराष्ट्र नहीं छोड़ सकती हैं। इसके अलावा उन्हें अपना पासपोर्ट भी जमा करना होगा। शर्त ये भी है कि उन्हें अपने निवास और मोबाइल नंबर के बारे में एनआईए को सूचित करना होगा और उस फोन नंबर को चालू और चार्ज रखना होगा। कोर्ट की शर्तों के मुताबिक शोमा के मोबाइल का जीपीएस हमेशा चालू होना चाहिए और उनके फोन को एनआईए अधिकारी के फोन से जोड़ा जाना चाहिए ताकि लोकेशन का पता लगाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर शर्तों का उल्लंघन किया जाता है तो अभियोजन पक्ष जमानत रद्द करने की मांग कर सकता है।
बता दें कि शोमा कांति सेन पिछले साढ़े 5 साल से जेल में बंद हैं। पेशे से अंग्रेजी की प्रोफेसर शोमा कांति सेन को 6 जून 2018 को गिरफ्तार किया गया था। शोमा सेन के खिलाफ UAPA एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था। जांच एजेंसी के अनुसार शोमा का सीपीआई (माओवादी) से संबंध बताया जाता है।
क्या है भीमा कोरेगांव मामला ?
1 जनवरी 2018 को महाराष्ट्र के पुणे में भीमा कोरेगांव इलाके में एल्गार परिषद के बैनर तले हुए कार्यक्रम के दौरान हिंसा हुई। इसमें एक युवक की मौत हुई थी। जिसके बाद वामपंथी वरवर राव, सुधा भारद्वाज, स्टेन स्वामी, वेरनन गोंजाल्वेज, गौतम नवलखा और अरुण फरेरा समेत 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इन सभी पर जातीय हिंसा भड़काने का आरोप था। NIA ने इन पर ISI और नक्सलियों से संबंध होने का आरोप भी लगाया था। इस मामले में पुलिस का दावा था कि शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़की थी। पुणे पुलिस ने इस सम्मेलन को माओवादी समर्थित बताया था। यह कार्यक्रम 1818 में दलित बाहुल्य सेना की पेशवा गुट पर हुई जीत की 200वीं वर्षगांठ के मौके पर रखा गया था।