लखनऊ: अयोध्या में हुए राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह ने पूरे देश को मंत्रमुग्ध कर दिया। दुनिया भर में रामलला के भव्य मंदिर में विरामान होने पर उत्सव मनाया गया। लोगों को ऐसा आभास हो रहा था कि साल भर के भीतर दूसरी दीपावली मनाई जा रही है। जब भव्य मंदिर में विराजमान रामलला की पहली झलक भक्तों ने देखी, तो वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाए।
रामलला की मंद मुस्कान और उनका श्यामवर्ण भक्तों को अपनी तरफ खींच रहा था। रामलला की आंखों ने भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। रामलला की मंत्रमुग्ध कर देने वाली आंखों में दिव्यता और मासूमियत स्पष्ट दिख रही थी।
भारत में जहां भगवान राम देवताओं में सबसे अधिक पूज्यनीय हैं, रामायण संस्कृति का हिस्सा है। ऐसे में भगवान की मूर्ति बनाने के लिए चुने गए मूर्तिकारों में से एक होना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। रामलला की विग्रह बनाने वाले भारतीय मूर्तिकार अरुण योगीराज ने संस्मरण साझा किया कि कैसे उन्होंने 20 मिनट में रामलला की आंखें बनाईं।
एक मीडिया संस्थान को दिए गए साक्षात्कार में मूर्तिकार अरुण योगीराज ने कहा कि पहले दो महीनों तक मैंने रामलला की मूर्ति के चेहरे के बारे में सोचा ही नहीं था। उन्होंने बताया कि दीपावली के समय मैं आयोध्या में था। मैंने दीपावली का त्योहार मनाते हुए, भारतीय बच्चों के कुछ सुंदर चित्रों को देखा। यहीं से मुझे रामलला का मुख बनने की प्रेरणा मिली। जैसे ही मुझे यह विचार आया मैंने विग्रह का मुख बनाने पर काम करना प्रारंभ किया।
रामलला की आंखें बनाने के लिए मात्र 20 मिनट का था मुहूर्त
अरुण योगीराज ने बताया कि रामलला की विग्रह में आंखें बनाने के लिए 20 मिनट का मुहूर्त था। इसलिए, हमें आंखों का काम पूरा करने के लिए 20 मिनट का समय दिया गया। योगीराज ने बताया इस कार्य को करने के लिए मुझे अनुष्ठानों को पूर्ण करना था। आंखों को गढ़ने का काम प्रारंभ करने से पहले मैंने सरयू नदी में स्नान किया, हनुमान गढ़ी और कनक भवन में पूजा की।
योगीराज ने बताया कि मुझे काम के लिए एक सोने की चिनाई वाली कैंची और एक चांदी का हथौड़ा दिया गया। मैं आंखें बनाने के दौरान बहुत उलझन में था। क्योंकि, मुझे पता था कि 10 तरह की आंखें कैसे बनाई जाती हैं। फिर मैंने अपने मन में उन आंखों को बसा कर काम प्रारंभ किया जो मुझे सबसे अधिक अच्छी लगीं।
एक बंदर प्रतिदिन देखते आता था रामलला की मूर्ति का कार्य
योगीराज ने बताया कि जब वह अयोध्या में मूर्ति बनाने का काम कर रहे थे, तब प्रतिदिन शाम 4 से 5 बजे के बीच एक बंदर आता और स्टूडियों का दरवाजा खटखटाता। बंदर कुछ देर तक मूर्ति बनाने के कार्य को देखता और फिर चला जाता। यह क्रम तब तक चलता रहा जब तक मूर्ति पूरी तरह से बनकर तैयार नहीं हो गई। योगीराज ने कहा कि मुझे श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद एक बंदर गर्भगृह में फिर आया था और कुछ मिनटों के लिए वहां बैठा और फिर चला गया।
अपना ही काम देखकर भरोसा नहीं हो रहा था
मूर्ति की आभा और दर्शकों पर पड़ने वाले प्रभाव पर जोर देते हुए योगीराज ने कहा, मैं प्राण-प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति के साथ बैठा और मूर्ति देखने लगा। मुझे ऐसा आभास हुआ कि मूर्ति पहले से बहुत अलग है। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह मेरी ही रचना है।
कई बाधाओं को पार कर हुआ चयन
योगीराज ने बताया कि उन्हें मूर्ति बनाने की चयन प्रक्रिया के लिए निमंत्रण भी नहीं मिला था। चयन प्रक्रिया के अंतिम दिन आईजीएनसीए के अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद जोशी ने मुझे बुलाया। चयन प्रक्रिया पिछले दो महीने से चल रही थी। जिन मूर्तिकारों का चयन हो गया था, उन्होंने लगभग दो बार मंदिर और अयोध्या का दौरा भी कर लिया था।
पहली मूर्ति हुई रिजेक्ट
अरुण योगीराज ने बताया कि चयन के बाद, मैंने एक मूर्ति बनाई जिसे पत्थर के साथ तकनीकी समस्याओं के कारण तीन महीने बाद अस्वीकार कर दिया गया। मैंने उस पत्थर पर लगभग 60 से 70 प्रतिशत काम पूरा कर लिया था। मैं बहुत उदास था, क्योंकि मैंने उस पत्थर पर पूरी लगन से काम किया था। लेकिन मंदिर के अधिकारियों ने मेरा बनोबल बढ़ाया।
मूर्ति बनाने के दौरान आंखों में लगी चोट
योगीराज ने बताया कि मूर्ति बनाने के दौरान पत्थर का एक छोटा सा हिस्सा मेरी आंख की रेटिना के चुभ गया। जिसके चलते मेरी आंख में गंभीर चोट लगी। अयोध्या के एक नेत्र अस्पताल में मेरा उपचार हुआ, जिसमें मेरे 7 दिन बरबाद हो गए। फिर मुझे तीन महीने के बाद नए सिरे से काम शुरू करना पड़ा। इस वजह से बाकी दोनों मूर्तिकार मुझसे आगे थे। लेकिन मैंने बस यही सोचा था कि पिछले तीन महीनों में मैंने जो बनाया है, उससे बेहतर बनाना है। मैंने खुद से प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश की और अयोध्या के माहौल ने मुझे मूर्ति बनाने के लिए आगे बढ़ाया।