गोरखपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुसांगिक संगठन ‘राष्ट्र सेविका समिति’ का 15 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर संपन्न हुआ. जिसके बाद बीते मंगलवार को राष्ट्र सेविका समिति की 200 सेविकाओं ने गोरखपुर में पथ संचलन किया. इस दौरान पूरा क्षेत्र ‘भारत माता की जय’ के नारों से गूंज उठा.
पथ संचलन से पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश के 25 जिलों से आईं 200 महिलाओं को 15 दिनों का प्रशिक्षण दिया गया. इस प्रशिक्षण का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना व सामाजिक और राष्ट्रीय कार्यों में उनकी भूमिका को मजबूत करना है. ‘राष्ट्र सेविका समिति’ संगठन का निर्माण 1936 में विजयदशमी के दिन वर्धा में लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी) ने किया था.
गोरखपुर।
राष्ट्र सेविका समिति की सेविकाओं ने शहर में पथ संचलन निकाला। समाज जनों ने पथ संचलन का कई स्थानों पर पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। ‘वंदे मातरम‘ और ‘भारत माता की जय‘ के गगनभेदी उद्घोष से गूंज उठा।
राष्ट्र सेविका समिति काशी व गोरक्ष प्रांत का 15 दिवसीय प्रवेश व प्रबोध वर्ग का… pic.twitter.com/WOD1cu20v7— VSK BHARAT (@editorvskbharat) June 17, 2025
राष्ट्र सेविका समिति निर्माण करने का उद्देश्य
राष्ट्र सेविका समिति संगठन के निर्माण का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना था. ताकि वह अपनी भूमिका से समाज व राष्ट्र को सनातन और नैतिक मूल्यों से जोड़ते हुए आगे लेकर जाएं. इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विजयदशमी के दिन 1936 में वर्धा में श्रीमती लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी) ने ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की नींव रखी. उन्होंने समिति का केंद्रीय कार्यालय नागपुर में स्थापित करते हुए कार्य प्रारंभ किया. संगठन का ध्येय ‘तेजस्वी राष्ट्र का निर्माण’ और सूत्र ‘स्त्री राष्ट्र की आधार शक्ति’ है. वर्तमान में समिति की संचालिका वेंकटरमैया शांताकुमारी (शांताक्का जी) हैं.
समिति द्वारा देश भर में चलाए जा रहे सेवा कार्य
राष्ट्र सेविका समिति की देशभर में 4,125 शाखाएं हैं. यह शाखाएं 12 क्षेत्र और 38 प्रांतों में संचालित हो रही हैं. संगठन की दृष्टि से कुल 1,042 जिले हैं, जिनमें से 834 जिलों में समिति से जुड़ी महिला कार्यकर्ता काम कर रही हैं. समिति की सेविकाओं द्वारा देशभर में 1,799 सेवा कार्य चलाए जा रहे हैं. डॉ हेडगेवार से प्रेरणा लेकर लक्ष्मीबाई केलकर ने समिति का निर्माण किया था.
डॉ हेडगेवार से मिली प्रेरणा
1925 में डॉ हेडगेवार ने संघ की स्थापना की. उस दौरान स्थितियां ठीक ने होने के कारण वह संघ में महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में नहीं थे. संघ में प्रवेश की इच्छुक लक्ष्मीबाई केलकर को उन्होंने प्रोत्साहित करते हुए अपने स्तर पर महिलाओं के लिए कोई संगठन निर्माण करने की बात कहीं. डॉ हेडगेवार से प्ररित होकर लक्ष्मीबाई केलकर ने 1936 में वर्धा में राष्ट्र सेविका समिति की नींव रखी. इसके अलावा समिति स्वातंत्र्य वीर सावरकर के विचार और समर्थ गुरु रामदासजी के संगठनात्मक अनुभव से प्रेरित होकर समित बनाई और देश भर में कार्य प्रारंभ किया.
संगठन की आदर्श महिलाएं
राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी महिलाएं माता जीजाबाई, रानी लक्ष्मीबाई, देवी अहिल्याबाई होल्कर, नागालैंड की रानी मां गाईदिन्ल्यू, मां शारदा व इमरती देवी सहित उन सभी महिलाओं को मानती हैं, जिन्होंने राष्ट्र रक्षा के लिए न सिर्फ बलिदान दिया बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी यह सीख देकर गईं.
लक्ष्मी बाई केलकर के नेतृत्व में घरों से निकली महिलाएं
30- 40 के दशक में रुढिवादिता के चलते महिलाओं को चारदीवारी में कैद रखा जाता था. लेकिन, 25 अक्तूबर 1936 को वर्धा में लक्ष्मी बाई केलकर के नेतृत्व में बड़ी संख्या में महिलाएं समिति का कामकाज करने निकलीं. भारत के इतिहास में एक क्रांतिकारी घटना थी.
समिति से जुड़ी महिला कार्यकर्ताओं को अनुशासित सेविका बनाने के लिए प्रशिक्षण वर्ग प्रारंभ किए गए. 1936 से 1940 के बीच समिति का विस्तार सिंध, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब तक हो गया. 1943-44 के दौरान कराची में भी शिक्षा वर्ग का आयोजन किया गया.
समिति से जुड़ी महिलाएं समाज के बीच क्या कार्य करती हैं?
राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं को सशक्त बनाने और राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को तैयार करने के लिए कार्य करती है. समिति का मामना है कि मां की भूमिका समाज में सबसे बड़ी होती है. अगर जीजाबाई ने शिवाजी को बचपन से उचित संस्कार और ज्ञान नहीं दिया होता तो वह इतने बड़े पराक्रमी योद्धा नहीं बन पाते. इसीलिए समिति से जुड़ीं महिलाएं सनातन संस्कृति और परंपराओं के मूल्यों का सम्मान करती हैं. समिति द्वारा जुड़ी सेविकाओं को शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक रूप से मजबूत करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
समिति के अनुसार, सशक्त महिला एक सशक्त परिवार और सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकती है. इसलिए उन्हें शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक रूप से मजबूत करना होगा.
समिति साल भर में 5 उत्सव प्रमुख रूप से मनाती
1- वर्ष प्रतिपदा
2- गुरू पूर्णिमा
3- रक्षाबंधन
4- विजयादशमी
5- मकर संक्रांति
समिति द्वारा किए जा रहे सेवा कार्य
राष्ट्र सेविका समिति का सेवा कार्य दो विभागों में चलता है, जिसमें पहला स्थाई सेवा प्रकल्प है. इसमें छात्रावास, उद्योग मंदिर, शिलाई- बुनाई केंद्र, योग केंद्र, संस्कार वर्ग आदि आयाम आते हैं. वहीं. दूसरा अस्थायी सेवा प्रकल्प है, जिसमें प्राकृतिक आपदा (चक्रवात, भूकंप, कोरोना जैसी महामारी, बाढ़) के दौरान सहायता केंद्र चलाए जाते हैं. राष्ट्र सेविका समिति शिक्षा के क्षेत्र में 250 सेवा कार्य, धार्मिक क्षेत्र में 332 सेवा कार्य, स्वावलंबन के क्षेत्र में 113, स्वास्थ्य के क्षेत्र में 156 व अन्य क्षेत्रों में 90 सेवा कार्य कर रही है.
कोरोना काल के दौरान समिति की भूमिका
कोरोना काल के दौरान राष्ट्रीय सेविका समिति ने सेवा के कई कार्य किए. समिति से जुड़ी सेविकाओं ने मास्क व कोरोना सुरक्षा किट का वितरण किया. कोरोना काल के दौरान गुवाहाटी सहित कई जगहों पर सेविकाओं ने लोगों को राशन बांटा. सेविकाओं ने बुजुर्गों की दवा व पशुओं के चारे की भी चिंता करते हुए गर्भवती महिलाओं का भी ध्यान रखा.
वंदे मातरम गायन – वर्ल्ड रिकॉर्ड
20 दिसंबर 2024 को ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर नागपुर में आयोजित खासदार सांस्कृतिक महोत्सव में, 175 स्कूलों के 28,329 छात्रों ने ‘लीड एंड फॉलो’ पद्धति से ‘वंदे मातरम’ का सामूहिक गायन कर विश्व रिकॉर्ड बनाया. इस सामूहिक गायन को लेकर 22 दिसंबर 2024 को इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स से प्रमाण पत्र दिया गया.
राष्ट्र सेविका समिति नागपुर विभाग की सेविकाओं द्वारा इस पहल के लिए भरसक प्रयास किया गया. ‘वंदे मातरम’ की ऑडियो रिकॉर्डिंग आयोजकों ने सभी प्रधानाचार्यों के व्हाट्सएप ग्रुप में भेजी, जिसके माध्यम से विद्यार्थियो ने उसे याद किया.
मंदिर सफाई अभियान
राष्ट्र सेविका समिति की सेविकाओं ने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की पुण्यतिथि पर (1 सितंबर, श्रावण शुक्ल चतुर्दशी) गुजरात और सौराष्ट्र प्रांत में मंदिर सफाई अभियान चलाया. 2,707 सेविकाओं व समाज के अन्य लोगों ने एक ही दिन में 466 मंदिरों की सफाई की. इस अभियान में बालिका और महिलाओं ने भी सक्रिय भागीदारी निभाई.
सफाई के पश्चात भक्तों और समाज की सज्जनशक्ति के बीच देवी अहिल्याबाई के सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक जीवन पर चर्चा की गई. प्रसाद का वितरण हुआ. इस अभियान से प्रेरित होकर कई मंदिरों की नियमित सफाई का संकल्प लिया गया. समाज के सहयोग से यह कार्य निरंतर चल रहा है.