स्वाधीनता के सपने संजोए अनेकों राष्ट्रवीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, उनका बलिदान आज भी हर भारतीय के दिल में एक प्रेरणा की तरह जीवित है. हालांकि कुछ राष्ट्रवीर ऐसे भी हैं, जिनके संघर्ष और उनकी वीरती की गाथा के बारे में लोग बहुत कम जानते हैं, लेकिन उनका योगदान देश की आजादी में अग्रणी है. इन्हीं में एक नाम है यूपी के शामली जिले ने महान क्रांतिकारी चौधरी मोहर सिंह का. उन्होंने 1857 में ही अपनी जन्मभूमि शामली को अंग्रेजों से 6 माह के लिए आजाद करा लिया था.
चौधरी मोहर सिंह का जीवन शौर्य और बलिदान की मिसाल है. उनकी वीरता को देखकर अंग्रेज इतना भयभीत हो गए थे कि वह शामली छोड़कर भाग गए थे. यही वजह है उनका योगदान सिर्फ देश के लिए बलिदान देने तब ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने अपनी बहादुरी से देशवासियों के मन से अंग्रेजों के खौफ को भी खत्म कर दिया था.
मोहर सिंह का जन्म सन् 1814 में शामली के जमींदार चौधरी घासीराम के घर हुआ था. वह बचपन से ही देश की आजादी के सपने देखा करते थे. उन्होंने पश्चिम यूपी के कई बड़े क्रांतिकारियों के साथ स्वाधीनता संग्राम की गतिविधियों में काम किया. देखते ही देखते उनके साथ बड़ी संख्या में स्थानीय क्रांतिकारी जुट गए. इस क्रांतिकारी गुट का नेतृत्व उनके द्वारा ही किया जा रहा था. उन दिनों मथुरा का गुरु विरजानंद आश्रम क्रांतिकारियों का प्रमख अड्डा हुआ करता था. यही सभी क्रांतिकारी बैठकर आगे की योजना तैयार करते थे.
1857 के दौरान अंग्रेजों का अत्याचार लगातार बढ़ता जा रहा था. दूसरी ओर चौधरी मोहर सिंह अपने क्रांतिकारी गुट को मजबूत करते जा रहे थे. अंग्रेजों के बढते अत्याचारों पर लगाम लगाने के लिए मोहर सिंह ने शामली तहसील और रेजिडेंसी में आग लगा थी. इस अभियान में सैकड़ों की संख्या में क्रांतिकारी उनके साथ शामिल थे. आग लगाने की घटना से अंग्रेज इतना भयभीत हुए कि शामली छोड़कर भाग गए. इस प्रकार से क्रांतिकारी दल ने शामली तहसील और रेजिडेंसी पर कब्जा कर पूरे क्षेत्र को अंग्रेजों से आजाद कर लिया.
अंग्रेजों की चतुरंगी सेना के सामने क्रांतिकारियों का दल बहुत छोटा था. फिर भी अंग्रेजों ने कई बार हमला कर, तहसील को फिर से अपने कब्जे में लेना चाहा….लेकिन वह सफल नहीं हो पाए. यह संघर्ष 6 महीनों तक चलता रहा. बाद में अंग्रेज अपने उद्देश्य में सफल रहे. लेकिन 6 महीनों तक शामली तहसील क्षेत्र अंग्रेजों से आजाद रहा. इससे देश भर के क्रांतिकारियों का मनोबल बढ़ा. साथ ही अंग्रेजों का खौफ भी खत्म हो गया.
इस घटना के बाद चौधरी मोहर सिंह और उनके क्रांतिकारी साथी अंग्रेजों की आंख में खटकने लगे थे. फिरंगी कैसे भी करके उन्हें अपने षडयंत्र में फंसाना चाहते थे. अंग्रेजों ने अपनी पूरी ताकत से इन क्रांतिकारियों को कुचलने का प्रयास किया. इसी दौरान फतेहपुर के जंगल में अंग्रजों और क्रांतिकारियों के बीच युद्ध हुआ. जिसमें 225 पुरुषों और 27 महिला क्रांतिकारी बलिदान हो गईं. इस घटना में मोहर सिंह ने वीरता के साथ अंग्रेजों का मुकाबला किया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह पकड़े गए. पकड़ने के बाद, अंग्रेजों ने उनकी हत्या कर दी और खौफ फैलाने के लिए उनके शव को तीन दिनों तक पेड़ पर लटकाए रखा.
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चौधरी मोहर सिंह के बलिदान के बाद, शामली के हर कोना में क्रांति की ज्वाला धधक उठी. जिससे बाद 1947 में हमारा देश आजाद हो गया. आजादी के बाद शामली में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई है, जो त्याग, संघर्ष, शौर्य और बलिदान का प्रतीक है. आज भी शामली के लोग उन्हें मोहर बाबा कहकर संबोधित करते हैं.