लखनऊ: अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि परिसर बाबरी विवादित ढांचे के कारण लंबे समय तक भारत में धार्मिक और सांप्रदायिक तनाव का केंद्र रहा. साल 1992 में विवादित बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद इस जगह की सुरक्षा बहुत सख्त कर दी गई थी. इसके बावजूद, आतंकी संगठन इसे निशाना बनाना चाहते थे, क्योंकि यह हमला देश में डर और अशांति फैला सकता था. 5 जुलाई 2025 को ऐसा ही हुआ जब आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने यहाँ हमला किया था.
हमले की योजना: आतंकी कैसे आए?
हमले को अंजाम देने वाले पांच आतंकी नेपाल के रास्ते भारत में घुसे थे. वे तीर्थयात्रियों के भेष में आए ताकि कोई उन पर शक न करे. उन्होंने पहले फैजाबाद के पास किछौछा गाँव में एक टाटा सूमो गाड़ी किराए पर ली. फिर, फैजाबाद में सूमो छोड़कर उन्होंने रेहान आलम अंसारी नाम के एक ड्राइवर की जीप किराए पर ली.
हमले से पहले, सुबह के समय, आतंकी राम मंदिर गए और वहाँ प्रार्थना की. यह प्रार्थना सिर्फ दिखावा थी. असल में, वे इलाके की जासूसी कर रहे थे ताकि उनकी योजना सही तरीके से चल सके. वे यह देखना चाहते थे कि सुरक्षा कितनी सख्त है और हमला कैसे किया जा सकता है.
हमला कैसे हुआ?
5 जुलाई, 2005 को सुबह करीब 9:05 बजे, आतंकियों ने अपनी जीप को राम जन्मभूमि परिसर की सुरक्षा घेरे से टकरा दिया. उन्होंने ड्राइवर रेहान को गाड़ी से उतार दिया और एक ग्रेनेड फेंका. इस ग्रेनेड के विस्फोट से रमेश पांडे नाम के एक तीर्थयात्री गाइड की मौके पर ही मौत हो गई. इसके बाद, आतंकी माता सीता रसोई क्षेत्र में घुस गए और वहाँ अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी.
आतंकियों के पास रॉकेट लॉन्चर, असॉल्ट राइफल, पिस्तौल और ग्रेनेड जैसे भारी हथियार थे. वे परिसर के अंदर ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुँचाना चाहते थे. लेकिन, उनकी योजना पूरी तरह सफल नहीं हो पाई, क्योंकि वहाँ तैनात सुरक्षा बलों ने तुरंत जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी.
सुरक्षा बलों की बहादुरी
इस दौरान केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की एक 35 सैनिकों की टुकड़ी ने आतंकियों का डटकर मुकाबला किया. करीब एक घंटे तक चली गोलीबारी में सभी पांचों आतंकी मारे गए. यह मुठभेड़ परिसर के 100 मीटर के दायरे में ही खत्म हो गई. CRPF की बहादुरी की वजह से मंदिर को बड़ा नुकसान होने से बच गया. लेकिन, इस मुठभेड़ में दो स्थानीय लोग रमेश पांडे और शांति देवी मारे गए. सात CRPF जवान भी घायल हुए, जिनमें से दो की हालत बहुत गंभीर थी.
पुलिस ने आतंकियों से क्या बरामद किया?
मुठभेड़ के बाद, पुलिस ने आतंकियों के पास से कई खतरनाक हथियार बरामद किए. इनमें एक RPG-7 रॉकेट लॉन्चर, पांच टाइप 56 असॉल्ट राइफल, पांच M1911 पिस्तौल, कई M67 ग्रेनेड और कुछ जिहादी दस्तावेज शामिल थे. उस दौरान पुलिस ने आतंकियों के पास से मिले नोकिया फोन के IMEI नंबर और कॉल डिटेल रिकॉर्ड की जाँच की. इन सबूतों की मदद से पुलिस ने हमले में शामिल अन्य लोगों को पकड़ने की कोशिश शुरू की.
जांच के करीब एक महीने बाद आतंकियों के मददगारों की हुईं गिरफ्तारियां
हमले के करीब एक महीने बाद, 3 अगस्त, 2005 को पुलिस ने चार संदिग्धों आसिफ इकबाल, मोहम्मद अजीज, मोहम्मद नसीम और शकील अहमद को गिरफ्तार किया. कुछ दिनों बाद, पांचवां संदिग्ध, इरफान खान भी पकड़ा गया. इन लोगों पर आरोप था कि उन्होंने आतंकियों को हमले में मदद की. इन आतंकियों पर हथियार और सामग्री देने, हमले की साजिश रचने में हिस्सा लेने, आतंकियों को ठहरने की जगह और दूसरी मदद देने, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की कोशिश करने के आरोप थे.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दर्ज किए गए 63 गवाहों के बयान
सुरक्षा कारणों से इस मामले का मुकदमा अयोध्या से इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया. सुनवाई नैनी सेंट्रल जेल में हुई, जहां सभी पांचों आरोपी बंद थे. मुकदमे के दौरान, अदालत ने 63 गवाहों के बयान लिए. ये बयान सुरक्षा कारणों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दर्ज किए गए थे.मुकदमा 14 साल तक चला. इस दौरान, पुलिस ने मोबाइल कॉल रिकॉर्ड, आतंकियों के हथियारों और अन्य सबूतों के आधार पर अपनी दलीलें कोर्ट के समक्ष रखीं.
2019 का फैसला
18 जून, 2019 को इलाहाबाद की स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया. विशेष जज दिनेश चंद्रा ने चार आरोपियों इरफान, आसिफ इकबाल उर्फ फारूक, शकील अहमद और मोहम्मद नसीम को उम्रकैद की सजा दी. प्रत्येक पर 2.4 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. जबकि पांचवें आरोपी मोहम्मद अजीज को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.
2005 Ayodhya terror attack case: Prayagraj Special Court sentences four convicts to life imprisonment and acquits one person. pic.twitter.com/T5bZKOXsJ2
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) June 18, 2019
2023 में मिल गई जमानत
2 साल पहले साल 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चारों दोषियों शकील अहमद, मोहम्मद नसीम, आसिफ इकबाल और इरफान को सशर्त जमानत दे दी. इसका कारण उनकी अपील की सुनवाई में देरी थी. हालांकि उनका मुकदमा अभी भी चल रहा है.
हालांकि 5 जुलाई 2005 का अयोध्या आतंकी हमला भारत के लिए एक बड़ी चेतावनी थी. इसने दिखाया कि धार्मिक स्थल आतंकियों के निशाने पर रहते हैं. साथ ही, यह भी साबित हुआ कि भारत के सुरक्षा बल कितने सक्षम और बहादुर हैं. CRPF की त्वरित कार्रवाई ने एक बड़े हादसे को टाल दिया. CRPF की बहादुरी ने कुटिया में विराजमान राम लला के मंदिर को भी बचाया.
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