सोमवार को मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान हिंदू पक्ष ने दलील देते हुए कहा कि मंदिर और मस्जिद प्रशासन के बीच 1968 में हुआ समझौता श्रद्धालुओं पर लागू नहीं होता है। हिंदू पक्ष ने कहा कि ये समझौता वादी पर बाध्यकारी है। इसके साथ न ही इसमें ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ लागू होगा और न ही ‘लिमिटेशन एक्ट’। फिलहाल अब इस मामले में अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।
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18 अर्जियों पर एक साथ हो रही है सुनवाई
बता दें कि इस मामले में मुस्लिम पक्ष की बहस पहले ही पूरी हो चुकी है। हाईकोर्ट में अभी मुकदमों की पोषणीयता पर सुनवाई चल रही है। मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष की ओर से दाखिल अर्जियों को खारिज करने की मांग की है, जिसमें मुख्य रूप से 1991 के ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, वक्फ एक्ट, स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट और लिमिटेशन एक्ट’ का हवाला देकर हिंदू पक्ष की याचिकाओं को खारिज करने के लिए दलील दी है। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट 18 अर्जियों पर एक साथ सुनवाई कर रहा है। अयोध्या विवाद की तर्ज पर जिला अदालत के बजाय सीधे तौर पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है।
क्या है पूरा मामला ?
बता दें कि मथुरा में 13.37 एकड़ जमीन के हिस्से को लेकर ये विवाद करीब 350 साल पुराना है। 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर मंदिर बना है,, जबकि 2.37 एकड़ भूमि पर शाही ईदगाह बनी है। हिंदू पक्ष का दावा है कि जन्मभूमि पर प्राचीन केशवनाथ मंदिर था, जबकि शाही ईदगाह का निर्माण 1669-70 में हुआ बताया जाता है। इस मामले में हिंदू पक्ष का दावा है कि औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर मस्जिद बनवाई थी। हिंदू पक्ष का ये भी कहना है कि 1968 का जमीन समझौता अवैध है और इसे रद्द किया जाए।