Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकीलों की आए दिन हो रही हड़ताल पर कठोर टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि यह कोई औद्योगिक प्रतिष्ठान नहीं है, जहां हड़तालें होती हैं। न्यायिक प्रणाली में हड़ताल से न्याय का पहिया रुक जाता है। कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश बार कौंसिल से जवाब तलब किया है।
बलिया जनपद की रसड़ा तहसील में लगातार होने वाली हड़ताल पर जंग बहादुर कुशवाहा की ओर से दाखिल की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने की। औद्योगिक प्रतिष्ठानों में ट्रेड यूनियन नियोक्ताओं से अपनी मांगों को पूरा करने के लिए औद्योगिक मजदूरों की हड़ताल को उचित ठहरा सकते हैं।
अदालती कामकाज में ऐसी हड़तालों को उचित नहीं ठहराया जा सकता। वकीलों की हड़ताल से न केवल न्यायिक समय बर्बाद होता है, बल्कि सामाजिक मूल्यों का पतन भी होता है। वहीं सभी सामाजिक मूल्यों को नुकसान और हानि होती है। जिससे मामलों की लंबितता बढ़ती है साथ ही न्याय वितरण प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिससे वादियों के लिए अधिक से अधिक कठिनाइयां आती हैं।
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कोर्ट ने कहा कि वकीलों के पास पहले से ही हड़ताल का सहारा लिए बिना वैध शिकायतों को दूर करने के लिए एक तंत्र है, जिसमें जिला जज, सीजीएम, बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदि सदस्य शामिल हैं। न्यायालय ने कहा कि अधिवक्ताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसी गतिविधियों में शामिल होने के बजाय न्यायिक प्रणाली की गरिमा को बनाए रखें।
कोर्ट ने इस मामले में बार काउंसिल को निर्देश दिया है कि वह शोक संवेदनाओं और अन्य स्थितियों के पालन के संबंध में अपने द्वारा तैयार किए गए दिशा-निर्देशों को प्रस्तुत करे, और बताए कि उत्तर प्रदेश के जनपदों या तहसीलों में वकीलों को काम से क्यों विरत रहना पड़ेगा। कोर्ट ने मामले में सुनवाई के लिए 5 फरवरी की तिथि निर्धारित की है।
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