इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश विधान सभा व विधान परिषद सचिवालय की भर्ती में धांधली के मामले में सीबीआई जांच के आदेश पर पुनर्विचार अर्जी को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है।
दरअसल, विधान परिषद के प्रमुख सचिव और दो अन्य लोगों ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में पुनर्विचार की अर्जी दाखिल कर कोर्ट के दिए सीबीआई जांच के आदेश पर दोबारा गौर करने का आग्रह किया था। विधान परिषद की ओर से कहा गया है कि मामले में अभी कोई केस दर्ज नहीं हुआ है। ऐसे में किसी आपराधिक आशय का खुलासा नहीं हुआ। लिहाजा सीबीआई जांच का आदेश दोबारा गौर करने योग्य है।
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उधर, अपीलकर्ता के अधिवक्ता शोभित मोहन शुक्ल का कहना था कि कोर्ट ने मामले का स्वयं संज्ञान लेकर पीआईएल दर्ज कराई है। सीबीआई को शुरुआती जांच करके रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। ऐसे में यह पुनर्विचार अर्जी खारिज करने योग्य है। वहीं, सीबीआई के अधिवक्ता ने जांच के लिए पर्याप्त मानव संसाधन उपलब्ध कराने का आग्रह किया।
कोर्ट ने सुनवाई के बाद आदेश दिया कि पुनर्विचार अर्जी खारिज की जाती है। इससे पहले कोर्ट ने इस पुनर्विचार अर्जी के मामले में विचाराधीन विशेष अपील व स्वयं संज्ञान लेकर दर्ज कराई गई जनहित याचिका के साथ तीन अक्तूबर को सुनवाई के लिए प्रस्तुत करने का आदेश दिया था। 27 सितम्बर को सुनवाई के समय सीबीआई के वकील ने कोर्ट को बताया था कि सीबीआई ने भी इस मामले का स्वयं संज्ञान लेकर दर्ज कराई गई पीआईएल में कुछ निर्देश जारी करने के आग्रह वाली अर्जी दाखिल की है।
क्या है पूरा मामला ?
हाईकोर्ट ने पूरे प्रकरण का स्वत: संज्ञान लेते हुए भर्तियों में धांधली की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया था। अदालत ने सीबीआई को आदेश मिलने के छह हफ्ते के बाद अपनी जांच रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था, जिसके बाद प्रारंभिक जांच दर्ज कर ली गयी। याचिका में साल 2020 में विधान परिषद में हुई भर्तियों में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया गया था। हालांकि अदालत ने इसे जनहित से जुड़ा मामला करार देते हुए विधान परिषद के साथ विधान सभा सचिवालय में हुई भर्तियों की जांच कराने का भी आदेश दिया है।