इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ डिवीजन बेंच ने केंद्र सरकार द्वारा 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने के निर्णय में दखल देने से इनकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि यह सरकार का नजरिया है कि 25 जून 1975 को आपातकाल के दौरान हुई ‘ज्यादतियों’ को कैसे देखती है।
जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस श्रीप्रकाश सिंह की बेंच ने शुक्रवार को याचिका में कोई भी दखल देने से इनकार हुए यह स्पष्ट किया कि कोर्ट राजनीतिक पचड़ों में नहीं पड़ सकती और सरकार के राजनीतिक निर्णय पर प्रश्न नहीं उठा सकती। हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने 11 और 13 जुलाई 2024 को जारी किए गए दो शासनादेशों को चुनौती दी थी, जिसमें ‘संविधान हत्या दिवस’ के नामकरण को उन्होंने अनुचित बताया था।
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याचिका में दावा किया गया था कि इस नामकरण से गलत संदेश जाता है और यदि संविधान की हत्या हुई होती तो देश में लोकतंत्र नहीं होता। याचिकाकर्ता का कहना था कि आपातकाल के दौरान लोगों पर ‘अत्याचार’ हुए थे, लेकिन संविधान की हत्या नहीं हुई। याचिकाकर्ता ने सुझाव दिया कि 25 जून को ‘संविधान रक्षा दिवस’ के रूप में मनाना अधिक उचित होता। इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने कुछ देर याचिका की सुनवाई के बाद इस मामले में कोई भी दखल देने से इनकार कर दिया।
दिल्ली हाई कोर्ट ने भी खारिज की याचिका
दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने भी शुक्रवार देर शाम ‘संविधान हत्या दिवस’ को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। याचिका में केंद्र सरकार द्वारा हर साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी और 1975 के आपातकाल के खिलाफ संघर्ष करने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देने की बात की गई थी। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि केंद्र की यह अधिसूचना संविधान का उल्लंघन या अनादर नहीं करती है।