लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जबरन धर्म परिवर्तन कर निकाह कराने के मामले में गाज़ियाबाद के मौलाना मोहम्मद शाने आलम की जमानत याचिका को खारिज कर दी है। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने यह कहते हुए जमानत याचिका खारिज की कि जबरन धर्म परिवर्तन कर निकाह कराना एक गंभीर अपराध है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि फादर, मौलवी या मौलाना समेत कोई भी व्यक्ति किसी का जबरन धर्मांतरण नहीं कर सकता। बल, झूठ, धोखाधड़ी, जबरदस्ती या प्रलोभन के माध्यम से धर्मांतरण कराने पर यूपी धर्मांतरण विरोधी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी, चाहे आरोपी कोई भी हो।
‘धर्म परिवर्तन कराने वाले मौलाना को जमानत नहीं’
कोर्ट ने कहा कि पीड़िता, जो एक कंपनी में काम करती है उसने बयान दिया है कि मौलाना ने उसे इस्लाम अपनाने के लिए दबाव डाला और उसका निकाह कराया गया। पीड़िता ने अपने बयान में कहा है कि उसका शारीरिक शोषण किया गया और अमान ने इस्लाम कबूल करने के लिए दबाव डाला। निकाह जबरन कराया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जबरन धर्मांतरण कर निकाह कराना न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि यह गंभीर अपराध भी है। संविधान सभी धर्मों को समान मानता है, लेकिन इस मामले में जबरन धर्मांतरण कर निकाह कराना अस्वीकार्य है।
धर्मांतरण के आरोपी मौलाना को हाईकोर्ट ने सुनाई खरी-खरी
मौलाना मोहम्मद शाने आलम की जमानत अर्जी को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बिना अनुमति के निकाहनामा बनाना और धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालना, अपराध की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने कहा कि संविधान सभी को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन कर निकाह कराने का मामला संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।
‘अधिनियम 2021 की अवहेलना की गई है, जो कि दंडनीय है’
कोर्ट ने कहा कि आरोपी मौलवी उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021 के तहत धर्म परिवर्तन कराने के लिए उत्तरदायी है। उसने आरोपी अमान के साथ पीड़िता का निकाह करवाया था। धर्मांतरण के संबंध में अधिनियम 2021 की अवहेलना की गई है, जो कि दंडनीय और अपराध की श्रेणी में आती है।
जबरन धर्म परिवर्तन कर निकाह कराने के आरोप में गिरफ्तार हुआ था मौलवी
इस टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में मौलाना मोहम्मद शाने आलम की जमानत याचिका खारिज कर दी है, जो जबरन धर्म परिवर्तन कर निकाह कराने के आरोप में गिरफ्तार हुआ था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह मामला संविधान द्वारा दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है, इसलिए जमानत नहीं दी जा सकती।