बदायूं: ‘नीलकंठ महादेव मंदिर बनाम जामा शम्सी मस्जिद’ विवाद पर दाखिल याचिका सिविल जज की अदालत में सुनवाई के लिए पेंडिंग मेंं है. विवादित इमारत को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि 1175 ई. में इसे पाल वंश के शासक महाराजा अजयपाल ने बनवाया था. लेकिन 1225 ई. मुगल शासक शमसुद्दीन अल्तमश ने मंदिर को तोड़कर उसे मस्जिद के रूप में परिवर्तित करा दिया था. मस्जिद के नीलकंठ महादेव मंदिर होने का दावा करते हुए हिंदू पक्ष ने कई ऐतिहासिक प्रमाण कोर्ट के सामने रखे हैं.
नीलकंठ महादेव मंदिर बनाम शम्सी शाही मस्जिद विवाद
बदायूं की जामा मस्जिद को शाही जामा मस्जिद ‘शम्सी’ के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू पक्ष के याचिकाकर्ताओं का दावा है कि मस्जिद, नीलकंठ महादेव मंदिर के ऊपर बनाई गई है. हिंदू पक्ष ने मध्यकालीन इतिहास के आधार पर यह दावा किया है. हिंदू पक्ष ने ASI की सर्वे रिपोर्ट, गजेटियर आफ इंडिया, उत्तर प्रदेश व जिला प्रशासन की रिपोर्ट को भी शामिल किया है.
गजेटियर आफ इंडिया, उत्तर प्रदेश में क्या लिखा है?
1857 में अंग्रेजी हुकूमत के समय लिखे गए गजेटियर आफ इंडिया, उत्तर प्रदेश, बदायूं के अनुसार शम्सी शाही मस्जिद का निर्माण मंदिर के स्थान पर किया गया है. मस्जिद के निर्माण में मंदिर के पुराने पत्थरों का उपयोग किया गया है. गजेटियर में यह भी जिक्र है कि मस्जिद निर्माण की सामग्री किसी नष्ट हुए मंदिर की प्रतीत होती है.
गजेटियर में ऐतिहासिक साक्ष्यों का भी उल्लेख मिलता है. जिसके अनुसार 1202 से 1200 ईस्वी तक शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश बदायूं का गवर्नर था. शम्स-उद-दीन कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद था. उसने अपने शासन काल में नीककंड महादेव मंदिर के स्थान पर अपने नाम से शम्सी शाही मस्जिद का निर्माण कराया था. गजेटियर में उल्लेख मिलता है कि मस्जिद में जो नक्काशीदार खंभे हैं, वह किसी मंदिर के प्रतीत होते हैं.
फोटो क्रेडिट जी-न्यूज
शम्सी शाही मस्जिद पर ASI की रिपोर्ट
बदायूं कि शम्सी शाही मस्जिद को लेकर ASI ने 1875 से 1877 के दौरान सर्वे किया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि राजा महिपाल बदायूं के राजा हुआ करते थे. उन्होंने अपने शासन काल में हरमंदर नाम का एक मंदिर बनवाया था, जिसे मुस्लिम आक्रांताओं ने नष्टकर मस्जिद बना ली. वर्तमान में बदायूं में जो शम्सी शाही मस्जिद है, वह इसी स्थान पर बनी है. स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर की सभी मूर्तियां, मस्जिद के नीचे दबी थीं.
फोटो क्रेडिट-जी न्यूज
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ASI ने अपनी रिपोर्ट में इतिहास का जिक्र करते हुए लिखा है कि बदायूं का पहला गवर्नर शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश था, जो बाद में अपने ससुर कुतुबुद्दीन ऐबक के स्थान पर दिल्ली सल्तनत का शासक बना. शमसुद्दीन ने अपने बड़े बेटे रुकनुद्दीन फिरोज को बदायूं का गर्वनर बनाया. रुकनुद्दीन फिरोज के गर्वनर रहते हुए हरमंदर मंदिर नष्ट कर दिया और फिर उसी स्थान पर अपने पिता के नाम से शम्सी जामा मस्जिद बनवाई. ASI की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विद्वानों के अनुसार- पहले बदायूं का पहला नाम वेदामऊ या बदामैया था.
जिला प्रशासन के अनुसार शम्सी मस्जिद का इतिहास
बदायूं जिला सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय से छपी पुस्तक के अनुसार, बदायूं के राजा लखपाल के कार्यकाल में ईशान शिव नामक मठाधीश ने बदायूं में विशाल शिव मंदिर का निर्माण कराया. जो इशान महादेव मंदिर के नाम से चर्चित हुआ. बाद में इस मंदिर को नीलकंठ महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाने लगा. हालांकि, दिल्ली का शासक बनने के बाद शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने इस मंदिर को करीब 1245 ईस्वी में ध्वस्तकर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया.
मुस्लिम आक्रांताओं के मंदिर को तोड़ने से पहले, साल 1175 में राजा अजयपाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. हालांकि 1202 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूं पर अधिकार कर इस्लामिक गुलाम वंश सल्तनत की स्थापना की. कुतुबुद्दीन ने बदायूं को पश्चिमी क्षेत्र के सूबेदार (गर्वनर) की राजधानी बनाया. उसने अपने दामाद शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश को बदायूं का सूबेदार बनाया. जिसने नीलकंठ महादेव मंदिर को ध्वस्त कर शम्सी शाही जामा मस्जिद बनाई. साथ ही सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय, बदायूं की पुस्तक में यह भी लिखा है कि गुप्त काल में बदायूं को ‘वेदामऊ’ नाम से जाना जाता था. यहां वेदों का एक बड़ा अध्ययन केंद्र था.
कोर्ट में कब पहुंचा ‘शम्सी मस्जिद बनाम नीलकंड महादेव मंदिर’ विवाद
2 सितंबर 2022 को अखिल भारतीय हिंदू महासभा के 5 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा ने बदायूं में सिविल जज सीनियर डिवीजन, फास्टट्रेक कोर्ट में याचिका डाली. अखिल भारतीय हिंदू महासभा के कार्यकर्ता मुकेश पटेल, अरविंद परमान (एडवोकेट), ज्ञानेंद्र प्रकाश, डॉ अनुराग शर्मा और उमेश चंद्र शर्मा ने शम्सी जामा मस्जिद के स्थान पर नीलकंठ महादेव मंदिर होने का दावा करते हुए याचिका दाखिल की थी. तब से यह मामला बदायूं जिला के सिविल जज सीनियर डिवीजन, फास्टट्रेक कोर्ट की अदालत में सुनवाई के लिए पेंडिंग में है.
पहले इस मामले पर फास्टट्रेक कोर्ट के जज अमित कुमार सुनवाई कर रहे थे. हालांकि, उनका भदोही जिले में तबादला हो गया. पिछले 3 साल से कोर्ट में याचिका की पोषणीयता पर कई बार सुनवाई टल चुकी है. 28 मई 2025 को भी इस मामले पर सुनवाई होनी थी जो एक बार फिर से टल गई. कोर्ट अब यह सुनवाई 5 जुलाई को करेगा.