लखनऊ: उत्तर प्रदेश के तत्कालीन कार्यवाहक DGP प्रशांत कुमार का रिटायरमेंट 31 मई 2025 को हो रहा है। कानून व्यवस्था संभालने और कई बड़े ऑपरेशन्स को संभालने का उनका लम्बा अनुभव रहा है। हालांकि, 2017 के बाद उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति या IAS-IPS की नियुक्ति को लेकर वो दौर देखने को नहीं मिला जो पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में सामने आया था। फिर भी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरकार की चुटकी लेते हुए स्थायी DGP की नियुक्ति पर सवाल उठाया है। अखिलेश ने कहा ‘UP सरकार एक स्थायी DGP नहीं दे सकती कानून-व्यवस्था क्या संभालेगी।
बता दें, समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के 2003 से 2007 तक के कार्यकाल और पूर्व CM अखिलेश यादव के 2012 से 2017 तक के कार्यकाल में कई मौकों पर DGP की नियुक्तियों में वरिष्ठता को नजरअंदाज करने और समाजवादी पार्टी के नेताओं के प्रभाव के आरोप लगे। यही नहीं इस दौरान बड़े पैमाने पर IAS और IPS अधिकारियों की नियुक्तियां और निलंबन चर्चा में रहा।
समाजवादी पार्टी शासन में नौकरशाही पर पक्षपात के प्रमुख मामले
1. IPS जावेद अहमद की विवादास्पद DGP नियुक्ति (2016)
वर्ष 2016 में अखिलेश सरकार ने 15 वरिष्ठ IPS अधिकारियों को नजरअंदाज कर जावेद अहमद को यूपी का DGP नियुक्त किया। ये नियुक्ति जगमोहन यादव के रेटायरमेंट के बाद हुई थी। यह फैसला समाजवादी पार्टी के राजनीतिक हितों और शिवपाल यादव के प्रभाव से प्रेरित माना गया। योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2017 में जावेद को हटाकर सुलखान सिंह को DGP बनाया, जो वरिष्ठता के आधार पर चुने गए। इस नियुक्ति ने SP शासन में मेरिट को दरकिनार करने की प्रवृत्ति को उजागर किया।
स्रोत: आज तक, द इंडियन एक्सप्रेस
2. IPS अमिताभ ठाकुर और मुलायम सिंह का विवाद (2015)
10 जुलाई 2015 को मुलायम सिंह यादव पर आईपीएस अधिकारी को धमकी देने का आरोप लगा था। इसका ऑडियो क्लिप भी वायरल हुआ था। 13 जुलाई 2015 अमिताभ ठाकुर को समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के खिलाफ फोन पर धमकी देने का मामला दर्ज कराने के बाद निलंबित कर दिया गया था। हालांकि, केंद्र सरकार ने उनके निलंबन को रद्द कर दिया था। जिसके बाद केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने उनके निलंबन आदेश को रद्द कर दिया था।
पूर्व IPS अमिताभ ठाकुर ने 10 जुलाई 2015 को धमकी का ऑडियो जारी किया और 11 जुलाई को उनके खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज हुआ। कहा गया सरकार की खिलाफत करना उनको भारी पड़ा था।
स्रोत: यूट्यूब ABP न्यूज
नूतन ठाकुर ने 2017 में SP की हार को अपनी “हाय” का परिणाम बताया। यह मामला समाजवादी पार्टी सरकार द्वारा नौकरशाही पर दबाव और बदले की कार्रवाई का प्रतीक बना।
2017 में समाजवादी पार्टी के हारने के बाद अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए निलंबित आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर की पत्नी पूर्व IPS नूतन ठाकुर ने कहा है कि ये मेरी हाय का ही असर है जिसके कारण अखिलेश यादव और उनकी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा है। नूतन ने कहा कि मेरे पति के खिलाफ अखिलेश यादव ने गलत तौर पर कार्रवाई की थी। मैंने पिछले साल दिसंबर में एक पत्र लिखा था जिसमें कहा था कि अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहते हुए बेशक अपनी कितनी भी तारीफ क्यों न कर लें लेकिन उनके किए की सजा एक दिन भगवान उन्हें जरूर देगा।
स्रोत: जनसत्ता
3. IAS दुर्गा शक्ति नागपाल का निलंबन (2013)
27 जुलाई 2013 को IAS अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को अवैध रेत खनन के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए 41 मिनट में निलंबित कर दिया गया। समाजवादी पार्टी नेता नरेंद्र भाटी ने दावा किया कि उन्होंने यह निलंबन करवाया, जो अवैध खनन माफिया को संरक्षण देने के आरोपों को बल देता है।
व्यापक जन और मीडिया विरोध के बाद 22 सितंबर 2013 को उनका निलंबन रद्द हुआ। यह घटना समाजवादी पार्टी सरकार में नौकरशाही पर राजनीतिक दबाव का स्पष्ट उदाहरण बना था।
स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड
4. बड़े पैमाने पर IAS-IPS तबादले (2012-2013)
2012 में सत्ता में आने के बाद अखिलेश सरकार ने 1,000 से अधिक IAS और IPS अधिकारियों के तबादले किए, जिसे मायावती सरकार के करीबी अधिकारियों को हटाने की रणनीति माना गया। फरवरी, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर 2012, और जनवरी, फरवरी, जुलाई 2013 में हुए फेरबदल में गौतम बुद्ध नगर के SSP प्रीतिंदर सिंह जैसे अधिकारियों को स्थानांतरित किया गया। यह तबादले SP के सियासी नियंत्रण को दर्शाते थे।
स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड – फरवरी 2012, अगस्त 2012, अगस्त 2012, सितंबर 2012, अक्टूबर 2012, जनवरी 2013, फरवरी 2013, जुलाई 2013, जागरण
5. नोएडा भूमि घोटाला (2005-2018) मुलायम सिंह यादव की करीबी IAS का नाम
CAG की रिपोर्ट में नोएडा में 55,000 करोड़ रुपये के भूमि अधिग्रहण और आवंटन घोटाले का खुलासा हुआ, जिसमें IAS और IPS अधिकारियों की मिलीभगत थी। CAG रिपोर्ट में नियमों के उल्लंघन और निजी फर्मों को लाभ पहुंचाने का उल्लेख है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की करीबी रहीं और मुख्य सचिव नीरा यादव का नाम सामने आया था। नीरा यादव देश की पहली ऐसी IAS अफसर रही है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में भ्रष्टाचार के आरोपों चलते चीफ सेक्रेटरी पद से हटाया था। 1997 के आईएएस एसोसिएशन के चुनाव में नीरा को सबसे भ्रष्ट आईएएस अफसर भी माना गया था। बावजूद नीरा के रसूख में कोई कमी नहीं आई और एक से एक अच्छी पोस्टिंग मिलती रही।
6. अखिलेश यादव के करीबी IAS रमारमण, जिनका भी भूमि घोटाले में नाम आया था
IAS अधिकारी रमारमण जो पूर्व CM अखिलेश यादव के करीबी थे। उनके पास नोएडा अथॉरिटी के चैयरमैन के अलावा ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी का भी चेयरमैन पद था। यही नहीं अखिलेश राज में करीब ढाई सालों तक तो वे तीनों ही अथॉरिटी के चैयरमैन और सीईओ भी रहे। ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई शख्स तीनों अथॉरिटी के चैयरमैन के साथ-साथ सीईओ के पद पर भी विराजमान रहा हो। 2025 में ईडी ने हैसिंडा भूमि घोटाले में पूर्व IAS रमारमण से पूछताछ की। टीम ने उनकी चल-अचल संपत्तियों और बैंक खातों के बारे में जानकारी ली। साथ ही उनसे करीबी परिजनों की संपत्तियों और बैंक खातों की जानकारी भी मांगी है।
7. अखिलेश सरकार में IAS अनीता सिंह का प्रभाव भी सुर्खियों में रहा (23 अक्टूबर 2016)
1990 बैच की IAS अनीता सिंह को मुलायम सिंह यादव का विश्वासपात्र माना जाता था। 2003-2007 और 2012-2017 में समाजवादी पार्टी सरकारों में प्रभावशाली रहीं। अखिलेश सरकार में उनकी भूमिका तब और चर्चा में आई जब समाजवादी पार्टी परिवार में अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच सत्ता का टकराव हुआ। कहा जाता है अखिलेश की प्रमुख सचिव रहते हुए वो शिवपाल यादव के धड़े के लिए काम कर रहीं थीं। जिसके बाद, 23 अक्टूबर 2016 को अखिलेश ने उन्हें और DGP जावेद अहमद को केवल अपने आदेश मानने का निर्देश दिया।
स्रोत: द क्विंट, द कारवां मागजीन
8. पूर्व DGP ओपी सिंह का खुलासा
पूर्व DGP ओपी सिंह ने अपनी किताब Crime, Grime and Gumption में खुलासा किया कि समाजवादी पार्टी नेताओं के करीबी अधिकारियों को हमेशा प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया, जो पक्षपात की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
सोर्स : गूगल बुक लिंक
हालांकि ये बात इस समय पर उठने का कारण उत्तर प्रदेश में 2017 के बाद आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की नियुक्तियों पर उठने वाले सवालों पर आधारित है। अभी हाल फिलाल में किसी भी रिपोर्ट में 2017 के बाद योगी सरकार के कार्यकाल में ऐसे कोई भी आरोप किसी भी IAS-IPS अधिकारी की तरफ से सामने नहीं हैं, जिसमें पक्षपात का आरोप लगा हो। लेकिन विपक्ष ऐसे आरोप लगतार लगाता रहा है।