देहरादून: समान नागरिक संहिता को लेकर तैयार किए गए ड्राफ्ट को उत्तराखंड कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। रविवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सरकारी आवास पर हुई कैबिनेट की बैठक में कॉमन सिविल कोड (सीसीसी) बिल को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। अब इस बिल को विधानासभा में पास कराया जाएगा।
6 फरवरी को विधानसभा में पेश होगा बिल
धामी सरकार 6 फरवरी को विधानसभा के पटल पर समान नागरिक संहिता बिल को रखेगी। यहां से यह बिल पास होने के बाद राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा। राज्यपाल के हस्ताक्षर होने के बाद यह बिल कानून का रूप ले लेगा। इसके साथ ही उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।
सेवानिवृत्त जज के नेतृत्व में तैयार किया गया बिल का मसौदा
समान नागरिक संहिता के ड्रॉफ्ट को तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त जज रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया था। ड्राफ्ट कमेटी ने बीते शुक्रवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को समान नागरिक संहिता को लेकर तैयार किया गया मसौदा सौंपा था। जिसके बाद इसे कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया। जहां से स्वीकृति मिल चुकी है।
धामी सरकार के पास पर्याप्त बहुमत
विधानसभा में समान नागरिक संहिता बिल के पास होने में कोई अड़चन नहीं दिख रही है। उत्तराखंड की विधानसभा में कुल 70 सीटे हैं। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी सरकार के पास 47 सीटें हैं। जबकि कांग्रेस के पास मात्र 19 सीटें हैं। वहीं, अन्य दलों के पास 4 सीटें है। यही वजह है कि धामी सरकार के पास इस बिल को पास कराने के लिए पर्याप्त बहुमत है।
इन 5 बिंदुओं को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है बिल
समान नागरिक संहित बिल के मसौदे को तैयार करने के लिए 5 प्रमुख बिंदुओं को ध्यान में रखा गया है। इसमें पहला बिंदु है विवाह, दूसरा तलाक, तीसरा गुजाराभत्ता, चौथा उत्तराधिकार, पांचवा और अंतिम बिंदु है दत्तक ग्रहण है।
यूनीफार्म नहीं ‘कॉमन सिविल कोड’ है बिल का नाम
पहले चर्चाएं थीं कि इस बिल का नाम यूनीफार्म सिविल कोड है। लेकिन धामी सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि इस बिल का नाम ‘कॉमन सिविल कोड’ रखा गया है। इस बिल का एक मात्र उद्देश्य महिलाओं एवं बाल अधिकारों को सुनिश्चित करना है। उत्तराखंड सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह कानून लोगों के अधिकार छीनने के लिए नहीं, बल्कि अधिकार देने के लिए बनाया जा रहा है।
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धार्मिक मान्यताओं पर कोई प्रभाव नहीं डालता यह कानून
उत्तराखंड सरकार का कहना है कि इस बिल को किसी धर्म से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। इस कानून के बनने से किसी भी धर्म के विवाह पद्धति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि जैसे कि मुसलमानों में ‘निकाह’ सिखों में ‘आनंद कारज’ हिंदुओं में अग्नि के समक्ष फेरे और ईसाईयों में ‘Holy Matrimony’ होते हैं। वह सब वैसे ही होता रहेगा।