रायबरेली: दशकों से कांग्रेस का गढ़ रही रायबरेली लोकसभा सीट पर मुकाबले हमेशा रोचक ही रहे हैं। कभी यहां इंदिरा गांधी को हार मिली तो कभी बंपर जीत। हालांकि, जीते के बाद भी इंदिरा गांधी का यहां से मोहभंग हुआ। रायबरेली में भारतीय राजनीति की दो दिग्गज़ महिलाओं के बीच हुई चुनावी जंग, आज भी इतिहास में दर्ज है। इसकी चर्चा हमेशा होती रहती है।
वर्ष 1980 में रायबरेली से इंदिरा गांधी चुनाव लड़ रही थीं। इंदिरा गांधी को टक्कर देने के लिए जनता पार्टी की ओर से रणनीति तैयार की जा रही थी। लेकिन, कोई भी यहां से चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं था। ऐसे में खुद ग्वालियर की राजमाता और दिग्गज़ नेत्री विजयाराजे सिंधिया ने रायबरेली से इंदिरा गांधी को चुनौती देने का मन बनाया। जनता पार्टी ने उन्हें टिकट देते हुए मैदान में उतार दिया। राजमाता के रायबरेली से चुनाव लड़ने पर इंदिरा गांधी भी हैरान थीं। इंदिरा लहर तो थी, लेकिन राजमाता का आकर्षण जनता में बहुत था। उनकी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही थी।
पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पांडेय कहते हैं कि गांव-गांव में राजमाता के प्रति बड़ी श्रद्धा थी, आमजन विशेषकर महिलाओं में उनके पैर छूने की होड़ लगी रहती थी। बिना किसी बंदोबस्त के ही मीटिंग्स में खूब भीड़ होती थी। राजमाता के जनता से मिलने का तरीका भी अलग था। बावजूद इसके जनता पार्टी के पास न तो मजबूत संगठन था और न ही संसाधन। इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने जीत दर्ज की। उन्होंने विजयाराजे सिंधिया को 1,73,654 वोटों से हराया। राजमाता विजयाराजे सिंधिया को मात्र 50,249 वोट ही मिल सके। हालांकि, इस चुनाव में हारने के बाद भी राजमाता का जुड़ाव रायबरेली की जनता से बना रहा और वह यहां के कार्यकर्ताओं से जुड़ी रहीं।
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वर्ष 1980 में रायबरेली से चुनाव इंदिरा गांधी के लिए अंतिम चुनाव रहा। यहां से भारी मतों से जीत दर्ज करने के बाद भी उनका यहां से मोहभंग हो गया और उन्होंने रायबरेली की अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। दरअसल, इंदिरा ने आंध्र प्रदेश की मेंडक सीट से भी चुनाव लड़ा था। यहां भी उनकी जीत हुई थी। उन्होंने मेंडक सीट को बरकरार रखा, जबकि रायबरेली से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1980 में इस सीट पर उपचुनाव में अरुण नेहरू समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र को हराकर सांसद बने।