Prayagraj News: तिरुअनन्तपुरम केरल में स्थित आयुष मंत्रालय के शोध संस्थान सिद्ध क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान विभिन्न बीमारियों के उपचार हेतु मोती के औषधि मानकीकरण पर अध्ययन कर रहा है। जिसके लिए प्रभारी निदेशक डॉ. कंगाराजन को संस्थान वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर द्वारा बनाए गए विशेष मोतियों की आवश्यकता है।
शोध में सहयोग व जनहित के लिए डॉ. अजय कुमार ने 100 ग्राम मोतियों का परत मुफ्त में देने का निर्णय लिया है।
डॉ. कंगाराजन के अनुसार शोध के लिए मोती की आपूर्ति के प्रयास में पाया गया कि भारत का मोती बाजार चीन के मीठे पानी के मोती से भरा पड़ा है। इस क्षेत्र के बहुत से लोगों के साथ विचार विमर्ष से निष्कर्ष निकला गया कि उपचार के लिए ये विशेष मोती सिर्फ डॉ. अजय से ही मिल सकते हैं।
हालांकि, इन विशेष मोतियों के निर्माण के लिए प्रयोगशाला की विशेष व नियंत्रित वातावरण की आवश्यकता पड़ती है। जिसकी उत्पादन लागत सामान्य से कई गुना अधिक होती है। संस्थान को अभी के लिए 100 ग्राम मोती की आवश्यकता है। वाह्य तत्वों को पृथक करने के बाद 100 ग्राम खालिस मोतियों की परत प्राप्ति के लिए कई हजार विशेष मोतियों की आवश्यकता पड़ेगी।
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जिसकी लागत लाखों रुपए होगी। शोध के लिए सीमित वित्त के कारण संस्थान के डॉ. सोनकर से मूल्य को कम करने के लिए निवेदन किया था।
उल्लेखनीय है कि 2010 में, डॉ. अजय ने मोती के घटकों के चिकित्सीय महत्व को अनुकूलित करने के लिए एक व्यापक अध्ययन किया। जिसके लिए इन्होंने एसेप्टिक स्थितियों के साथ एक नियंत्रित वातावरण में मोती का उत्पादन करने की विधि को मानकीकृत किया था।
जो दुनिया भर में तमाम पत्र पत्रिकाओं में प्रशंसा के तौर पर प्रकाशित हुई थी। सर्वविदित है कि आज की दुनिया में अधिकांश समुद्री परिस्थितियां प्रदूषण से दूषित हैं। ऐसे में अंडमान में अनछुई समुद्र की गहराई सबसे उपयुक्त पाई गई। डॉ. अजय मोती की परतों को नाभिक, (वाह्य कणों) को हटाते हुए निकालते हैं। जिससे उपचार के लिए उपयोग में लाए जाने वाले ये मोती किसी भी प्रकार के वाह्य तत्व रहित रहे।
इन मोतियों में जिन्क, तांबा, मैग्नीशियम, लोहा, कैल्शियम, सोडियम और पोटेशियम जैसे धातुओं और खनिजों के निशान होते हैं। ये सूक्ष्म पोषक तत्व चयापचय, विकास और प्रतिरक्षा में सहायता करते हैं।
विशेष रूप से जिन्क ने कैंसर जैसी घातक बीमारियों को रोकने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ कैंसर सहित प्रकाशित अध्ययनों ने यह स्थापित किया है कि, घातक कोशिकाओं में सामान्य कोशिकाओं की तुलना में जिंक की मात्रा में उल्लेखनीय कमी होती है।
सामान्य कोशिकाओं में मौजूद उच्च जिंक स्तर घातक कोशिकाओं में साइटोटॉक्सिक का काम करते हैं। डॉ. अजय ने तमाम वैज्ञानिक विधाओ ंमें अध्ययन व शोध किया है। जिसमें हाल के लाइफ़ साइंस, अनुवान्शिक विज्ञान, कोशिकीय और टिस्युकल्चर पर शोध प्रमुख है। भारत के राष्ट्रपति ने डॉ. अजय के अतुलनीय वैज्ञानिक उपलब्धि के लिए इन्हें 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया है।
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