प्रयागराज; महाकुंभ का महत्व बहुत अधिक है. प्रयागराज महाकुंभ और मकर संक्रांति पर अमृत स्नान का गुणगान रामायण व रामचरित मानस में किया गया है. जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि माघ में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग आते हैं. देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के समूह त्रिवेणी में स्नान कर अपने जीवन को धन्य बनाते हैं.
जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक एवं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास कीे रामचरितमानस में प्रयागराज महाकुंभ व मकर संक्रांति के अमृत स्नान के प्रसंग का श्रवण करने से जैसा आनंद बरसता है, वैसा ही आनंद आज मंगलवार को संगम पर अमृत स्नान के दौरान बरसा. सच्चे भक्तों को तो भगवान के साक्षात्कार करने का अनुभव भी प्राप्त हुआ.
श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर व श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने प्रयागराज, यहां लगने वाले महाकुंभ व मकर संक्रांति के अमृत स्नान का जो वर्णन किया है, वह तो साक्षात भगवान राम व प्रयागराज के रक्षक नगर देवता वेणी माधव का साक्षात्कार करा देने वाला है.
उन्होंने लिखा है कि भारद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा ।।तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना।।
भवार्थःभारद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं. उनका श्रीरामजी के चरणों में अत्यंत प्रेम है. वे तपस्वी निगृहीतचित्त जितेन्द्रिय दयाके निधान और परमार्थ के मार्ग में बड़े ही चतुर हैं.
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