लखनऊ: वर्ष 1999 में लड़ा गया कारगिल युद्ध भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जो साहस, बलिदान और देशभक्ति की मिसाल बन गया. आज से 26 साल पहले, 7 जुलाई 1999 को भारतीय सेना के जांबाज़ अफसर कैप्टन विक्रम बत्रा ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी.
कारगिल युद्ध मई से जुलाई 1999 तक लड़ा गया था, जब पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों ने एलओसी पार कर भारत के कारगिल सेक्टर में घुसपैठ की और ऊँचाई वाली रणनीतिक पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया. भारतीय सेना ने “ऑपरेशन विजय” के तहत दुश्मनों को पीछे धकेलने की मुहिम शुरू की.
मुश्किल हालात में भी अडिग हौसला
यह युद्ध समुद्र तल से करीब 16,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया. बर्फीले पहाड़, माइनस में तापमान, कम ऑक्सीजन और दुश्मन की लगातार गोलीबारी. बावजूद इसके भारतीय जवानों ने एक-एक करके हर चोटी को वापस हासिल किया.
कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता की मिसाल
13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा, हिमाचल प्रदेश के पालमपुर से थे. पहले ही उन्होंने प्वाइंट 5140 पर जीत हासिल की थी और जीत के बाद उन्होंने रेडियो पर जोश में कहा था. “ये दिल मांगे मोर!” यह वाक्य भारतवासियों के लिए वीरता का प्रतीक बन गया.
7 जुलाई की रात सबसे मुख्य मिशन
6-7 जुलाई की रात को, कैप्टन विक्रम बत्रा को द्रास सेक्टर की सबसे मुश्किल और सुरक्षित चोटी प्वाइंट 4875 पर दुश्मनों पर हमला किया. बर्फ, अंधेरा और गोलियों की बौछारों के बीच उन्होंने दुश्मन के कई बंकरों को साफ कर दिया. लेकिन जब उनका एक साथी गंभीर रूप से घायल हुआ, तो कैप्टन बत्रा उसे बचाने के लिए खुद आगे आए.
कारगिल युद्ध के नायक 13 जम्मू एण्ड कश्मीर राइफल के कैप्टन विक्रम बत्रा के नेतृत्व में डेल्टा कंपनी के 25 जवानों ने 06 जुलाई 1999 की रात को हमला शुरू किया था. योजना यह थी कि 7 जुलाई 1999 को सुबह होते ही रिज पर पहुँचकर दुश्मन पर हमला किया जाए और पोस्ट पर कब्ज़ा कर लिया जाए. लेकिन दुर्भाग्य से एक अधिकारी कैप्टन नवीन नागप्पा, जिनके पैर में गंभीर चोट थी, उनको निकालने में कुछ समय लगा और सुबह होते-होते वे लक्ष्य से दूर थे.
अब सुबह हो चुकी थी और लक्ष्य से ठीक पहले दुश्मन सैनिकों द्वारा संचालित एक संकरी चट्टान थी और दिन के उजाले में आगे बढ़ना लगभग असंभव था. हालांकि कैप्टन बत्रा ने फैसला किया कि भले ही दिन का उजाला था, वह और उनके साथी सीधा हमला करने का प्रयास करेंगे.
वीरत और कुशल नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने आमने-सामने की लड़ाई में 5 दुश्मनों को ढेर कर दिया. इस दौरान दुश्मन की भारी गोलीबारी के बावजूद कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने सैनिकों का नेतृत्व किया. गोलीबारी के दौरान कैप्टन बत्रा घायल हो गए लेकिन उन्होंने अपने बाकी साथियों की सहायता से अपना आक्रमण जारी रखा और चट्टान के मुहाने पर पहुंच गए. चट्टान पर पैर जमाकर जब वह अपने अगले कदम की योजना बना रहे थे तभी उन्होंने देखा कि उनका एक जवान सैनिक कुछ फीट की दूरी पर खून से लथपथ पड़ा है. उन्होंने अपने कंपनी कमांडर सूबेदार रघुनाथ सिंह के साथ घायल सैनिक को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का फैसला किया. लेकिन वे ऑपरेशन के दौरान 7 जुलाई, 1999 को बलिदान हो गए.
कैप्टन अनुज नैयर: ‘पिम्पल II’ के वीर
इसी दौरान 17 जाट रेजिमेंट के कैप्टन अनुज नैयर ने टाइगर हिल के पास पिम्पल II पर हमला किया. उन्होंने दुश्मन के 4 बंकर नष्ट किए और जीत दिलाने से पहले वीरगति को प्राप्त हुए. उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनकी माँ का कहना था,
“मेरा बेटा वही कर रहा था जिसमें उसका विश्वास था – देश के लिए जीना और मरना.”
कैप्टन जेरी प्रेम राज: आर्टिलरी के वीर योद्धा
158 मीडियम रेजिमेंट (तोपखाना) के कैप्टन जेरी प्रेम राज, केरल से थे. इसी दौरान उन्होंने टाइगर हिल के पास तोपों की सही दिशा तय करते हुए घायल अवस्था में भी अपना कर्तव्य निभाया. उनकी वीरता से कई सैनिकों की जान बची। उन्हें भी वीर चक्र से नवाज़ा गया.
देशभर में शोक और गर्व
कैप्टन बत्रा के बलिदान ने पूरे देश को अंदर तक झकझोर दिया. वह ना सिर्फ एक जांबाज सिपाही थे, बल्कि युवाओं के आदर्श और देशभक्ति का प्रतीक बन गए. कैप्टन अनुज नैयर की कहानी को भी कई डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया है और उनका नाम देश भर में स्मारकों और सार्वजनिक सम्मानों में अंकित किया गया है. कैप्टन जेरी प्रेम राज को उन कुछ तोपखाने अधिकारियों में से एक के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने पैदल सेना के साथ लड़ाई लड़ी और सम्मान के साथ अपना जीवन बलिदान कर दिया.
द्रास में कारगिल युद्ध स्मारक पर अब इन बहादुर पुरुषों सहित सभी शहीदों के नाम अंकित हैं. हर साल 26 जुलाई को उनकी याद में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. उनकी बहादुरी को कभी न भुलाए जाने के लिए पूरे भारत में समारोह, परेड और मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि दी जाती है.
7 जुलाई, 1999 की घटनाएँ भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं. कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन अनुज नैयर, कैप्टन जेरी प्रेम राज और कई अनाम नायकों ने न केवल हथियारों से बल्कि अटूट विश्वास और साहस के साथ लड़ाई लड़ी. उन्होंने भारत को सिर्फ़ एक सामरिक जीत से कहीं ज़्यादा दिया; उन्होंने देश को गौरव और वीरता की विरासत दी.
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