लखनऊ: भारत मां के महान सपूत, अमर बलिदानी भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर की आज पुण्यतिथि है। आज 23 मार्च को देश भर में इन तीनों महान क्रांतिकारियों की याद में बलिदान दिवस मनाया जाता है। आज का दिन इन दिनों बलिदानों को समर्पित करते हुए, उनके द्वारा मां भारती के चरणों में की गई सेवा को याद करते हैं।
दरअसल, साल 1927 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में साइमन कमीशन का गठन किया। इस कमीशन का उद्देश्य संविधान सुधारों का अध्ययन करना था। लेकिन हैरान करने वाली बात यह थी कि इस आयोग में एक भी सदस्य भारतीय नहीं था। लिहाजा, कांग्रेस लगातार इसका विरोध कर रही थी। 1928 आते-आते देश भर में साइमन आयोग का विरोध प्रारंभ हो गया। उस समय के महान क्रांतिकारी लाला लाजपत राय लाहौर में बड़ी संख्या में लोगों के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
इसी दौरान ब्रिटश पुलिस के अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करने का आदेश दे दिया। भीड़ पर लाठी चलाने वालों में सबसे आगे था उस समय का एसएसपी जेम्स स्कॉट, और उसका साथ दे रहा था सहयोगी पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स। दोनों ने जानबूझकर लाला लाजपत राय को निशाना बनाकर लाठियां बरसाईं। जिसमें वह बुरी तरह से घायल हो गए। जांच में यह बात सामने आई कि लालाजी के सीने में चोट के गहरे निशान हैं। यह चोट लाठीचार्ज के दौरान ही उन्हें लगी थी। चोट लगने के करीब 14 दिनों के बाद 17 नवंबर 1928 को हृदयाघात से उनका निधन हो गया।
लाला लाजपत राय जी के निधन से सबसे अधिक प्रभाव भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर पड़ा। तीनों क्रांतिकारियों ने उनकी मौत का बदला लेने की योजना बनाई। योजना के अनुसार, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने 1928 में लाहौर में लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसाने वाले ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद भगत सिंह ने युवाओं में क्रांति की चिनगारी जलाने के लिए सेंट्रल एसेंबली में बम भी फेंका।
इन दोनों मामलों को लेकर उन्हें जेल हुई। हालांकि, सेंट्रल एसेंबली बम फेंकने वाले केस में ज्यादा दम नहीं था। इसलिए अग्रेंजी हुकूमत ने षडयंत्र पूर्वक जॉन सॉन्डर्स हत्याकांड में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई। अदालत ने तीनों क्रांतिकारियों को 24 मार्च 1931 को फांसी देने का फैसला दिया। लेकिन, उनकी लोकप्रियता को देखते हुए अग्रेजों को यह संदेह था, कहीं देश भर में दंगे ना हो जाएं। इसीलिए तय समय से 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को शाम 7 बज कर 30 मिनट पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को एक साथ लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।
कहा जाता है कि भगत सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत से अनुरोध किया था कि उनके दर्जे को देखते हुए उन्हें साधारण अपराधियों की तरह फांसी पर न लटकाया जाए, उन्हें गोलियों से मारा जाए। लेकिन, अंग्रेज़ों ने उनके इस अनुरोध को ठुकरा दिया। फांसी के फंदे पर झुलने से पहले भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु के बीचोंबीच चल रहे थे। सुखदेव उनके बाईं ओर और राजगुरू दाहिनी तरफ़ थे। चलते समय भगत सिंह एक गीत गा रहे थे, ‘दिल से न निकलेगी मरकर भी वतन की उल्फ़त, मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वतन आएगी।’