सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने 7 नवंबर, 2024 के आदेश की समीक्षा करने से इनकार कर दिया है, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले की पुष्टि की गई है. जिसमें कहा गया था कि चर्च द्वारा संचालित सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षक के रूप में काम करने वाली नन और पादरियों को दिया जाने वाला वेतन भी आयकर प्रावधानों के अधीन है. भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रांसिस्कन मिशनरीज ऑफ मैरी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य’ मामले में समीक्षा याचिकाओं के एक बैच को खारिज कर दिया.
पीठ ने कहा, समीक्षा याचिकाओं और संलग्न दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद, हमें 07.11.2024 के आदेश की समीक्षा करने का कोई अच्छा आधार और कारण नहीं मिला. सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार, कागजात वितरित करके, न्यायाधीशों के कक्ष में समीक्षा याचिका पर विचार किया जाता है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ‘अब सेवानिवृत्त’ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले नवंबर माह में वेतनभोगी ननों और पादरियों को आयकर से छूट देने के लिए विभिन्न मिशनरियों द्वारा दायर 93 याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह धनराशि वेतन अनुदान के रूप में स्कूल को दी जाती है, इसलिए इसे टी.डी.एस. से छूट नहीं दी जा सकती. मद्रास उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने पादरियों और ननों के पक्ष में फैसला सुनाया था.
1944 से वेतन पर कर छूट का लाभ ले रहे थे
2014 से पहले, कैथोलिक नन और पादरियों को 1944 से वेतन पर कर छूट दी गई थी, जो अब समाप्त कर दी गई है. यह छूट ब्रिटिश राज से चली आ रही थी, जो 1940 के दशक में शुरू हुई थी और आजादी के बाद भी जारी रही. 2014 में, कुछ धार्मिक संस्थाओं ने सरकार के इस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें चर्च में काम करने वाले लोगों के वेतन पर कर लगाने की कोशिश की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 93 अपीलों को खारिज करते हुए कहा कि टैक्स सभी को देना होगा, भले ही वे नन या पादरी हों.
कैसे टैक्स पेयर्स के साथ अन्याय हो रहा था
धार्मिक कर्मियों को दी गई कर छूट के कारण आम करदाताओं पर कर का बोझ पड़ रहा था. यह इसलिए है क्योंकि कुछ धार्मिक संगठन, विशेष रूप से गैर-लाभकारी, करों से पूरी तरह या आंशिक रूप से छूट प्राप्त करते हैं, जिससे वे व्यवसाय से प्राप्त आय पर कर नहीं देते थे.
7 नवंबर 2024 मिशनरियों की 93 याचिकाओं को खारिज कर दिया था
सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर 2024 को वेतनभोगी ननों को आयकर से छूट देने के लिए विभिन्न मिशनरियों की 93 याचिकाओं को खारिज कर दिया था. मिशनरियों ने तर्क दिया था कि जब नन और पादरी गरीबी की शपथ लेते हैं तो वे नागरिक मृत्यु की स्थिति में चले जाते हैं और उन्हें कर देने की आवश्यकता नहीं होती.
न्यायालय के फैसले के महत्वपूर्ण बिंदु
- पीठ ने कहा, समीक्षा याचिकाओं और संलग्न दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद, हमें 07.11.2024 के आदेश की समीक्षा करने का कोई अच्छा आधार और कारण नहीं मिला.
- हाईकोर्ट ने अपने कुछ निर्णयों में माना है कि किसी पुजारी या नन की मृत्यु पर उसका परिवार मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे का दावा नहीं कर सकता है.
- यदि कोई हिंदू पादरी या पुजारी है जो कहता है कि मैं यह वेतन नहीं रखूंगा, और पूजा करने के लिए पैसे किसी संगठन को दे दूंगा. लेकिन यदि व्यक्ति कार्यरत है, तो उसे वेतन मिलता है, कर काटा जाना चाहिए. कानून सभी के लिए समान है.