नई दिल्ली: केंद्र सरकार लेटरल एंट्री के माध्यम से मिड-लेवल पर 45 विशेषज्ञों को नियुक्त करने जा रही थी। इसको लेकर विज्ञापन भी जारी हो गया था। लेकिन, विपक्ष ने इसको लेकर विरोध करना प्रारंभ कर दिया। आरक्षण खत्म कर देने से लेकर कई बातें विपक्षी नेताओं द्वारा कही जाने लगीं। जिसके बाद पीएम मोदी के निर्देश पर कार्मिक मंत्रालय ने इस आदेश को वापस ले लिया है।
फिलहाल, UPSC ने लेटरल एंट्री भर्ती के विज्ञापन को केंद्र सरकार ने वापस ले लिया है आज भले ही कांग्रेस मोदी सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रही हो। लेकिन, प्रधानमंत्री रहते हुए जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने लेटरल एंट्री के जरिए विभिन्न विभागों में विशेषज्ञों में प्रशासन में बैठाया। जिसमें से पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह, योजना आयोग (अब नीति आयोग) के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे कई दिग्गजों का नाम शामिल है।
डायरेक्ट भर्ती की अगर बात करें तो यह प्रक्रिया 1959 में प्रधानमंत्री रहते हुए जवाहर लाल नेहरू ने प्रारंभ की थी। नेहरू ने इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पूल की शुरुआत की जिसके बाद मंतोष सोधी को प्रशासन में प्रवेश दिलाया जो बाद में भारी उद्योग मंत्रालय के सचिव बने। इसके बाद वी कृष्णमूर्ति को भी नेहरू ने लेटरल एंट्री के जरिए प्रशासन में शामिल किया, उन्होंने भी भारी उद्योग के सचिव पद पर कार्य किया। डीवी कपूर को शामिल किया गया वह बिजली, भारी उद्योग और रसायन मंत्रालय के सचिव रहे। 1959 से पहले 1954 में, आईजी पटेल IMF से उप आर्थिक सलाहकार के रूप में जिम्मेदारी दी गई थी। बाद में उन्होंने आर्थिक मामलों के सचिव और RBI गवर्नर की भी जिम्मेदारी संभाली।
साल 1971 में इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेटरल एंट्री के माध्यम से वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप नियुक्ति दी थी। बाद में वह आरबीआई गवर्नर जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। 1979 में मोंटेक सिंह अहलूवालिया को भी सीधी भर्ती के माध्यम से आर्थिक सलाहकार की जिम्मेदारी दी गई। जिसके बाद वह 2004 से लेकर 2014 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे।
प्रधानमंत्री रहते हुए राजीव गांधी ने केरल इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के अध्यक्ष केपीपी नांबियार को इलेक्ट्रॉनिक्स सचिव नियुक्त किया था। साथ ही उन्होंने सैम पित्रोदा को सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स की जिम्मेदारी सौंपी। इसी प्रकार 1980-1990 तक सरकार ने कई लोगों को सीधी भर्ती के जरिए अतिरिक्त सचिव स्तर पर आए और फिर उन्होंने सचिव स्तर तक पहुंचे।