Delhi news: बिलकिस बानो केस में 11 दोषियों में से तीन आरोपियों ने जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए समय बढ़ाने की मांग की है। इसी के चलते इन आरोपियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। जहां दोषियों के वकील द्वारा तत्काल सुनवाई के लिए उनकी याचिका का उल्लेख किया गया, तब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने इस सुनवाई के लिए अपनी सहमती जताई है।
साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानों के साथ कुछ लोगों ने गैंगरेप किया था, यहीं नहीं, बिलकिस की आंखों के सामने उसके परिवार के 7 लोगों की भी हत्या कर दी गई थी। इसमें 11 लोग दोषी पाए गए थे, जिन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन अगस्त 2022 में गुजरात सरकार ने बिलकिस बानों गैंगरेप केस में उम्र कैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए गुजरात सरकार को जमकर फटकार लगाई, और इसके द्वारा लिए गए फैसले को 8 जनवरी को रद्द कर दिया था। इतना ही नहीं, सभी दोषियों को 2 हफ्ते में आत्मसमर्पण करने का आदेश भी दिया था। इसी आदेश के चलते तीन आरोपियों ने आत्मसमर्पण के लिए समय बढ़ाने की कोर्ट से मांग की है।
कानून के शासन का उल्लंघन किया है-न्यायालय
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि बिलकिस बानों के सभी 11 आरोपियों को आत्मसमर्पण का आदेश दिया था, वो इसलिए कि सजा में दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिका को सुनवाई योग्य मानी गई, जहां पीठ ने कहा था कि गुजरात सरकार को गैंगरेप जैसे मामले में छूट का आदेश पारित करना कोई मामूली बात नहीं, बल्कि ये कानून के शासन का उल्लंघन करना है।
वहीं शीर्ष अदालत ने कहा कहा कि जहां किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही दोषियों के माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम भी होता है। ऐसे में इन 11 दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया था। जानकारी के मुताबिक, मुंबई में CBI की एक अदालत ने बिलकिस बानों केस में 2008 में 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। तो वहीं इस फैसले पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी अपनी सहमति जताई थी।
सरकार ने शक्ति का दुरुपयोग किया- सुप्रीम कोर्ट
गुजरात सरकार के रवैये पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये तक कह दिया था इस फैसले से ‘कानून का उल्लंघन हुआ है, वो इसलिए कि गुजरात सरकार ने अपनी शक्ति का गलत उपयोग किया है। इसलिए राज्य सरकार द्वारा दिए गए छूट के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।
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