लखनऊ: सनातन संस्कृति में फाल्गुन माह का विशेष महत्व है। इसी महीने में होली का पर्व मनाया जाता है। होली भारत के सबसे लोकप्रिय पर्वों में से एक है। इस विशेष रिपोर्ट में हम आप को बताने वाले हैं कि देश भर में होली… अलग-अलग परंपराओं के अनुसार कैसे मनाई जाती है। पूरी रिपोर्ट जरूर पढें।
हिंदू पंचाग के अनुसार, फाल्गुन को वर्ष का अंतिम महीना माना जाता है। इसी माह में महाशिवरात्रि और होली जैसे प्रमुख त्यौहार भी मनाए जाते हैं। होलिका दहन के साथ ही फाल्गुन का समापन होता है। सनातन धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्मिणा तिथि को मनाई जाती है। होली हर्ष-उल्लास और आनंद का पर्व है। रंग-गुलाल, फाग गीत और गुझिया के लिए पहचान रखना वाला होली पर्व देश भर में अलग-अलग परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है।
वैसे तो देश और दुनिया भर में होली मनाई जाती है, लेकिन ब्रज की होली विशेष है। मान्यता है कि द्वापरयुग में भगवान कृष्ण ने अपने ग्वाल-बाल और गोपिकाओं के साथ ब्रज की गलियों में होली खेली थी। तभी से यहां फूलों की होली,लड्डू मार होली और लट्ठ मार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। यही वजह है कि ब्रज की होली देखने के लिए देश और दुनिया भर से लोग मथुरा-वृंदावन आते हैं।
लट्ठ मार होली
परंपरा है कि लट्ठ मार होली खेलने के लिए भगवान कृष्ण के नंदगांव से हुरियारे राधा रानी के गांव बरसाना जाते हैं। बरसाना की महिलाएं प्रेम पूर्वक नंदगांव के लोगों पर लाठियां बरसाती हैं। साथ ही अबीर-गुलाल और जमकर रंगों की बरसात होनी है। बरसाना में लठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। यह होली बहुत शुभ मानी जाती है। मान्यताओं के अनुसार, बरसाने की महिलाओं की लाठी जिसके भी सिर पर छू जाती है,वह बहुत सौभाग्यशाली होता है। लट्ठ मार होली खलने से पहले नंदगांव के हुरियार श्रीकृष्ण और दाऊ जी की विग्रह के सामने फाग गीत गाते हैं और उन्हें प्रसन्न करते हैं।
मथुरा- बरसाना में खेली गई लट्ठमार होली, खूब उड़ा अबीर गुलाल
लड्डू मार होली
लट्ठ मार होली की तरह ही ब्रज की लड्डू मार होली भी बहुत प्रसिद्ध है। परंपरा के अनसुार, लड्डू मार होली खेलने के लिए राधा रानी की नगरी बरसाना से सखियां भगवान कृष्ण के गांव नंदगांव आती हैं। जहां वह नंदगांव के लोगों को लट्ठ मार होली खेलने के लिए आमंत्रित करती हैं। आमंत्रण स्वीकार करने के बाद श्रीजी मंदिर बरसाना में लड्डू मार होली खेली जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापरयुग में राधा जी के पिता होली का निमंत्रण लेकर नंद बाबा के वहां गए थे। नंदबाबा ने उनका निमंत्रण स्वीकार किया था। नंद बाबा ने राधा जी के पिता का स्वागत लड्डू खिला कर किया था। तभी से लड्डू मार होली खेलने की परंपरा शुरू हुई। जो ब्रजवासी आज भी निभा रहे हैं।
मसान की होली
ब्रज की लट्ठ मार और लड्डू मार होली से बिलकुल अलग अंदाज में काशी में मसान की होली मनाई जाती है। यह होली भगवान काशी विश्वनाथ यानी शंकर जी को समर्पित है। कथाओं के अनुसार,भगवान शिव ने मसान की होली खेलने की शुरुआत की थी। माना जाता है कि रंग भरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती का गौना करा कर उन्हें काशी लेकर आए थे। तब उन्होंने अपने गणों की आग्रह पर रंग-गुलाल की होली खेली थी।
लेकिन, तब भोलेनाथ श्मशान में रहने वाले भूत, प्रेत और पिशाचों के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसीलिए भोलनाथ रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन श्मशान पहुंचे और यहां उन्होंने उनके साथ मसान की होली खेली। भोलीनाथ ने यह होली चिताओं की भस्म से खेली थी। यह परंपरा आज भी काशी में प्रचलित है। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर आज भी यह होली खेली जाती है। मसान की होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।
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