कुतुब मीनार परिसर में पूजा की अनुमति की मांग पर 19 जनवरी को सुनवाई
नई दिल्ली- दिल्ली के साकेत कोर्ट ने कुतुब मीनार (Qutub Minar) परिसर में पूजा की अनुमति देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई टाल दी है। एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज दिनेश कुमार ने मामले की अगली सुनवाई 19 जनवरी, 2024 को करने का आदेश दिया। 24 दिसंबर, 2022 को कोर्ट ने कुतुब मीनार परिसर के मालिकाना हक की मांग को लेकर दाखिल पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी।
कुंवर महेंद्र ध्वज
प्रसाद सिंह ने याचिका दाखिल कर कुतुबमीनार परिसर पर मालिकाना हक का दावा किया था।
20 सितंबर, 2022 को कोर्ट ने इस मामले में कुंवर महेंद्र
ध्वज को पक्षकार बनाने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी थी। महेंद्र ध्वज
प्रसाद सिंह का कहना था कि उनके पूर्वज आगरा प्रांत के शासक थे। कुतुब मीनार समेत
दक्षिणी दिल्ली में उनका शासन था। लिहाजा, कुतुब मीनार जिस जमीन पर है, उस पर उनका मालिकाना हक है। इसलिए सरकार
कुतुबमीनार के आसपास की जमीन पर फैसला नहीं ले सकती है।
24 मई, 2022 को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने
याचिकाकर्ता की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने कहा था कि पिछले आठ सौ वर्षों से इस
परिसर का इस्तेमाल मुस्लिमों ने नहीं किया है। उन्होंने कहा था कि जब मस्जिद के
काफी पहले यहां मंदिर था तो पूजा की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती है। सुनवाई के
दौरान कोर्ट ने पूछा था कि याचिकाकर्ता को कौन से कानूनी अधिकार हैं। कोर्ट ने कहा
था कि मूर्ति के होने पर कोई विवाद नहीं है लेकिन पूजा करने के अधिकार पर विवाद
है। कोर्ट ने पूछा कि क्या पूजा का अधिकार एक स्थापित अधिकार है। क्या ये एक
संवैधानिक अधिकार है या दूसरे तरह का अधिकार है। क्या याचिकाकर्ता को पूजा के
अधिकार से रोका जा सकता है। अगर ये मान लिया जाए कि कुतुब मीनार का मुसलमान मस्जिद
के रूप में उपयोग नहीं करते हैं तो इससे याचिकाकर्ता को पूजा करने का अधिकार किस
आधार पर मिल जाता है।
आठ सौ साल पहले हुई किसी घटना के आधार पर आपको कानूनी अधिकार
कैसे मिल सकता है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे
ऑफ इंडिया (A.S.I.)
ने कोर्ट में जवाब दाखिल कर कहा था कि
जब एएसआई ने स्मारक पर नियंत्रण लिया था, तब वहां पूजा नहीं होती थी। एएसआई ने कहा था कि कानूनन
संरक्षित स्मारक में पूजा का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए याचिका खारिज की जाए। 13 अप्रैल 2022 को कोर्ट ने एएसआई को निर्देश दिया था
कि वो कुतुब मीनार परिसर में मौजूद कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद परिसर में रखी हुई
भगवान गणेश की मूर्तियों को परिसर से ना हटाए। वकील विष्णु जैन के जरिये दायर मुख्य
याचिका में कहा गया है कि 27 हिंदू
और जैन मंदिरों को तोड़ कर ये मस्जिद बनाई गई है। जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और
भगवान विष्णु को इस मामले में याचिकाकर्ता बनाया गया था।
उल्लेखनीय है कि 29
नवंबर, 2021 को सिविल जज नेहा शर्मा ने याचिका खारिज
कर दी थी।
सिविल जज के याचिका
खारिज करने के आदेश को डिस्ट्रिक्ट जज के कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया
है कि कुतुबद्दीन ऐबक ने 27 हिंदू
और जैन मंदिरों की जगह कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बना दिया। ऐबक मंदिरों को पूरे
तरीके से नष्ट नहीं कर सका और मंदिरों के मलबे से ही मस्जिद का निर्माण किया गया।
याचिका में कहा गया था कि कुतुब मीनार परिसर की दीवारों, खंभों और छतों पर हिन्दू और जैन
देवी-देवताओं के चित्र बने हुए हैं। इन पर भगवान गणेश, विष्णु, यक्ष, यक्षिणी. द्वारपाल. भगवान पार्श्वनाथ.
भगवान महावीर, नटराज
के चित्रों के अलावा मंगल कलश, शंख,
गदा, कमल, श्रीयंत्र, मंदिरों के घंटे इत्यादि के चिह्न मौजूद
हैं।
ये सभी बताते हैं कि कुतुब मीनार परिसर हिंदू और जैन मंदिर थे। याचिका में
कुतुब मीनार को ध्रुव स्तंभ बताया गया था। याचिका में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ
इंडिया (एएसआई) के उस संक्षिप्त इतिहास का जिक्र किया गया था, जिसमें कहा गया था कि 27 मंदिरों को गिरा कर उनके ही मलबे से
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण किया गया। याचिका में मांग की गई थी कि इन 27
मंदिरों को पुनर्स्थापित करने का आदेश
दिया जाए और कुतुब मीनार परिसर में हिंदू रीति-रिवाज से पूजा करने की इजाजत दी
जाए।