Prayagraj News- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1995 के मामले में मेरठ के विधायक रफीक अंसारी को राहत देने से इनकार करते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी है। बता दें कि याचिका में एनबीडब्ल्यू आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने इस आदेश को यह देखते हुए दिया कि सपा नेता 1997 और 2015 के बीच 100 से अधिक गैर जमानती वारंट जारी होने के बावजूद अदालत में पेश होने में विफल रहे।
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जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि मौजूदा विधायक के खिलाफ गैर-जमानती वारंट का निष्पादन न करना और उन्हें विधानसभा सत्र में भाग लेने की अनुमति देना एक खतरनाक और गम्भीर मिसाल कायम करता है। गम्भीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे व्यक्तियों को कानूनी जवाबदेही से बचने की अनुमति देकर हम कानून के शासन के प्रति दंडमुक्ति और अनादर की संस्कृति को कायम रखने का जोखिम उठाते हैं। उच्च न्यायालय ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एमपी-एमएलए कोर्ट में लम्बित आईपीसी की धारा 147, 436 और 427 के तहत आपराधिक मामले से सम्बंधित अंसारी की रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की।
इस मामले में उपरोक्त धाराओं के अपराध के लिए 35-40 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ सितम्बर 1995 में एफआईआर दर्ज की गई। जांच पूरी होने के बाद 22 आरोपितों के खिलाफ पहला आरोप-पत्र प्रस्तुत किया गया। उसके बाद आवेदक अंसारी के खिलाफ एक और पूरक आरोप-पत्र प्रस्तुत किया गया। जिस पर सम्बंधित अदालत ने अगस्त 1997 में संज्ञान लिया। अंसारी अदालत के सामने पेश नहीं हुए, इसलिए 12 दिसम्बर 1997 को एनबीडब्ल्यू जारी किया गया। बाद में बार-बार एनबीडब्ल्यू (संख्या 101) और धारा 82 सीआरपीसी के तहत प्रक्रियाओं के बावजूद आवेदक कोर्ट के सामने पेश नहीं हुआ।
न्यायालय ने यूपी के पुलिस महानिदेशक को यह भी निर्देश दिया कि वह अंसारी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा पहले ही जारी किए गए गैर जमानती वारंट की तामील सुनिश्चित करें। यदि वह अभी तक तामील नहीं हुआ है और अगली तारीख पर अनुपालन हलफनामा दायर किया जाएगा। अनुपालन हलफनामा दाखिल करने के सीमित उद्देश्य के लिए मामले को 22 जुलाई के लिए सूचीबद्ध करने का कोर्ट ने निर्देश दिया है।