प्रयागराज; इस साल 2025 में आयोजित हो रहा महाकुंभ मेला बहुत ही विशेष है, यह हर 144 साल में केवल एक बार होता है. गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम के कट पर आयोजित इस मेले को धार्मिक आस्था और भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है.
गौरतलब है कि महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक ऐसा पवित्र उत्सव है, जिसकी गूंज प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक युग तक सुनाई देती है. यह मेला न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय दर्शन, परंपरा और खगोलीय विज्ञान का अद्भुत संगम भी है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन व नासिक के पवित्र स्थलों पर गिरी थीं. यही कारण है कि इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ व महाकुंभ का आयोजन अनंत काल से होता रहा है. विष्णु पुराण में इस बात का उल्लेख है कि जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है, तो हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. इसी प्रकार, जब सूर्य और गुरु सिंह राशि में होते हैं, तो नासिक में कुंभ मेला लगता है. वहीं, उज्जैन में कुंभ तब होता है जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है. प्रयागराज में माघ अमावस्या के दिन सूर्य एवं चंद्रमा मकर राशि में होते हैं. वहीं, गुरु मेष राशि में होता है.
अर्ध कुंभ
अर्ध कुंभ एक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो हर छह साल में हरिद्वार व प्रयागराज में होता है. यह आयोजन गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर होता है, जिसे धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक पवित्र माना जाता है. अर्ध कुंभ का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इसे कुंभ मेले का आधा चक्र माना जाता है. इसमें लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं.
पूर्ण कुंभ
पूर्ण कुंभ मेला कुंभ मेले का ही एक विस्तार है, जो हर 12 साल में एक एक बार आयोजित होता है. वहीं, इसे कुंभ का पूर्ण रूप माना जाता है तथा इसका महत्व अन्य कुंभ मेलों से अधिक है. पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर होने वाले इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति है.
महाकुंभ
महाकुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जो हर 144 में केवल एक बार होता है. इसे भारतीय संस्कृति एवं आस्था का प्रतीक माना जाता है. महाकुंभ मेले की पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जिसमें अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों में संघर्ष हुआ था. इस आयोजन का मुख्य आकर्षण पवित्र नदियों में स्नान है, जिसे अमृत स्नान भी कहा जाता है.
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अब बचे ये तीन अमृत स्नान
दूसरा अमृत स्नान- मौनी अमावस्या ’29 जनवरी 2025′
तीसरा अमृत स्नान- बसंत पंचमी, 3 फरवरी 2025
चौथा अमृत स्नान- माघी पूर्णिमा, 12 फरवरी 2025, (कल्पवास का समापन)
पांचवा व अंतिम अमृत स्नान- 26 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि (महाकुंभ का अंतिम दिन)