प्रयागराज- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामलों में ट्रायल कोर्ट द्वारा पीड़िता की आयु निर्धारण की मेडिकल रिपोर्ट पर विचार किए बगैर जमानत अर्जियों को खारिज किए जाने पर कड़ी टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने जालौन के अनिरूद्ध की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्टें पीड़िता की आयु पर विचार किए बिना यांत्रिक तरीके से जमानत अर्जियों को तय कर रही हैं, जो न्यायिक प्रणाली के लिए गर्भपात जैसा है और यह रवैया उनके पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित करता है। हाईकोर्ट ने न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान लखनऊ, जिला जजों, पुलिस महानिदेशकों और अभियोजन कार्यालय को इस मामले में ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है।
उन्होंने सतत लर्निंग प्रोग्राम के तहत न्यायाधीशों और अधिकारियों को प्रशिक्षित कर उनकी कार्य संस्कृति या मानसिकता को सुधारने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे निर्दोष लोग अनावश्यक रूप से जेल में न बंद रहें। न्यायालय ने कहा कि जमानत का संबंध व्यक्ति के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मूल अधिकार से है, जो न केवल विधिक अपितु संवैधानिक अधिकार है। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति भनोट ने ट्रायल कोर्टों को पॉक्सो मामलों में जमानत अर्जियों का निस्तारण करते समय पीड़िता की आयु को पूरा महत्व देने और उससे जुड़े सभी दस्तावेजों की सावधानीपूर्वक जांच करने का निर्देश दिया।
जालौन के याची के खिलाफ दुष्कर्म सहित IPC की विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जबकि पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि वे दोनों आपसी सहमति से संबंधों में थे। कोर्ट ने पाया कि पीड़िता की उम्र को लेकर विरोधाभास है। स्कूल के रिकॉर्ड में उसकी उम्र 13 साल 2 माह दर्ज है, जबकि उसने अपनी उम्र 15 साल बताई और चिकित्सकीय रिपोर्ट में उसकी उम्र 18 वर्ष पाई गई। कोर्ट ने कहा कि अक्सर लोग स्कूल में वास्तविकता से विपरीत कम आयु लिखाते हैं, इसलिए इस विरोधाभास पर मेडिकल रिपोर्ट पर भरोसा करना चाहिए।
कोर्ट ने 40 ऐसे मामलों का अवलोकन किया जहां कोर्ट ने पॉक्सो केस मानते हुए जमानत अर्जियों को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने मोनिस और अमन केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का हवाला देते हुए जांच और ट्रायल कोर्टों के फैसलों पर खेद जताया। कोर्ट ने कहा कि जब पीड़िता की आयु निर्धारण के मामले में विरोधाभास है और पीड़िता की ओर से याचियों के खिलाफ कोई आपत्तिजनक बातें नहीं कही गईं, फिर भी ट्रायल कोर्टों ने जमानत अर्जियों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पॉक्सो मामलों में पीड़िता की आयु मेडिकल जांच से तय की जाए और विवेचना अधिकारी ऐसी रिपोर्ट जमानत अर्जी सुनवाई कर रही अदालत में पेश करें। DGP को सर्कुलर जारी कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कड़ाई से पालन करने का भी निर्देश दिया गया है।
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