अगर बात स्वतंत्रता संग्राम के उन नायकों की हो, जिन्होंने न केवल स्वाधीनता की क्रांति में भाग लिया बल्कि अपनी लेखनी से भी युवाओं को प्रोत्साहित किया, तो मन्मथनाथ गुप्त का नाम सबसे प्रमुख है. मन्मथनाथ गुप्त का जन्म 7 फरवरी 1908 को काशी में हुआ था. उनका जीवन हर पल एक नया संघर्ष था. वह मात्र 13 वर्ष की आयु में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए और जेल की सजा भी काटी.
क्रांतिकारी सफर की शुरुआत
मन्मथनाथ जी का जीवन बहुत ही प्रेरणादायक रहा है. जब वह सिर्फ तेरह साल के थे, तब उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई और युवराज के बहिष्कार का पर्चा बांटते हुए गिरफ्तार कर लिए गए. इसके बाद, 1921 में उन्हें तीन महीने की सजा हुई. जब वह सत्रह साल के थे, तो उन्होंने काकोरी एक्शन में भाग लिया, जिसमें ट्रेन को रोककर ब्रिटिश खजाना लूटा गया था. यही वह समय था जब उनका नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया.
जेल में रहते हुए गहन अध्यन
मन्मथनाथ गुप्त का जेल में बिताया गया जीवन भी बेहद कठिनाइयों से भर रहा. लेकिन जेल में रहते हुए वह इनता दृढ़ हो गए थे कि काकोरी कांड में गिरफ्तारी के बाद उन्हें चौदह साल की सजा हुई. जेल में रहने के दौरान उन्होंने समय का सदुपयोग किया. उन्होंने न केवल भारतीय भाषाएं सीखी, बल्कि भारतीय इतिहास का गहरा अध्ययन किया और यह समझने की कोशिश की कि किन कारणों से भारत पराधीन हुआ.
लेखन के माध्यम से संघर्ष
जेल से रिहा होने के बाद मन्मथनाथ जी ने लेखन को अपनी प्रमुख गतिविधि बना लिया. उनकी रचनाओं का मुख्य उद्देश्य जन जागरण था. वे अपनी लेखनी के जरिए स्वतंत्रता संग्राम के लिए लोगों को प्रेरित करते रहे. उनकी प्रमुख किताबें ‘भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास’, ‘क्रांतिकारी के अनुभव’, ‘चन्द्रशेखर आजाद’, और ‘विजय यात्रा’ आज प्रसिद्ध हैं. उनके लेखन में क्रान्ति और साहस के ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जो आज भी समाज के लिए प्रेरणादायक हैं.
संशोधित संस्करणों की रचना
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, मन्मथनाथ गुप्त ने न केवल नए साहित्य की रचना की, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिखे गए अपने ग्रंथों के संशोधित संस्करण भी प्रकाशित किए. ‘भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन का इतिहास’ जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों के नए संस्करण ने उन्हें एक ऐतिहासिक लेखक के रूप में प्रतिष्ठित किया.
नई दिशा में लेखन
मन्मथनाथ जी का लेखन सिर्फ ऐतिहासिक और क्रांतिकारी नहीं था, बल्कि वह वैज्ञानिक लेखन में भी रुचि रखते थे. उनके कथा साहित्य में मनोविश्लेषण की गहरी छाप देखने को मिलती है. सिद्धांतों का गहन अध्ययन और उनके आधार पर लिखे गए लेखन से उन्होंने अपनी सृजनात्मकता का नया आयाम स्थापित किया.
जीवन का अंतिम समय
स्वतंत्रता के बाद मन्मथनाथ गुप्त भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से जुड़े योजना, बाल भारती और आजकल जैसी पत्रिकाओं के संपादक बने. जीवन के अंतिम वर्षों में वह दिल्ली में बस गए थे. 26 अक्टूबर 2000 को 92 वर्ष की आयु में, दीपावली के दिन उनका देहावसान हो गया.
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मन्मथनाथ गुप्त का जीवन संघर्ष, साहस और लेखन का अद्भुत मिश्रण रहा. उनकी रचनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम की जो गाथा लिखी, वह आज भी हमारी प्रेरणा है. चाहे क्रान्तिकारी आंदोलन हो, साहित्य रचना हो या भारतीय इतिहास का गहन अध्ययन—उनका हर कदम इतिहास के पन्नों पर अमर रहेगा.