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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य विधि अधिकारियों के बजाए मुख्य स्थाई अधिवक्ता
कार्यालय के स्टेनोग्राफर द्वारा हलफनामा तैयार करने पर नाराजगी जताई है। न्यायालय
ने इस मामले में प्रमुख सचिव को 19 फरवरी को तलब किया है। न्यायालय ने प्रमुख सचिव
से राज्य विधि अधिकारियों से ही जवाबी हलफनामा तैयार कराने को कहा है एवं
स्टेनोग्राफर द्वारा तैयार करने को प्रतिबंधित करने के उठाए गए कदमों की जानकारी
मांगी है।
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यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने
दिनेश पांडेय की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। मालूम हो कि याची का शस्त्र
लाइसेंस उस पर आपराधिक केस के कारण निरस्त कर दिया गया था। इस मामले में ट्रायल
कोर्ट से बरी होने के बाद लाइसेंस निरस्त करने के आदेश के खिलाफ वादी दिनेश पांडेय ने कमिश्नर के समक्ष
अर्जी दी। इस मामले में कमिश्नर ने आपराधिक केस में याची को बरी करने के आदेश पर विचार किए बगैर वादी की अपील खारिज कर दी। जिस पर यह याचिका दायर की गई थी।
राज्य सरकार की तरफ से दाखिल जवाबी हलफनामे में
याची को बरी किए जाने के तथ्य का कोई जवाब नहीं दिया गया। इसको लेकर न्यायालय ने कहा कि
नियमानुसार मुख्य स्थाई अधिवक्ता, अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता या स्थाई
अधिवक्ता द्वारा जवाबी हलफनामा तैयार किया जाना चाहिए। हलफनामे को देखने से लगता
है कि मुख्य स्थाई अधिवक्ता कार्यालय के स्टेनोग्राफर ने विभाग की टिप्पणी के आधार
पर हलफनामा तैयार कर दिया है। इस पर कोर्ट ने विधि परामर्शी प्रमुख सचिव न्याय से
रिपोर्ट मांगी है।
उल्लेखनीय है कि न्याय विभाग ने अपर महाधिवक्ताओं
व मुख्य स्थाई व अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ताओं के विभाग नियत करते हुए प्रभावी पैरवी
करने की बहुत पहले ही अधिसूचना जारी की है। जिसमें साफ निर्देश है कि सरकार की तरफ
से याचिकाएं व अपीलें मुख्य स्थाई अधिवक्ताओं द्वारा ही तैयार की जाएगी, ताकि
सरकार प्रभावी पक्ष रख सके।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नाराजगी जताते हुए कहा
कि इस आदेश का लगातार मखौल उड़ाया जा रहा है। मुख्य स्थाई अधिवक्ता इसका पालन नहीं
कर रहे हैं। अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता या स्थाई अधिवक्ता अपने स्टेनोग्राफ से हलफनामा लिखवा
कर दाखिल कर रहे हैं और उन्हीं से बहस भी करवाते हैं। शासन
को जानकारी होने के बावजूद राजनीतिक पहुंच के कारण कोई कार्रवाई नहीं की जा रही
है।