Uttar
Pradesh News– इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय रिजर्व
बैंक (आरबीआई) और बैंकिंग लोकपाल की कार्यप्रणाली पर गम्भीर टिप्पणियां की है।
कोर्ट ने कहा है कि आरबीआई बैंकों को दिशा-निर्देश तो जारी
करती है, लेकिन उसका
अनुपालन नहीं कराती है। इसका परिणाम है कि बैंक अपने मनमाने तरीके से उपभोक्ताओं
(बैंक से ऋण लेने वाले) से ऊंची ब्याज दर का भुगतान ले रहे हैं। इसके अलावा कोर्ट
ने यह भी कहा कि बैंकिंग लोकपाल भी उपभोक्ताओं की शिकायतों पर ध्यान नहीं दे रहे
हैं।
कोर्ट ने मामले में याची के खिलाफ बैंकिंग लोकपाल के आदेश को
रद्द कर दिया है और फिर उसे नए सिरे से सुनवाई कर आदेश पारित करने का निर्देश
दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की
खंडपीठ ने कानपुर नगर के याची मनप्रीत सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।
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हाईकोर्ट ने आरबीआई की गतिविधियों को लेकर हैरानी जताई
है। कोर्ट ने कहा कि आरबीआई उपभोक्ताओं के हितों को देखने के बजाए मूकदर्शक
बना हुआ है और बैंकों को अपने मनमाने तरीके से बहुत ऊंची ब्याज दर वसूलने की अनुमति दे रहा है। कोर्ट ने कहा कि बैंकिंग लोकपाल भी उपभोक्ताओं की शिकायतों पर ध्यान
नहीं दे रहे हैं। बैंकिंग लोकपाल ने मौजूदा मामले में सही आदेश पारित नहीं किया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि बैंकिंग लोकपाल ने याची को आपत्ति प्रस्तुत करने का कोई
अवसर ही नहीं दिया और एक तरफा आदेश पारित
कर दिया गया है।
बता दें कि इस मामले में याची ने स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक से 12.5 फीसदी की दर से 9
लाख रूपए का लोन लिया था। याची ने पूरी राशि चुकाने के बाद अदेय प्रमाण पत्र और
सम्पत्ति दस्तावेज़ वापस करने का अनुरोध किया था, तो
इसके बाद ऋण खाता बंद करने पर याची को 27 लाख रूपए के अनधिकृत डेबिट का पता चला। प्रति वर्ष 12.5 ब्याज दर पर भुगतान की जाने वाली राशि 17 लाख से थोड़ी अधिक थी। याची ने स्टैंडर्ड
चार्टर्ड बैंक में शिकायत की लेकिन कुछ हुआ नहीं तो बैंकिंग लोकपाल से समाधान की
मांग की, लेकिन उसने याची का पक्ष जाने बिना, देरी को आधार बनाते हुए एकतरफा आदेश
पारित कर दिया।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट
मे कहा कि बैंकिंग लोकपाल ने याची को पक्ष रखने का समय ही नहीं दिया। स्टैंडर्ड
चार्टर्ड बैंक ने याची से 12.5 फीसदी की बजाए 16
से 18 फीसदी ब्याज लिया है। दूसरी ओर बैंक के अधिवक्ता ने कहा कि समझौते में स्पष्ट रूप से एक
परिवर्तनीय ब्याज दर की रूपरेखा दी गई है,
जो हर तीन महीने में संशोधन के अधीन है। न्यायालय ने कहा कि
याची से बिना किसी स्पष्ट कारण के ऋण अवधि के दौरान लगातार उच्च दर पर ब्याज लिया गया
है। उसे इस बारे में जानकारी नहीं दी गई।
बैंक यह कहकर अपनी मनमानी और अवैध
कार्रवाई को छुपाने की कोशिश कर रहा है कि याची ने ऋण समझौते में फ्लोटिंग दर पर
ब्याज का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की है और आरबीआई ने बैंक को बाजार की
स्थितियों के आधार पर ब्याज वसूलने की अनुमति दी है। कोर्ट ने पाया कि स्टैंडर्ड
चार्टर्ड बैंक ने गलत पते पर नोटिस भेजा और याचिकाकर्ता को ब्याज दर में बदलाव के
बारे में सूचित करने वाले ईमेल के दावों के बावजूद, अदालत में अपर्याप्त सबूत पेश किए। यह
आरबीआई के 2 जुलाई 2007 के मास्टर आदेश का उल्लंघन है। बैंक ने पारदर्शितापूर्ण तरीका
नहीं अपनाया। उसने ब्याज वसूली के लिए मनमाना तरीका अपनाया।