इन दिनों महाकुंभ मेला पहुंचे नागा संन्यासियों की चर्चा है. लोगों में उनके बारे में जानने की जिज्ञासा देखी जा रही है. आमजन यह जानना चाहते हैं कि आखिर कड़ाके की ठंड में बिना वस्त्र पहनकर भगवान का भजन करने वाले नागा साधुओं की दिनचर्या क्या होती है? वह किसका भजन व कौन सा श्रृंगार करते हैं. साथ ही नागा संन्यासियों के देह त्याग करने के बाद उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी सबसे अलग होती है. आइए कुछ ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर हम आप को देते हैं.
दरअसल, नागा संन्यासी भगवान भोलेनाथ का भजन करते हैं. संन्यासी बनने से पहले उन्हें जीवित रहते हुए अपना पिंडदान करना पड़ता है. यह इसलिए, क्योंकि वह संसार से अपने सभी प्रकार के नातों को खत्मकर सिर्फ जनकल्याण के लिए भगवान का भजन करते हैं. नागा संन्यासियों का अंतिम संस्कार पारंपरिक रूप से जल समाधि या फिर भू-समाधि देकर किया जाता है. अधिकांशतः नागा संन्यासी अपना शरीर त्यागने से पहले ही बता देते हैं कि उन्हे किस प्रकार की समाधि दी जाए. नागा संन्यासियों के अंतिम संस्कार से पहले उनके पार्थिव शरीर का भव्य शृंगार किया जाता है, जो वह अपने जीवन काल के दौरान करते हैं.
नागा संन्यासी अपने जीवनकाल के दौरान 21 प्रकार के श्रृंगार करते हैं. जो उनके जीवन के अंतिम अध्याय का प्रतीक होता है. नागा संन्यासियों के शृंगार में कुछ विशेष चीजें शामिल होती हैं, जो उनके जीवन की सत्यता और साधना को दर्शाती हैं. जिसमें प्रवचन और मधुर वाणी भी शामिल होती है.
नागा संन्यासियों का प्रमुख श्रृंगार
भभूत: मृत्यु के बाद नागा संन्यासी के शरीर पर भभूत लगाई जाती है, जो जीवन की अस्थिरता और मृत्यु के अनिवार्य सत्य को दर्शाती है.
चंदन: भगवान शिव को समर्पित चंदन का लेप नागा संन्यासी अपने शरीर पर लगाते हैं.
रुद्राक्ष: रुद्राक्ष की माला नागा संन्यासी के शरीर का अभिन्न हिस्सा होती है, जिसे वे सिर, गले और बाजू में पहनते हैं.
तिलक: नागा संन्यासियों के माथे पर लंबा तिलक भक्ति और तप की निशानी है.
सूरमा: नागा संन्यासी अपनी आंखों का शृंगार सूरमा से करते है.
कड़ा: नागा संन्यासी हाथों और पैरों में कड़ा पहनते हैं, जो भगवान शिव के साथ जुड़ा हुआ प्रतीक होता है.
चिमटा:नागा संन्यासी चिमटा को एक अस्त्र के रूप में अपने साथ रखते हैं.
डमरू:भगवान शिव का प्रिय वाद्य डमरू नागा संन्यासियों के शृंगार का हिस्सा है.
कमंडल:जल लेकर चलने के लिए नागा संन्यासी अपने साथ कमंडल रखते हैं.
जटा:नागा संन्यासियों की जटाएं प्राकृतिक रूप से गुथी होती हैं. इनका शृंगार पंचकेश के रूप में किया जाता है.
लंगोट: भगवा रंग की लंगोट उनका प्रतीक है.
अंगूठी:हाथों में कई अंगूठियां पहनने से उनका साधना का प्रतीक जुड़ा होता है.
रोली:माथे पर भभूत के साथ रोली भी लगाई जाती है.
कुंडल: कानों में बड़े कुंडल चांदी या सोने के होते हैं, जो सूर्य और चंद्रमा का प्रतीक होते हैं.
माला: कमर में माला उनके शृंगार का अभिन्न हिस्सा होती है.
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समाधि की प्रक्रिया
जब नागा संन्यासी शरीर त्यागते हैं, तो उन्हें सिंहासन पर बैठाया जाता है. इसके बाद नागा संन्यासी की इच्छा के अनुसार जल समाधि या भू-समाधि दी जाती है. एक बार सिंहासन पर बैठाने के बाद उन्हें उतारा नहीं जाता. इस प्रक्रिया को समाधि कहा जाता है, जो उनके जीवन की शांति और मुक्ति का प्रतीक होती है.