नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सजा काट रहे व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध की मांग वाली याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है. यह याचिका उन सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने को चुनौती देती है, जिन्हें आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीति में अपराधीकरण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और इस पर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता पर भारत संघ और चुनाव आयोग से जवाब मांगा.
यह जनहित याचिका एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने मांग की थी कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए सांसद/विधायकों को आजीवन अयोग्य घोषित किया जाए. याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के उन प्रावधानों को भी चुनौती दी गई, जो केवल दोषी ठहराए गए राजनेताओं को जेल की सजा के बाद छह साल तक चुनाव लड़ने से रोकते हैं.
डिवीजन बेंच ने 4 मार्च को करेगी अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन शामिल की डिवीजन बेंच ने इस याचिका पर आज सुनवाई की. साथ ही बेंच ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को तीन हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. इस मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को होगी.
मौजूदा कानून और याचिका की चुनौती
मौजूदा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (धारा 8) के अनुसार, दो साल या उससे अधिक की सजा पाने पर किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान है, लेकिन यह प्रतिबंध केवल सजा की अवधि पूरी होने के छह साल तक होता है. याचिका में इस प्रावधान को चुनौती दी गई है और यह मांग की गई है कि ऐसे सजायाफ्ता व्यक्तियों को आजीवन चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाए.
5000 आपराधिक मामले अभी भी लंबित
इस मामले में एमिकस क्यूरी की भूमिका निभा रहे सीनियर एडवोकेट विजय हंसरिया ने बताया कि इस याचिका के दायर होने के बाद से कई निर्देश पारित किए गए हैं, बावजूद इसके लगभग 5000 आपराधिक मामले MPs/MLAs से संबंधित अभी भी लंबित हैं.
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