इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश महाधिवक्ता एवं विधि अधिकारी एस्टेब्लिशमेंट सर्विस रूल्स 2022 में हुए चौथे संशोधन को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है। इस संशोधित नियमावली द्वारा प्रदेश सरकार ने महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मचारियों की नियुक्ति व सेवा सम्बंधी अधिकारों को महाधिवक्ता से हटाकर प्रमुख सचिव विधि एवं न्याय को दे दिया था। इसके लागू होने से महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मचारियों का नियंत्रण महाधिवक्ता से हटकर प्रमुख सचिव न्याय में निहित हो गया था। उत्तर प्रदेश स्टेट लॉ ऑफिसर्स मिनिस्ट्रियल स्टाफ एसोसिएशन इलाहाबाद हाईकोर्ट व अन्य ने नई नियमावली पर आपत्ति जताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी थी।
इसमें कहा गया कि महाधिवक्ता का पद संवैधानिक व सम्मानजनक पद है और उनके अधिकारों को नियमावली बनाकर छीनना असंवैधानिक है। मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने संविधान में प्रदत्त महाधिवक्ता के अधिकारों की अपने आदेश में विस्तृत चर्चा की है।
कोर्ट ने इसे सम्मानजनक पद बताया है और इनके अधिकारों को समाप्त करने की नियमावली को गैर कानूनी करार दिया है। कोर्ट ने इस नियमावली को रद्द करते हुए कहा है कि महाधिवक्ता कार्यालय को लेकर पूर्व में जारी नियमावली व व्यवस्था नई नियमावली के बनने तक जारी रहेगी।
कोर्ट ने कहा कि नई नियमावली आदेश में उल्लिखित संवैधानिक ढांचे में बनाई जाएगी। प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि महाधिवक्ता के पद की गरिमा बनी रहे। कोर्ट ने इसी के साथ दाखिल याचिका को मंजूर कर लिया है।