गोंडा: विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर वर्ष 1990 में राम मंदिर के लिए कारसेवा प्रारंभ हुई। उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे। अयोध्या के सभी रास्तों पर भारी पुलिस फोर्स लगा दी गई, कि कारसेवक किसी भी प्रकार से अयोध्या ना पहुंच सकें। लेकिन राम जन्मभूमि के मुक्ति की चिंगारी राम भक्तों के मन में ज्वालामुखी बनकर फूट रही थी।
सख्ती इतनी थी कि भगवा कपड़ा पहने देखकर ही पुलिस लोगों को गिरफ्तार कर लेती थी। लेकिन फिर भी कारसेवकों के उत्साह के आगे सभी प्रशासनिक व्यवस्थाएं फीकी पड़ गईं। ऐसे ही लाखों उत्साही कारसेवकों के त्याग से, आज भव्य राम मंदिर का सपना साकार हो रहा है।
इन्हीं कारसेवकों में से एक नाम था अंबिकादत्त पांडेय का। अंबिकादत्त पांडेय गोंडा जिले के नवाबगंज थाना क्षेत्र के खरगूपुर गांव के रहने वाले थे। वह अब तो इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन, उनके पौत्र बागेस पांडेय बताते हैं कि हमारे बाब विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता थे। वर्ष 1990 में जब कारसेवा प्रारंभ हुई तो इसे रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव की सरकार ने जगह-जगह पर फोर्स तैनात कर दी। विश्व हिंदू परिषद के ऐलान के बाद कारसेवक अयोध्या के लिए निकल पड़े।
सरकार ने उस समय अयोध्या जाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। यहां तक की बस और ट्रेन भी बंद कर दी गई थीं। इसके पश्चात भी राम भक्तों का उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा था। बागेस पांडेय ने बताया कि हमारे बाबा अंबिकादत्त पांडेय कुछ राम भक्तों को नदी पार कर, अयोध्या पुल तक रास्ता बताने के लिए जा रहे थे। उन्होंने देखा कि पुल पर खड़े कारसेवकों पर अचानक पुलिस ने लाठियां बरसाना प्रारंभ कर दिया।
पुलिस की लाठी से अनेकों कारसेवक गंभीर रूप से घायल हो कर वहीं गिर पड़े। विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल समेत कई पदाधिकारी पुलिस की लाठी से घायल हो गए। उसके बाद कारसेवकों का आक्रोश भड़क गया। कुछ कारसेवक सुरक्षा के चक्रव्यूह को तोड़ते हुए अयोध्या की सीमा में प्रवेश कर गए। राम मंदिर आंदोलन में अंबिका दत्त पांडे के सक्रियता को देखकर कुछ समुदाय विशेष के लोगों ने पुलिस को सूचना दे दिया। इसके बाद पुलिस ने बाबा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 15 दिनों तक वह अयोध्या जेल में रहे।
प्रसाद सहयोग एकत्रित कर कराते थे कारसेवकों को भोजन
बागेस पांडेय बताते हैं उस समय धन का बड़ा अभाव था। प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में हमारे गांव से कारसेवक निकलते थे। बाबा अंबिका दत्त प्रसाद पांडे उनकी सेवा के लिए तत्पर रहते थे। सेवाभाव में धन की कोई परेशानी ना पड़े, इसके लिए उन्होंने धर्म रक्षा निधि बनाई। धर्म रक्षा निधि के नाम पर सहयोग लेते थे। इस तरह करीब 300 कार्यकर्ताओं की एक बड़ी टोली बनकर तैयार हो गई। इस टोली में बड़े-बुजुर्गों के अलावा युवा भी थे, जो कार सेवकों को भोजन पानी देने के बाद, टेढ़ी नदी पार करवा कर अयोध्या के पुल तक पहुंचाते थे। हम लोग उस समय छोटे थे। राम भक्तों तक भोजन के पैकेट पहुंचाने का कार्य हम लोगों का था।
पुलिस से बचकर कारसेवकों तक पहुंचाया भोजन
विश्व हिंदू परिषद के विभाग संयोजक शारदा कांत पांडे बताते हैं कि हम लोग छोटे थे। हमारे पूर्वज हम लोगों को कारसेवकों की सेवा में लगा देते थे। उस समय भगवा कपड़ा देखते ही पुलिस की गाड़ी पहुंच जाती थी। दिन में पुलिस से बचने के लिए कारसेवकों को आम के घने बागों में रहने की व्यवस्था की जाती थी। वहीं, पर उन्हें पैकेट में पूड़ी-सब्जी व अन्य भोजन बनाकर दिया जाता था। अयोध्या से सटे नवाबगंज के गांव में पुलिस लगातार भ्रमणशील रहती थी।
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विहिप नेता शारदाकांत पांडेय बताते हैं, भोजन ले जाते समय कहीं पुलिस की निगाह हम लोगों पर ना पड़ जाए, इसको ध्यान में रखना पड़ता था। भोजन कराने के लिए गांव के युवाओं की एक टोली थी। जब कारसेवक नवाबगंज क्षेत्र के खरगूपुर गांव से गुजरते थे,तब हम लोग उन्हें रोककर भोजन-पानी और विश्राम करने के लिए व्यवस्था करते थे। राम मंदिर आंदोलन में अनेक राम भक्तों ने बलिदान दिया। उन्हीं के संघर्ष का परिणाम है कि आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भव्य मंदिर में विराजमान होने जा रहे हैं। लेकिन इस भव्य मंदिर को देखने के लिए अंबिका दत्त पांडेय जैसे अनेकों कारसेवक अब इस दुनिया में नहीं हैं।