अमेठी: भारत को आजादी दिलाने के लिए अनगिनत वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी. लेकिन बहुत वीर ऐसे हैं, जिनके बारे में लोग शायद उतना नहीं जानते, जितना राष्ट्र के प्रति उनका योगदान है. उन्हीं राष्ट्र वीरों की गाथा गाता उत्तर प्रदेश के अमेठी जिला का कादूनाला स्थान है. कादूनाला अमेठी जिले के मुसाफिरखाना क्षेत्र की एक ऐतिहासिक भूमि है, जो आज भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरा राष्ट्र वीरों द्वारा दिए गए बलिदान की गवाही दे रही है. इस शांत स्थल पर, एक ऐसा कुआं है, जिसमें अंग्रेजों ने 600 भारतीय क्रांतिकारियों के सिर काटकर डाले थे. यह सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक इतिहास है, शौर्यगाथा है और मां भारती के महान सपूतों के बलिदान की कहानी है.
यहां पर 600 से अधिक वीर सपूतों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी. 7 बार अंग्रेजों को पीछे धकेलने के बाद, अंत में घुसपैठियों की वजह से वीर सपूतों को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन इन सैनिकों ने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपनी जान दी, बिना किसी भय के. यही वजह है कि आज भी कादूनाला की मिट्टी आज भी बलिदानियों के रक्त से सनी हुई है.
कादूनाला में अंग्रेजों और भारतीय क्रांतिकारियों के बीच भीषण संग्राम हुआ था. 1857 में जब जनरल फ्रैक्स की सेना ने सुल्तानपुर तक कब्जा कर लिया था, तो कादूनाला की भूमि पर भाले सुल्तानियों की सेना ने अंग्रेजों को ललकारा. 1857 में सात और आठ मार्च को इस भूमि पर हुए युद्ध में भारतीय वीरों ने अंग्रेजी सेना को खदेड़ दिया.
वीर देश के लिए अपनी जान की बिना परवाह करते हुए अंग्रेजों से लोहा लेते रहे. लेकिन युद्ध के यानी 9 मार्च अगले दिन, कुछ गद्दारों ने अंग्रेजों को कादूनाला पार करने का रास्ता बता दिया. 9 मार्च को सुबह होते ही भारतीय सेनानियों को अंग्रेजों द्वारा पीछे से घेर लिया गया. अंग्रेजों से घिर देख वीर सपूतों ने खुद को बलिदान कर लिया, लेकिन अंग्रेजों के सामने झुके नहीं. अंग्रेजों ने छल पूर्वक क्रांतिकारियों पर पीछे से हमला तक दिया, इस दौरान निहत्थे क्रांतिकारियों पर अंग्रेजों ने गोली चलाईं, कई क्रांतिकारियों के सिर को काट दिया. वहीं बड़ी संख्या में क्रांतिकारियों को टीकाराम के बाग में फांसी पर लटका दिया.
कादूनाला की धरती पर, करीब 600 वीरों ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की आहुति दी. उन्ही वीरों में से एक थे, सुल्तानपुर जिले के कांपा गांव निवासी रघुबीर सिंह…उनका सिर अंग्रेजों ने सबसे पहले काटा और उसे कुएं में फेंक दिया. कादूनाला में आज भी शहीदों का सिरमौर बना उनका बलिदान याद किया जाता है.
युद्ध तो 9 नवंबर 1857 को ही खत्म हो गया था, लेकिन फिर भी अंग्रेज इस स्थान पर कब्जा नहीं कर पाए, हालांकि बाद में कई महीनों बाद 28 अक्टूबर को अंग्रेजी सेना ने कादूनाला की धरती पर कब्जा कर लिया. कब्जा भले ही अंग्रेजों का हो गया हो, लेकिन उस युद्ध के बाद भी, कादूनाला की मिट्टी पर बलिदानियों की गूंज हमेशा बनी रही. यहां आज भी हर साल 9 मार्च को श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें क्षेत्र के लोग शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एकत्र होते हैं.
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कादूनाला की वीर भूमि पर जिन 600 से अधिक भाले सुल्तानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. उनमें बैसवारा के राजा राणा वेनी माधव, हलियापुर के अंगद सिंह जैसे तमाम वीरों का नाम भी शामिल है. यही कारण है कि कादूनाला का युद्ध केवल एक लड़ाई नहीं था, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया. वीर सपूतों ने न केवल अपनी जान दी, बल्कि इस संघर्ष से हमें यह संदेश भी दिया कि राष्ट्र की रक्षा के लिए किसी भी बलिदान को स्वीकार करना चाहिए.