Prayagraj News: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद 300A के तहत किसी को बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए सम्पत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता। यदि सरकार ने जमीन का अधिग्रहण कर अवार्ड घोषित कर उसे कब्जे में ले लिया है तो यह नहीं कहा जा सकता कि अधिगृहीत जमीन पर स्थित निर्माण बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए नहीं हटाये जा सकते।
कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहण पूरा होते ही सम्पत्ति सरकार में निहित हो जाती है। भवन स्वामी का कोई अधिकार नहीं रह जाता। वह केवल मुआवजा ले सकता है। कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा स्थित दादरी के गांव तुसियान की अधिगृहीत जमीन पर बनी 06 दुकानों के ध्वस्तीकरण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि सरकार आबादी को अधिग्रहण से अलग करने की याची की अर्जी पहले ही खारिज कर चुकी है। इसलिए याची सरकार के समक्ष विचाराधीन पुनरीक्षण का निस्तारण कराए। कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति एस क्यूएचआर रिजवी की खंडपीठ ने दीपक शर्मा की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।
याची अधिवक्ता का कहना था कि अर्जेंसी क्लाज में 2006 में उसकी जमीन का अधिग्रहण किया गया। प्राधिकरण ने कब्जा भी ले लिया और अवार्ड भी घोषित कर दिया गया है। उसने अवार्ड व अधिग्रहण को चुनौती नहीं दी है। केवल 24 अप्रैल 2010 के शासनादेश के आधार पर अधिगृहीत जमीन पर आबादी एरिया अलग करने की मांग की है। इसलिए बेदखली व उसके कब्जे में हस्तक्षेप से रोका जाए।
प्राधिकरण का कहना था कि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। जिलाधिकारी गौतमबुद्धनगर द्वारा अवार्ड भी घोषित किया जा चुका है। प्राधिकरण ने जमीन अपने कब्जे में ले ली है। अब जमीन पर याची का कोई अधिकार नहीं है। याचिका खारिज की जाय। याची का कहना था कि कानूनी प्रक्रिया अपनाकर ही बेदखल किया जाय। कोर्ट ने कहा कि कानून के तहत ही अधिग्रहण किया गया है। सम्पत्ति सरकार में निहित हो चुकी है। अलग से कानूनी प्रक्रिया की मांग भ्रामक है।
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