कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 6 जनवरी अपने पद से इस्तीफा देने का एलान किया है. वह आगामी चुनावों में लिबरल पार्टी के प्रत्याशी नहीं रखेंगे. ट्रूडो के इस्तीफे की घोषणा के बाद से लिबरल पार्टी में प्रधानमंत्री पद की दौड़ तेज हो गई है. इस दौड़ में कनाडा की पहली हिंदू कैबिनेट मंत्री अनीता आनंद का नाम सामने आ रहा है.
प्रधानमंत्री पद की रेस में नेता
ट्रूडो के इस्तीफा देने के बाद लिबरल पार्टी में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में कई वरिष्ठ नेता शामिल हैं. इनमें कनाडा की पूर्व वित्त मंत्री क्रिश्टिया फ्रीलैंड, विरिष्ठ नेता मार्क कारने, वित्त मंत्री डोमिनिक लीब्लांक, पूर्व विदेश मंत्री मेलीना जोली और पूर्व रक्षा मंत्री अनीता आनंद का नाम चर्चाओं में हैं. अनीता आनंद ने पिछले साल ट्रूडो से इस्तीफा देने की मांग की थी, जिसके बाद से उनकी उम्मीदवारी प्रमुख रूप से चर्चा में है.
कौन हैं भारतवंशी अनीता आनंद?
अनीता आनंद का जन्म कनाडा में हुआ था. उनके माता-पिता भारतीय मूल हैं. वह नाइजीरिया से कनाडा गए थे. अनीता आनंद पहली बार 2019 में कनाडा सरकार के कैबिनेट में शामिल हुई थीं. इसी के साथ वह कनाडा की पहली हिंदू कैबिनेट मंत्री बनी थीं. पहले उन्हें प्रोक्योरमेंट मंत्रालय दिया गया था. इस मंत्रालय ने अपनी उपयोगिता कोविड-19 वैक्सीनेशन के दौरान साबित की थी. इसके बाद 2021 में उन्हें रक्षा मंत्रालय सौंपा गया था.
रक्षा मंत्री रहते हुए अनीता आनंद ने रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. फिर दिसंबर 2024 में उन्हें परिवहन और व्यापार मामलों का मंत्री नियुक्त किया गया था. इस मंत्रालय का कार्य भी सराहनीय रहा है. अनीता आनंद के कार्यों को देखते हुए उन्हें लिबरल पार्टी की ओर से कनाडा के प्रधानमंत्री के रूप में बड़ा दावेदार माना जा रहा है.
ट्रूडो को क्यों देना पड़ा इस्तीफा?
2015 में जब जस्टिन ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बने तब उनकी लोकप्रियता अपने चरम पर थी। उन्होंने लिबरल पार्टी को बड़ी जीत दिलवाई और 2019 व 2021 के चुनावों में जीत हासिल की. लेकिन अपने निर्णयों के चलते जस्टिन ट्रूडो लगातार लोकप्रियता खोते रहे. ट्रूडो की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है. 2015-16 में जहां 65% लोग उन्हें पसंद करते थे, वहीं 2025 आते-आते यह ग्राफ गिरकर 25 प्रतिशत तक पहुंच गया है. अब उन्हें 75% लोग नापपसंद करते हैं. इसका प्रमुख कारण कनाडा में पिछले कुछ सालों में बढ़ी महंगाई, बेरोजगारी, आवास संकट और बढ़ते कट्टरपंथ जैसे मुद्दे हैं.
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डूडो को भारत विरोधी बयानबाजी भारी पड़ी
जस्टिन ट्रूडो का खालिस्तान प्रेम और भारत विरोधी बयानबाजी भी चर्चाओं में रही. जिससे भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ा. खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या का आरोप डूडो ने भारतीय एजेंसियों पर लगाए थे. हालांकि बाद में कोई सबूत पेश न कर पाने पर उन्होंने मांफी भी मांगी थी. जिसके बाद उनकी जगहंसाई हुई थी.