विश्व का एक मात्र यहूदी देश इजरायल,, जो चारों ओर से मुस्लिम राष्ट्रों से घिरा हुआ है। क्षेत्रफल और आबादी के हिसाब से वैसे तो इजरायल बहुत छोटा है, लेकिन उसकी सैन्य ताकत का कोई जवाब नहीं है। छोटा देश होने के बावजूद इजरायल अपने विरोधियों को मुंह तोड़ जवाब देने में सक्षम है। उसकी सेना तकनीकी तौर पर बहुत मजबूत है। इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद दुनिया की ताकतवर एजेंसियों में से एक है, जो किसी भी ऑपरेशन को कहीं भी अंजाम दे सकती है।
ये भी पढ़ें- ईरान ने इजरायल पर किया ड्रोन अटैक, इजरायली राजदूत बोले- ‘भारतीयों की होगी रक्षा’
हमास के आतंकी तो अक्सर इजरायल पर हमला करते रहते हैं और ये यहूदी देश उनको हर बार कड़ा सबक सिखाता है। इजरायल और हमास में जारी जंग के बीच अब एक और राष्ट्र ने इजरायल पर हमला बोला है, जिससे नए युद्ध का खतरा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। दरअसल 14 अप्रैल को ईरान ने इजरायल पर ड्रोन हमला किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ईरान का ये हमला बीती एक अप्रैल को सीरिया की राजधानी दमिश्क में उसके कॉन्सुलेट के हमले के जवाब में किया गया था।
इजरायल पर हमले के बाद ईरान की सेना का कहना है कि उसका मकसद पूरा हो गया है और अब उसे और हमले की जरूरत नहीं है। ईरान का ये भी कहना है कि अगर अमेरिका या इजरायल की तरफ से कोई कार्रवाई होती है, तो इसका मजबूती के साथ जवाब दिया जाएगा। वहीं, इजरायल ने कहा है कि सही वक्त आने पर इसकी सही कीमत वसूली जाएगी।
तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से दावा किया गया है कि 14 अप्रैल की रात इजरायल की वॉर कैबिनेट ने ईरानी हमले का जवाब देने का मन बना लिया था, लेकिन उसी रात अमेरिका ने इजरायल को ईरान पर हमला करने से रोक दिया था। अब अगर ये हमला होगा तो कब और कैसे होगा, इसको लेकर काफी सारे कयास लगाए जा रहे हैं।
ईरान और इजरायल के बीच कैसे बढ़ी टेंशन ?
इसकी शुरुआत एक अप्रैल को सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरान के कॉन्सुलेट पर हवाई हमले से हुई। इस हमले में 13 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें 6 सीरियाई नागरिक थे। मारे गए लोगों में ईरान के इस्लामिक रिवॉल्युशनरी गार्ड्स कोर (IRGC) में ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद रजा जाहेदी भी थे। फरवरी 2020 में जनरल सुलेमानी की हत्या के बाद ये दूसरी घटना थी जब ईरान के टॉप कमांडर की मौत हुई। हमले के लिए ईरान ने इजरायल को जिम्मेदार ठहराया था। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई ने कहा था कि हमले का ऐसा जवाब दिया जाएगा कि उन्हें अपने किए पर पछतावा होगा।
कभी सामान्य हुआ करते थे ईरान और इजरायल के रिश्ते
आज ईरान और इजरायल भले ही आमने-सामने हों, लेकिन कभी इनके रिश्ते सामान्य हुआ करते थे। रिश्तों में खटास की वजह ईरान की क्रांति को माना जा सकता है। दरअसल, 1948 में जब दुनिया के नक्शे में इजरायल का जन्म हुआ तो स्थापना के बाद उसे मान्यता देने वाला ईरान,, तुर्की के बाद दूसरा मुस्लिम-बाहुल्य देश था। उस वक्त ईरान में पहलवी राजवंश का शासन था। इस राजवंश ने आधे से ज्यादा समय तक ईरान में शासन किया था।
देश बनने के बाद इजरायल गैर-अरब राष्ट्रों के साथ संबंध स्थापित करने में लगा हुआ था। आगे बढ़ते हुए इजरायल ने ईरान की राजधानी तेहरान में एक दूतावास की स्थापना की। दोनों देशों ने एक दूसरे के यहां अपने राजदूत नियुक्त किए। व्यापारिक संबंध बढ़ते गए और जल्द ही ईरान,, इजरायल के लिए तेल आपूर्ति का प्रमुख स्त्रोत बन गया। दोनों ने 1968 में एक पाइपलाइन शुरु की, जिसका उद्देश्य ईरान के तेल को इजरायल और यूरोप भेजना था।
ईरान की क्रांति से आई रिश्तों में खटास
ईरान की 1979 में हुई क्रांति ने दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास ला दी। अयातुल्ला रुहोल्लाह खामेनेई ने ईरान की सत्ता से शाह मोहम्मद रजा पहलवी को बेदखल कर दिया। इसके साथ एक नए ईरान का जन्म हुआ और सत्ता पर क्रांति के नेता अयातुल्ला रुहोल्लाह खामेनेई आ गए। क्रांति के बाद ईरान ने इजरायल के साथ सभी संबंध तोड़ लिए। तेहरान में इजरायली दूतावास को फिलिस्तीनी दूतावास में बदल दिया गया।
दशकों तक दुश्मनी बढ़ती गई। इस बीच दोनों पक्षों ने पूरे क्षेत्र में अपनी शक्ति और प्रभाव को और मजबूत करना शुरू कर दिया। बाद में दोनों देशों के संबंध और भी खराब होते चले गए, क्योंकि इजरायल ने आरोप लगाया कि ईरान ने सीरिया, इराक, लेबनान और यमन में राजनीतिक और सशस्त्र समूह खड़े किए और उन्हें आर्थिक मदद दी।
ईरान पर आरोप लगते रहे कि वो लेबनान, सीरिया, इराक और यमन सहित पूरे क्षेत्र के कई देशों में प्रॉक्सी नेटवर्क का समर्थन करता है। इस समूह को ‘प्रतिरोध की धुरी’ के रूप में जाना जाता है जो फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन करने के साथ-साथ इजरायल को एक प्रमुख दुश्मन मानते हैं। इनमें लेबनान में मौजूद हिजबुल्लाह प्रमुख है, जिसका गठन 1982 में दक्षिणी लेबनान में इजरायली कब्जे से लड़ने के लिए किया गया था। पिछले कुछ वर्षों में ईरान और इजरायल के बीच ये प्रॉक्सी युद्ध काफी बढ़ गया है।