1800 के दशक के मध्य में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रयागराज पर नियंत्रण कर लिया था। इस दौरान कुम्भ मेला ब्रिटिशों के लिए एक व्यावसायिक अवसर बन गया था। ब्रिटिशों को कुम्भ के धार्मिक महत्व से कोई विशेष सरोकार नहीं था; उनकी प्राथमिकता व्यापार और राजस्व पर केंद्रित थी। हर बार कुम्भ मेला आयोजित होने पर, प्रत्येक भक्त को एक रुपया कर के रूप में चुकाना पड़ता था।