Meerut City News – आजाद भारत की आन-बान और शान हमारा तिरंगा लालटेन की रोशनी में
तैयार किया गया था। जिसे मेरठ के नत्थे सिंह
ने बनाया था। भले ही वे अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन
अपने पिता के इस काम को आज भी उनके बेटे रमेश आगे बढ़ा रहे हैं। रमेश सिर्फ और
सिर्फ तिरंगे ही तैयार करते हैं। आइए जानते हैं, आजाद भारत के तिरंगे की कहानी।
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राष्ट्रीय
पर्व गणतंत्र दिवस पूरे देश में धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। आपको बताते चलें कि
आजाद भारत का पहला तिरंगा यूपी के मेरठ जिले में तैयार किया गया था। अपने देश की
आन-बान और शान तिरंगे को मेरठ के सुभाष नगर के रहने वाले नत्थे सिंह ने लालटेन की
रोशनी में बनाया था। मेरठ की ही एक क्षेत्रीय संस्था के माध्यम से
नत्थे सिंह को यह अवसर मिला था। उन्होंने ही लालकिले पर फहराए जाने के लिए
तिरंगा तैयार किया था। लालकिले पर फहराए गए पहले तिरंगे को तैयार करने वाले नत्थे
सिंह जीवन भर तिरंगे ही तैयार करते रहे। उनके बनाए खादी के झंडे देशभर में गए। तब
से आज तक उनका परिवार इसी काम को कर रहा है।
नत्थे
सिंह के बेटे रमेश ने बताया कि उनके पिता की 5 वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी है। पिता
की मृत्यु के बाद से वो पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए तिरंगे झण्डे को बनाने का
काम कर रहे हैं। रमेश बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ था, उस वक़्त संसद भवन में एक मीटिंग हुई थी। मीटिंग के बाद मेरठ के क्षेत्रीय गांधी आश्रम में दिल्ली से एक
प्रतिनिधि मंडल पहुंचा था और तिरंगा झण्डा बनाने के लिए कहा गया था।
रमेश
बताते हैं कि उनके पिता और पिता के बड़े भाई दोनों गांधी आश्रम से जुड़े हुए थे और तब स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रध्वज को बनाने की जिम्मेदारी उनके पिता नत्थे सिंह को दी
गयी थी। उनके पिताजी बताते थे कि उस समय घर में लालटेन तो थी लेकिन तेल नहीं था।
तब पड़ोसी ने लालटेन के लिए तेल दिया था। उसके बाद लालटेन की रोशनी में तिरंगा बनाने
का काम किया गया था।
उसके
बाद से मेरठ के क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम में खादी के तिरंगे झण्डे का काम
जोर-शोर के साथ होने लगा। आज देशभर में मेरठ के बने तिरंगे की काफी मांग रहती है।
रमेश बताते हैं कि अपने पिता के बाद उन्होंने भी इसी काम के लिए खुद को समर्पित कर
दिया है। उन्हें इस काम को करने में बहुत प्रसन्नता होती है, क्योंकि सरकारी कार्यालय
हो या फिर निजी संस्थान,
सभी जगह मेरठ का बना तिरंगा ही फहराया
जाता है। हालांकि वह कहते हैं कि इस काम में काफी उतार-चढाव भी देखने को मिले हैं, लेकिन उनका प्रयास है कि वह इसी काम को करते रहें।
नही मिला सरकारी योजनाओं का लाभ, 10 हजार रुपए भी नही मिले वापस
बताते
चलें कि रमेश को आज तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है। ऐसा भी नहीं है कि
उन्होंने प्रयास नही किया। रमेश बताते हैं कि उन्होंने कई बार सरकारी योजनाओं का
लाभ लेने का प्रयास किया। कई बार उन्होंने सरकारी कार्यालयों के चक्कर भी काटे कि
उन्हें किसी न किसी सरकारी योजना का लाभ मिले और वो अपना घर बनवा सकें। वे कहते हैं कि इसके लिए दस हजार रुपये भी उन्होंने खर्च किए, लेकिन
हुआ कुछ भी नहीं।
मोदी सरकार से सहायता की अपील
रमेश दिल की बीमारी से ग्रसित हैं, उनकी पत्नी भी बीमार रहती हैं। रमेश जिस जगह
पर रहते हैं, वह एक ही कमरा है। उसी में छोटी सी रसोई है। वहीं काम भी करना होता
है और आराम भी। वह कहते हैं कि वे परिवार में अकेले ही कमाने वाले हैं। उनकी दो
बेटियां हैं। उन्हें चिंता सताती रहती है, कि आखिर
वे अपनी बेटियों की शादी कैसे करेंगे और जिस तरह से उन्हें समस्या है, वो कैसे अपने
परिवार को पालेंगे। रमेश ने मोदी सरकार से सहायता की अपील की है।