सिद्धार्थ नगर: उत्तर प्रदेश सरकार सिद्धार्थ नगर जिले में काला नमक चावल के लिए एक रिसर्च सेंटर स्थापित करेगी. यह शोध केंद्र अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के सहयोग से बनाया जाएगा, ताकि काला नमक धान की कीट प्रतिरोधी किस्मों का विकास किया जा सके. साथ ही इस चावल की उपज को और बढ़ाया जाए. राइस रिसर्च सेंटर के अलावा योगी सरकार सिद्धार्थ नगर के महादेवा में एक आधुनिक गोदाम और चावल परीक्षण केंद्र भी स्थापित करेगी. उल्लेखनीय है कि काला नमक चावल पौष्टिक होने के साथ-साथ बौद्ध धर्म की पौराणिक मान्यताओं से भी जुड़ा है.
Siddharth Nagar
UP Govt to establish a Research Center for Kala Namak rice in the district.
The center will come up in association with International Rice Research Institute – to develop pest-resistant varieties and boost yield.
Govt is also setting up a Common Facility Centre… pic.twitter.com/f7Wke2lpFQ
— The Uttar Pradesh Index (@theupindex) June 11, 2025
बीते साल 32.8 लाख टन काला नमक चावल का हुआ उत्पादन
GI टैग वाला काला नमक चालव सिद्धार्थ नगर का ओडीओपी प्रोडक्ट भी है. यूपी में काला नमक चावल का उत्पादन धीरे-धीरे बढ़ रहा है. प्रदेश में साल 2024-25 में 32.8 लाख टन काला नमक चावल का उत्पादन हुआ था. जिसमें से 500 टन कई देशों को निर्यात भी किया गया था, जिससे किसानों की अच्छी आमदनी भी हुई. खरीफ वर्ष 2024-25 में इसकी खेती का रकबा 82 हजार हेक्टेयर था, जो अब बढ़ाकर 1 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा गया है.
उत्तर प्रदेश ने पिछले वर्ष सिंगापुर और नेपाल को लगभग 500 टन काला नमक चावल का निर्यात किया था. लेकिन अब इसकी डिमांड और बढ़ रही है. थाईलैंड, वियतनाम, श्रीलंका और जापान जैसे बौद्ध देश इस खास किस्म के चावल को खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इसका एक खास कारण यह भी है कि भगवान बुद्ध से काला नमक चावल का ऐतिहासिक संबंध होना.
काला नमक चावल का बौद्ध धर्म से संबंध
काला नमक चावल का बौद्ध धर्म से गहरा नाता है. मान्यताओं के अनुसार, बोधगया में ज्ञान प्राप्ति होने के बाद भगवान गौतम बुद्ध अपनी राजधानी कपिलवस्तु लौट रहे थे. मार्ग में उन्होंने कुछ समय के लिए बजहा नामक गांव में विश्राम किया. भगवान बुद्ध के गांव में होने की जानकारी मिलते ही ग्रामीण एकजुट हुए और उनका खूब सेवा-सत्कार किया. लेकिन, जब वह गांव से जाने लगे तो ग्रामीण भावुक हो गए और यहीं रुकने का आग्रह किया. जिस पर भगवान बुद्ध ने अपनी छोली से एक मुठ्ठी धान निकाल कर ग्रामीणों को दिया और कहा कि इसको अपने खेतों में बोना. इस धान के चावलों की सुगंध हमारी याद दिलाती रहेगी. साथ ही यह भी मान्यता है कि ज्ञान प्राप्ति होने के बाद भगवान बुद्ध ने काला नमक चावल से बनी खीर खाकर अपना व्रत तोड़ा था.
क्या है काला नमक चावल?
काला नमक चावल की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में विशेष रूप से होती है. यह एक विशेष प्रकार का सुगंधित चावल होता है. जिसका नाम काले रंग की भूसी के चलते ‘काला नमक चावल’ रखा गया है. जहां ‘काला’ का अर्थ काले रंग से और ‘नमक’ शब्द का मतलब इसकी नमकीन सुगंध से है. यह चावल अपने स्वाद और अनूठी सुगंध के साथ पौष्टिकता के लिए प्रसिद्ध है.
काला नमक चावल में एंटीऑक्सीडेंट्स, आयरन, जिंक और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होती है. इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण यह मधुमेह रोगियों के लिए भी लाभकारी है. जबकि अन्य किस्म के चावल मधुमेह मरीजों के लिए नुकसानदायक होते हैं.
इस इंडेक्स से आप सामान्य चावल और काला नमक चावल में मिलने वाले पोषक तत्वों के बारे में समझ सकते हैं.
काला नमक चावल को मिला है GI टैग
साल 2013 में काला नमक चावल को जीआई टैग मिला था. इस धान के खेती उत्तर प्रदेश के 11 तराई क्षेत्रों वाले जिलों-गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, बस्ती, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा और श्रावस्ती में होती है. GI टैग मिलने से काला नमक चावल की ब्रांडिंग में सुधार होने के साथ-साथ नकली उत्पादों से सुरक्षा भी सुनिश्चित हो गई है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस धान की पहचान होने से इसकी मांग में वृद्धि हो रही है, जिससे किसानों को उनकी उपज का अच्छा भाव भी मिल रहा है.
कैसे होती है काला नमक चावल की खेती?
कालानमक चावल की खेती मुख्य रूप से जैविक तरीकों से की जाती है. यह दलदली भूमि में उगाया जाता है. बुवाई जून-जुलाई में और कटाई नवंबर-दिसंबर में होती है. इसके लिए पानी की अधिक जरूरत होती है, यही कारण है कि इसकी खेती तराई क्षेत्र में होती है. काला नमक धान की उपज अन्य चावल की किस्मों से कम होती है, लेकिन इसकी गुणवत्ता और मांग के कारण कीमत अधिक मिलती है. योगी सरकार ने ODOP योजना के तहत इस काला नमक धान को प्रोत्साहित किया है. किसानों को इसके बीज, खेती करने का प्रशिक्षण और बाजार में बिक्री की सुविधाएं दी जा रही हैं.
देश ही नहीं विदेश में बढ़ रही काला नमक चावल की मांग
काला नमक चावल की मांग भारत के साथ-साथ विदेश में भी बढ़ रही है. इसकी सुगंध, स्वाद और भगवान बुद्ध से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं के कारण थाईलैंड, वियतनाम, श्रीलंका और जापान, सिंगापुर जैसे बुद्धिस्ट देशों लगातार मांग बढ़ रही है. बौद्ध धर्म के अनुयायी विशेष अवसरों इसी चावल से महाप्रसाद तैयार करते हैं. डिमांड बढने के चलते फ्लिपकार्ट और एमाजेन जैसी ऑनलाइन साइटों पर भी काला नमक चावल उपलब्ध है,
सिद्धार्थ नगर का ओडीओपी उत्पाद है काला नमक चावल
योगी सरकार एक जिला एक उत्पाद (ODOP) की योजना चला रही है. इसी योजना के तहत काला नमक चावल को सिद्धार्थनगर जिले का ओडीओपी उत्पाद घोषित किया गया है. जिले में सन् 2018 में 2,700 हेक्टेयर काला नमक धान की खेती होती थी. जिसके बाद योगी सरकार के प्रयासों से 2021 में यह रकबा बढ़कर 12,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है. साथ ही किसानों की संख्या 2,950 से बढ़कर 13,500 से अधिक पहुंच गई है. वहीं यूपी भर में 1 लाख हेक्टेयर तक इस धान को लगाने का लक्ष्य रखा गया है.
रिसर्च सेंटर स्थापित होने से किसानों की आय में होगी वृद्धि
काला नमक चावल की मौजूदा किस्म, भूरे कीट से प्रभावित होती है, जिससे फसल को नुकसान होता है. यदि रिसर्च सेंटर एक कीट प्रतिरोधी किस्म विकसित करता है, तो किसानों को कीटनाशक दवाइयों पर कम खर्च करना पड़ेगा. साथ ही फसल की पैदावारी भी अधिक होगी. जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी.
यदि रिसर्च की गई नई किस्म की उपज, पारंपरिक किस्म से 20% अधिक होती है, तो किसान एक ही भूमि से ज्यादा धान का उत्पादन कर सकेंगे. अधिक उत्पादन से किसानों को बिक्री के लिए अतिरिक्त चावल मिलेगा, जिससे उनकी कमाई बढ़ेगी और क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा भी मजबूत होगी.
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