दुनियाभर में ऑटिज्म के मामले दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं। ऑटिज्म एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जो ज्यादातर बच्चों में देखने को मिलता है। हर साल दो अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरुकता दिवस मनाया जाता है। इस दिन इस डिसऑर्डर के प्रति लोगों को जागरुक किया जाता है, ताकि समाज ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने में अपना योगदान दे सकें।
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ऑटिज्म एक डेवलपमेंटल डिसएबिलिटी है, जो बच्चों के दिमाग में बदलाव की वजह से होती है। इसे मेडिकल भाषा में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) कहा जाता है। आमतौर पर ASD के लक्षण बच्चों में दो-तीन साल की उम्र में नजर आने लगते हैं। हालांकि बहुत छोटे बच्चों में इसके लक्षणों का पता लगा पाना काफी मुश्किल होता है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों का व्यवहार, कम्यूनिकेशन, इंटरेक्शन और सीखने की क्षमता दूसरे बच्चों से अलग होती है।
इस डिसऑर्डर के बारे में जागरूकता फैलाने और इससे पीड़ित बच्चों को शिक्षित करने, उन्हें सशक्त बनाने और समर्थन देने के प्रयासों को बढ़ाने के लिए,, संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक प्रस्ताव के माध्यम से इस दिन को नामित किए जाने के बाद से हर साल दो अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2024 की थीम
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2024 की थीम, ‘Empowering Autistic Voices’ यानि इस डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों की आवाज को मजबूती देना है, जिससे समाज में ऐसे लोगों के प्रति स्वीकार्यता बढ़े और वह भी अच्छी जिंदगी और बेहतर करियर की दिशा में आगे बढ़ सकें। बता दें, कि नीले रंग को ऑटिज्म के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है, जिसके चलते हर साल इस दिन प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों को नीले रंग की रोशनी से सजाया भी जाता है।
क्या होता है ऑटिज्म ?
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) से पीड़ित बच्चों का व्यवहार, बातचीत और सीखने का तरीका अन्य बच्चों से अलग होता है। इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। जो बच्चें ऑटिज्म से पीड़ित होते हैं, उन्हें सोशल एक्टिविटीज और बातचीत करने में समस्या आती है। आमतौर पर इस डिसऑर्डर का पता बचपन में ही 2-3 साल की उम्र में लग जाता है, लेकिन कई बार इसका पता लगाने में समय लग सकता है। इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर बिहेवियर टेस्ट की मदद लेते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व के हर 100 बच्चे में से 1 बच्चे को ऑटिज्म की समस्या है।
ऑटिज्म के बढ़ते मामले चिंता का विषय हैं। 2021 में हुए एक शोध के अनुसार,, देश में हर 68 बच्चों में से एक बच्चा ऑटिज्म से ग्रसित है, जिनमें लड़कियों के मुकाबले लड़कों की संख्या करीब तीन गुना ज्यादा है।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को दूसरे के एक्सप्रेशन को समझने में दिक्कतें आ सकती हैं। इसके अलावा, देर से भाषा से जुड़ी स्किल्स का विकसित होना, लोगों के साथ रिश्ते ना बना पाना, एक ही एक्शन को बार-बार दोहराना, बदलाव पसंद ना करना या जिन कार्यों में उनके सेंस ऑर्गन्स को ज्यादा इंगेज होना पड़ता हो, ऐसे कामों को नापसंद करना जैसे कई लक्षण नजर आ सकते हैं।
क्यों होता है ऑटिज्म ?
वैसे तो ऑटिज्म का कोई ठोस कारण नहीं है, लेकिन जेनेटिक और वातावरण को इसके कारणों में शामिल किया जा सकता है। वर्तमान परिवेश में ऑटिज्म के बढ़ते मामलों को वायु प्रदूषण, जन्म के समय कम वजन होना और तनाव जैसे कारकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
हर साल दो अप्रैल के दिन इस डिसऑर्डर से जुड़ी अहम जानकारियों के जरिए लोगों को सजग बनाने की कोशिश की जा रही है। इस विकार से जूझ रहे लोगों को सपोर्ट करना ही इस दिन को मनाने का असल मकसद है। आज ऑटिज्म के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है, जिसका नतीजा ये है कि अब ज्यादा से ज्यादा बच्चों को थेरेपी और उपचार मिल रहा है।