Varanasi News: धर्म की नगरी काशी में रंगभरी एकादशी के अगले दिन गुरूवार को मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिका घाट पर धधकती चिताओं के बीच ‘चिता भस्म’ की होली खेली गई। महाश्मशान घाट पर धधकती चिताओं के बीच हजारों काशीवासियों ने ‘हर-हर महादेव’ के उद्घोष, विशाल डमरूओं की निनाद के बीच चिता भस्म और अबीर की होली खेली।
युवा ‘खेलें मसाने में होरी दिगंबर’ गीत पर देर तक सामूहिक रूप से झूमते रहे। चिता भस्म की होली में शामिल होने के लिए मणिकर्णिका घाट पर युवा शिव भक्तों और पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ी।
घाट पर भीड़ के चलते पैर रखने की जगह भी नहीं बची। गंगा किनारे एक तरफ शव की कतारों के बीच करुण कंद्रन तो, दूसरी तरफ हर-हर महादेव का उद्घोष सुनाई दे रहा था।
काशी में मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के गौने में उनके ससुराल पक्ष के अनुरोध पर बाबा के गण पिशाच, भूत-प्रेत, चुड़ैल, डाकिनी-शाकिनी, औघड़, अघोरी, संन्यासी शामिल नहीं हो पाते हैं। बाबा तो सभी के हैं जो अपने गणों को निराश नहीं करते। जो गौना के अगले दिन मणिकर्णिका पर उनके साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं।
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इसी पौराणिक मान्यता को लेकर काशी में रंगभरी एकादशी के अगले दिन चिता भस्म की होली खेली जाती है। इसके पहले मणिकर्णिका घाट स्थित बाबा महामशानेश्वर महादेव मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर, चैनू प्रसाद आदि की देखरेख से दोपहर में बाबा की विधिवत मध्याह्न आरती हुई। इसी के साथ महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली शुरुवात हो गई।
आयोजन समिति से जुड़े पदाधिकारियों के साथ युवाओं की टोली जलती चिताओं के बीच आ गई। डमरूओं, नगाड़ों की थाप पर ‘हर हर महादेव’ के जयकारों के बीच चिता-भस्म की होली खेली गई।
राग-विराग के इस अद्भुत नजारे को मोबाइल फोन के कैमरे में कैद करने के लिए बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी जमे रहे।
बता दें कि काशी में जीवन और मृत्यु को समभाव के साथ स्वीकारा जाता है। काशी में मंदिर देवस्थान और महाश्मशान का महात्म्य एक समान है।
यहां महादेव तारक मंत्र देकर जीवों को तारने वाले भस्म की होली खेलते हैं।
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