70 के दशक में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने कुछ ऐसा किया जो हमेशा के लिए भारत के इतिहास में काले पन्नों में दर्ज हो गया. 2 जुलाई, 1971 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारतीय संसद ने आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम (MISA) को पारित किया, जो देश के इतिहास में सबसे विवादास्पद कानूनों में से एक बन गया.
राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए बनाए गए इस कानून ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को व्यापक शक्तियां प्रदान कीं, जिसके तहत वे बिना वारंट के लोगों को हिरासत में ले सकते थे और संपत्ति जब्त कर सकते थे. सरकार ने कहा कि यह देश को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है, लेकिन कई लोगों को डर था कि इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है.
आखिर MISA क्यों बनाया गया?
1970 के दशक में भारत में बहुत सारी समस्याएं थीं. राजनीतिक अशांति, आर्थिक परेशानियां और कुछ जगहों पर विद्रोह चल रहे थे. सरकार का कहना था कि MISA से देश में शांति और व्यवस्था बनी रहेगी. लेकिन विपक्ष और आम लोग इसे सत्ता को और मजबूत करने का तरीका मानते थे. इस कानून से किसी को भी बिना सबूत के गिरफ्तार किया जा सकता था और उसे कोर्ट में अपील करने का ज्यादा मौका नहीं मिलता था.
आपातकाल (1975–1977) में MISA का इस्तेमाल
MISA का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल आपातकाल के दौरान हुआ. 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक, इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया. इसका कारण था इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला, जिसमें इंदिरा का 1971 का चुनाव गलत ठहराया गया था. आपातकाल में लोगों के कई अधिकार छीन लिए गए जिसमें बोलने की आजादी और कोर्ट में अपील करने का हक जैसे मूल अधिकारी शामिल थे. इस दौरान प्रेस पर सख्त पाबंदी थी. MISA इस दौरान इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार का सबसे बड़ा हथियार बना.
MISA के तहत देशभर में पुलिस किसी को भी बिना सबूत, बिना वारंट और बिना कोर्ट की इजाजत के जेल में डाल सकती थी. गिरफ्तार व्यक्ति को यह तक नहीं बताया जाता था कि उसका गुनाह क्या है. सबसे खराब बात यह थी कि वह कोर्ट में अपनी बात भी नहीं रख सकता था. इससे सरकार को बहुत ज्यादा ताकत मिल गई, और उसने इसका गलत फायदा उठाया.
MISA का गलत इस्तेमाल: क्या-क्या हुआ?
आपातकाल में MISA का उपयोग कई गलत तरीकों से हुआ, जिसने देश में डर का माहौल बना दिया. आईए आपको इसके कुछ बड़े उदाहरण बताते हैं:
1. स्वतंत्रता सेनानियों और विपक्षी नेताओं को जेल में डाला
MISA का सबसे ज्यादा उपयोग स्वतंत्रता सेनानियों और विपक्षी नेताओं को चुप कराने के लिए हुआ. आपातकाल के खिलाफ बड़ा आंदोलन चला रहे समाजवादी आंदोलन के प्रणेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) को जेल में डाल दिया गया. उनकी उम्र ज्यादा थी और सेहत ठीक नहीं थी, फिर भी उन्हें चंडीगढ़ की जेल में कठिन हालात में रखा गया. इसके अलावा, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे बड़े नेताओं को भी MISA के तहत गिरफ्तार किया गया. सरकार का मकसद था कि विपक्ष इतना कमजोर हो जाए कि कोई विरोध न कर सके.
2. पत्रकारों पर हमला
आपातकाल में अखबारों और पत्रकारों पर सख्त नजर रखी गई. MISA का उपयोग उन पत्रकारों को डराने और जेल में डालने के लिए हुआ जो सरकार की आलोचना करते थे. इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों के पत्रकारों को निशाना बनाया गया. कई पत्रकारों को उनके लेखों की वजह से जेल भेजा गया. कुछ को डराया गया ताकि वे सरकार के खिलाफ न लिखें. इससे लोगों तक सच्ची खबरें नहीं पहुंच पाईं, और प्रेस की आजादी खत्म हो गई.
3. छात्रों और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी
उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली जैसे राज्यों में MISA का उपयोग छात्रों और कार्यकर्ताओं को पकड़ने के लिए हुआ. जेपी के “संपूर्ण क्रांति” आंदोलन में शामिल बहुत सारे युवा और छात्र जेल में डाल दिए गए. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे जगहों पर विरोध करने वाले छात्रों को गिरफ्तार किया गया. कई बार बिना किसी वजह के लोगों को महीनों तक जेल में रखा गया. जेल में उनके साथ बुरा बर्ताव होता था और हालात बहुत खराब थे.
4. आम लोगों का दमन
MISA का गलत इस्तेमाल सिर्फ बड़े नेताओं या पत्रकारों तक नहीं थमा. आम लोग, जैसे मजदूर, शिक्षक और छोटे कार्यकर्ता, भी इसका शिकार बने. उत्तर प्रदेश में कई बार स्थानीय पुलिस ने MISA का उपयोग अपनी निजी दुश्मनी निकालने या छोटे-मोटे विरोध को दबाने के लिए किया. लोगों को बिना बताए जेल में डाल दिया जाता था और उनके परिवार को कुछ पता नहीं होता था कि वे कहाँ हैं. इससे हर तरफ डर फैल गया.
5. कोर्ट की ताकत छीनी गई
MISA के तहत जेल में डाले गए लोग कोर्ट में अपनी बात नहीं रख सकते थे. आपातकाल में सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जो जीवन और आजादी की रक्षा करता है) को भी रोक दिया. इसका मतलब था कि कोई भी व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी को कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकता था. कोर्ट की ताकत छीनने से MISA का गलत इस्तेमाल और आसान हो गया, क्योंकि कोई भी सरकार के फैसलों को रोक नहीं सकता था.
उत्तर प्रदेश में MISA का खास असर
उत्तर प्रदेश में MISA का बहुत बुरा असर देखने को मिला था. यहाँ सरकार ने विपक्षी नेताओं, खासकर समाजवादी पार्टी और जनसंघ के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया. स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने MISA का उपयोग छोटे-छोटे विरोध को कुचलने के लिए किया. कई गाँवों में, जहाँ लोग जबरन नसबंदी जैसी सरकार की नीतियों के खिलाफ थे, वहां MISA से लोगों को डराया गया. इससे पूरे राज्य में डर का माहौल बन गया, और लोग खुलकर बोलने से डरने लगे.
MISA के गलत इस्तेमाल का नतीजा
MISA के दुरुपयोग ने देश और समाज पर गहरा असर डाला. MISA ने आपातकाल को तानाशाही जैसा बना दिया. लोगों की आजादी छीन ली गई, और विपक्ष को कुचल दिया गया. इससे लोकतंत्र कमजोर हुआ.
MISA और आपातकाल की ज्यादतियों से लोग बहुत नाराज हुए. 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी हार गई और सरकार गिर गई. जनता पार्टी की जीत ने दिखाया कि लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं.
MISA ने यह सिखाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा जरूरी है, लेकिन लोगों की आजादी भी उतनी ही जरूरी है. इसने भविष्य में ऐसे कानूनों से सावधान रहने की जरूरत बताई. MISA ने दिखाया कि प्रेस और कोर्ट को मजबूत रखना कितना जरूरी है. अगर ये कमजोर होंगे, तो सरकार गलत काम आसानी से कर सकती है.
इंदिरा गांधी की हार और जनता पार्टी की जीत से हुआ MISA का अंत
1977 में आपातकाल खत्म हुआ. लोगों का गुस्सा इंदिरा गांधी की सरकार के प्रति विरोधी था, जिसके बाद इंदिरा गांधी की सरकार गिर गई. जनता पार्टी की नई सरकार ने 1978 में MISA को खत्म कर दिया. यह एक बड़ा कदम था, लेकिन MISA के गलत इस्तेमाल का दर्द लोगों के दिलों में रहा. इस कानून ने दिखाया कि अगर सरकार को बिना रोक-टोक के ज्यादा ताकत मिल जाए, तो वह लोगों की आजादी छीन सकती है. काले कानून MISA की कहानी हमें सिखाती है कि देश की सुरक्षा जरूरी है, लेकिन लोगों के अधिकारों की रक्षा भी उतनी ही जरूरी है.