संभल: 24 नवंबर क संभल में हुई हिंसा के बाद अब वहां की शाही जामा मस्जिद की इन दिनों फिर से चर्चा का विषय बन गई है. अब जामा मस्जिद का नाम बदलकर जुमा मस्जिद कर दिया गया है. ASI ने मस्जिद का नया बोर्ड भी बनवा दिया है. वहीं, मेरठ सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद का कहना है कि 1920 से ASI के संरक्षण में है और कई दशक पहले इसका नाम जुमा मस्जिद ही था. वहीं, इसी साल 28 फरवरी को कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान जज के पूछने पर वरिष्ठ अधिवक्ता SFA नकवी ने मस्जिद का असली नाम जामा मस्जिद बताया था.
दरअसल, बीते साल 24 नवंबर संभल में हिंसा हुई थी. ये हिंसा शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई थी. उस समय 5 लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग पथराव होने से घायल हो गए थे. करीब 29 अधिकारी और पुलिसकर्मियों को भी गंभीर चोटें आईं थी. तब के बाद से अब शाही जामा मसंजिद की एक बार फिर से चर्चा हो रही है. ASI से मस्जिद पर लगाने लिए नीले रंग का बोर्ड बनवाया है. इस पर बोर्ड पर मस्जिद का नाम बदलकर ‘जुमा मस्जिद, लिखा हुआ है. ये नया बोर्ड जल्द ही मस्जिद के बाहर लगवाया जाएगा. हालांकि हिंसा के मामले की जांच अभी चल रही है.
1920 के पहले जुमा मस्जिद था नाम-
ASI मेरठ सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद विनोद रावत का कहना है कि मस्जिद साल 1920 से ASI के संरक्षण में है. कई दशक पहले मस्जिद के बाहर जुमा मस्जिद नाम का बोर्ड लगवाया गया था. लेकिन इंतेजामियां कमेटी ने इसे कुछ वर्षों पहले मस्जिद से हटवा दिया था. पुरातत्वविद विनोद रावत का कहना है कि मस्जिद के नोटिफिकेशन में इसका नाम जुमा मस्जिद ही है. हालांकि मस्जिद के नाम को लेकर हाईकोर्ट की ओर से भी इंतेजामियां कमेटी की याचिका पर सुनवाई के दौरान सवाल खड़ा किया जा चुका है. वहीं, 1927 में सेक्रेटरी ऑफ स्टेट और मस्जिद के मुतव्वली के बीच जो करार हुआ था, उसमें भी जुमा मस्जिद लिखा है.
कोर्ट में गलत बयान देने पर क्या है सजा का प्राविधान?-
इसी साल 28 फरवरी को कोर्ट हुई सुनवाई के दौरान जज के पूछने पर वरिष्ठ अधिवक्ता SFA नकवी से मस्जिद का असली नाम पूछा था तब वकील ने जामा मस्जिद ही बताया था. वहीं ASI मेरठ सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद का कहना है कि 1920 के बाद से कई दशकों तक मस्जिद का नाम जुमा मस्जिद था, लेकिन कुछ सालों बाद इसका नाम बदल दिया गया है. ASI के संरक्षण में है. कई दशक पहले मस्जिद के बाहर जुमा मस्जिद नाम का बोर्ड लगवाया गया था. लेकिन इंतेजामियां कमेटी ने इसे कुछ वर्षों पहले मस्जिद से हटवा दिया था. वहीं, कोर्ट में गलत बयान देने या झूठ बोलने पर IPC की धारा-193 के तहत मुकदमा चलाया जाता है. साथ ही इसमें दोषी पाए जाने पर 7 साल तक की कैद की सजा हो सकती है