Dark Net:- भारत में प्रत्येक वर्ष लाखों स्टूडेंट किसी ना किसी कॉम्पिटिटिव एग्जाम की तैयारी करते हैं। जिससे उन्हें सफलता हासिल हो और वे अपने भविष्य को उज्जवल बना सकें। इन परीक्षाओं में कई परीक्षाएं तो इतनी अधिक हार्ड होती है जिसके लिए छात्रों को 2 से 3 साल तक तैयारी करनी पड़ती है। लेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं, जो कुछ घंटों के अंदर ही इन परीक्षाओं के पेपर लीक कर छात्रों की मेहनत को बर्बाद कर देते हैं। दरअसल, पिछले कुछ समय से देश की कई बड़ी परीक्षाओं के पेपर लगातार लीक हो रहे हैं। अभी हाल ही में नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) का पेपर लीक हुआ।
जिसे लेकर पूरे देशभर के छात्रों में आक्रोश का माहौल है। बता दें कि NEET का मामला अभी थमा भी नहीं और यूजीसी नेट (UGC NET) का पेपर भी लीक हो गया। जिसने लाखों छात्रों का भविष्य अंधकार में डाल दिया। परीक्षाओं के पेपर लीक मामले को लेकर केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। जिसमें उन्होंने बताया कि ये पेपर डार्ट नेट (Dark Net) पर लीक हुए थे। अब सवाल यह उठता है कि आखिर यह Dark Net है क्या! जिस पर पेपर लीक होने के बाद अपराधियों का पता नहीं चल पाता। इसी बात का फायदा उठा कर स्कैमर लगातार देश की कई बड़ी परीक्षाओं के पेपर लीक करने में सफल हो जाते हैं।
जानिए क्या है Dark Net-
बता दें कि Dark Net इंटरनेट का वो हिस्सा होता है। जहां वैध या अवैध, तरीके के काम को अंजाम दिया जाता है। आपको जानकार हैरानी होगी कि इंटरनेट का जितना हिस्सा हम लोग यूज करते है वह केवल 4% है। जिसे Surface Web कहा जाता है। जबकि इंटरनेट का 96% हिस्सा Dark Web या Deep Web के अंदर आता है। यहां मौजूद प्रत्येक कंटेंट को एक्सेस करने के लिए पासवर्ड की जरूरत होती है।
कैसे दिया जाता है अवैध कामों को अंजाम-
साइबर एक्सपर्ट Dark Web को ओपन करने के लिए टॉर ब्राउजर का इस्तेमाल करते हैं। Dark Web का इस्तेमाल मुख्यता अवैध कामों को अंजाम देने के लिए किया जाता हैं। यहां केवल पेपर ही लीक नहीं होते, बल्कि यहां ड्रग्स, हथियार की तस्करी, किसी की सुपारी देना, कॉन्फिडेंशन पासवर्ड और डॉक्यूमेंट शेयर करना, यहां तक कि चाईल्ड पॉर्न शेयर करने जैसे अवैधे कामों को अंजाम दिया जाता है। Dark Web पर मौजूद स्कैमर्स बेहद सस्ते में उन चीजों को बेच देते हैं, जो ओपन मार्केट में बैन होती हैं। अब आपके दिमाग में एक सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये लोग पकड़े क्यों नहीं जाते!
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि ये वो टेक्नोलॉजी है जिस पर डार्क वेक काम करता है। बता दें डार्क वेब ओनियन राउटिंग टेक्नोलॉजी पर काम करता है। ये टेक्नोलॉजी यूजर्स को ट्रैकिंग और सर्विलांस से बचाती है। इसके अलावा यह टेक्नोलॉजी यूजर की गोपनीयता को भी बरकरार रखने के लिए रूट और री-रूट करती है। डार्क वेब बहुत सारे IP-एड्रेस से कनेक्ट और डिस्कनेक्ट होता है। जिससे यूजर को ट्रैक कर पाना बेहद मुश्किल होता है। इसके अलावा यहां पर की जाने वाली डीलिंग के लिए वर्चुअल करेंसी जैसे बिटकॉइन का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे इन्हें पकड़ पाना बेहद मुश्किल होता है।
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