Chinmoy Krishna Das: इस्कॉन मंदिर के पुजारी चिन्मय कृष्ण दास को 6 महीने बाद जमानत मिल गई है. वे बांग्लादेश की जेल में बंद थे. चिन्मय दास को पिछले साल नवंबर में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. चटगांव न्यायालय में जमानत पाने के कई असफल कोशिशों के बाद, चिन्मय दास के वकील ने बांग्लादेश हाई कोर्ट की सुनवाई में उन्हें जमानत दिलवाई है.
कौन हैं चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी?
चंदन कुमार धर, जिन्हें चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी के नाम से भी जाना जाता है, सनातन जागरण मंच के प्रवक्ता और चटगांव इस्कॉन के पुजारी हैं. इस्कॉन चटगांव से पता चला कि 37 साल के चिन्मय कृष्ण चटगांव के सतकानिया जिले से हैं. वे अपने धार्मिक भाषणों के लिए जाने जाते हैं. इन्ही भाषणों के कारण उन्होंने कम उम्र में ही धार्मिक उपदेशक के रूप में जाना जाने लगा. चिन्मय कृष्ण दास 2016 से 2022 तक इस्कॉन के चटगांव मंडल सचिव रहे. वे 2007 से चटगांव के हथजारी में पुंडरीक धाम के प्रधानाचार्य भी रहे हैं.
चिन्मय पर देशद्रोह का मामला क्यों दर्ज हुआ था?
बता दें कि पिछल साल 25 अक्टूबर को चिन्मय और 18 अन्य लोगों पर चटगांव के न्यू मार्केट चौराहे पर बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा झंडा फहराने का आरोप लगा था. जिसके बाद 30 अक्टूबर की रात को कोतवाली थाने में चिन्मय और 18 अन्य लोगों के खिलाफ देशद्रोह के तहत मामला दर्ज किया गया था.
बांग्लादेश में हिंदुओं पर कब-कब अत्याचार हुआ
1971 का बांग्लादेश मुक्ति युद्ध: इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में हिंदूओं पर बड़े पैमाने पर अत्याचार किए, जिसमें लाखों लोग मारे गए. साथ में हिंदू महिलाओं के साथ भी अभद्रता की गई थी.
2001 के बाद से बढ़ते हमले: हिंदूओं पर हमले, मंदिरों की तोड़फोड़ और उनकी संपत्तियों पर कब्जा करने की कई घटनाएं हुईं थी.
2016 का नासिरनगर घटना: नासिरनगर में हिंदूओं पर हमले हुए, जिसमें कई लोग घायल हुए और मंदिरों को नुकसान पहुंचा.
2024 में हुआ हिंदूओं का नरसंहार: हाल ही में बांग्लादेश में हजारों की तादाद में निर्दोष हिंदूओं को मारा गया था. साथ ही हिंदू महिलाओं के साथ अभद्रता की गई थी.
बांग्लादेश में इस्लामिक मानसिकता के बीच हिंदूओं की स्थिति
बांग्लादेश में हिंदूओं को सताया जा रहा है, और उन्हें नरसंहार का सामना करना पड़ रहा है. यहां, अल्पसंख्यक समुदायों को अक्सर आर्थिक और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिए शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं का बहुत ही कम लाभ मिल पाता है.